शिव स्वरोदय एक प्राचीन तांत्रिक ग्रंथ है जो स्वरोदय विद्या पर आधारित है। स्वरोदय विद्या सांसों के स्वर और उनकी गति के आधार पर विभिन्न गतिविधियों और परिणामों का पूर्वानुमान लगाने की एक प्राचीन योगिक प्रणाली है। इस ग्रंथ का श्रेय भगवान शिव को दिया जाता है, जिन्होंने देवी पार्वती को इस विद्या का ज्ञान दिया था।
शिव स्वरोदय की रचना शिव और पार्वती के संवाद के रूप में की गई है। यह ग्रंथ संस्कृत भाषा में लिखा गया है और इसमें कुल 395 श्लोक हैं। इसमें सांसों के स्वर, उनके प्रकार, और उनके प्रभाव का विस्तार से वर्णन किया गया है।
शिव स्वरोदय के प्रमुख विषय
- शिव स्वरोदय में सांसों के स्वर विज्ञान का विस्तृत वर्णन है। इसमें बाईं नासिका से आने वाले स्वर को चंद्र स्वर, दाईं नासिका से आने वाले स्वर को सूर्य स्वर और दोनों नासिकाओं से आने वाले स्वर को सुषुम्ना स्वर कहा गया है।
- इस ग्रंथ में विभिन्न कार्यों के लिए उपयुक्त स्वरों का उल्लेख है। इसमें बताया गया है कि किस प्रकार के कार्य के लिए किस स्वर का उपयोग करना चाहिए। उदाहरण के लिए, चंद्र स्वर शांति और सौम्यता के कार्यों के लिए उपयुक्त होता है, जबकि सूर्य स्वर ऊर्जा और साहसिक कार्यों के लिए उपयुक्त होता है।
- शिव स्वरोदय में स्वरों के परिवर्तन के समय और उनकी अवधि का भी उल्लेख है। इसमें बताया गया है कि किस प्रकार स्वर दिन में प्रत्येक 90 मिनट में बदलते हैं और इसका क्या प्रभाव होता है।
- इस ग्रंथ में स्वरों के स्वास्थ्य पर प्रभाव का भी वर्णन है। इसमें बताया गया है कि किस प्रकार स्वरों के माध्यम से विभिन्न रोगों का निदान और उपचार किया जा सकता है।
- शिव स्वरोदय में योग और ध्यान के लिए उपयुक्त स्वरों का भी उल्लेख है। इसमें बताया गया है कि किस प्रकार स्वरों के माध्यम से ध्यान और साधना की जा सकती है और आत्मा की शुद्धि की जा सकती है।
- इस ग्रंथ में स्वरों के माध्यम से भविष्यवाणी करने की विधियाँ भी बताई गई हैं। इसमें बताया गया है कि किस प्रकार स्वरों के आधार पर आगामी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।