नमस्ते दोस्तों! आज के इस भाग-दौड़ भरे जीवन में, जहां हर कोई सफलता की सीढ़ी चढ़ने में व्यस्त है, हम अक्सर अपनी जड़ों और परंपराओं को भूल जाते हैं। भारतीय संस्कृति में व्रत और उपवास का बहुत गहरा महत्व है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसका संबंध सिर्फ धर्म से नहीं, बल्कि हमारे ब्रह्मांड (cosmos) के साथ भी है? आइए जानते हैं कि व्रत और उपवास का अंतरिक्ष (space) और नक्षत्रों (constellations) के रहस्यमय संसार से कैसे गहरा जुड़ाव है।
क्यों करते हैं व्रत और उपवास?
अक्सर हम व्रत को सिर्फ धार्मिक आस्था के रूप में देखते हैं, पर इसके पीछे कई वैज्ञानिक और ज्योतिषीय कारण छिपे हैं। व्रत का अर्थ है ‘संकल्प (determination)’। जब हम व्रत रखते हैं, तो हम खुद को अनुशासन में बांधते हैं। यह सिर्फ भोजन त्यागना नहीं है, बल्कि अपनी इंद्रियों को वश में करने का एक अभ्यास है। हमारे ऋषि-मुनियों ने इस प्रथा को हजारों साल पहले विकसित किया, जब विज्ञान आज की तरह इतना उन्नत नहीं था। उन्होंने अनुभव किया कि कुछ खास दिनों में धरती (Earth) और अंतरिक्ष (space) के बीच एक विशेष ऊर्जा का प्रवाह होता है।
नक्षत्रों का प्रभाव – ज्योतिषीय संबंध
ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, चंद्रमा (Moon) और सूर्य (Sun) का हमारे शरीर और मन पर सीधा प्रभाव पड़ता है। चंद्रमा की कलाएं (phases) हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं। पूर्णिमा (full moon) और अमावस्या (new moon) के दिन चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (gravitational force) अपनी चरम पर होती है। इस समय समुद्र में ज्वार-भाटा (tide) आता है और हमारे शरीर में भी तरल पदार्थों पर इसका असर होता है। यही कारण है कि इन दिनों व्रत करने की सलाह दी जाती है।
व्रत के दौरान हमारा शरीर हल्का रहता है, जिससे हम इन खगोलीय ऊर्जाओं (celestial energies) को बेहतर तरीके से महसूस कर पाते हैं। सोमवार का व्रत भगवान शिव और चंद्रमा से जुड़ा है। ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है। इस दिन व्रत रखने से मन शांत होता है और मानसिक तनाव कम होता है। इसी तरह, मंगलवार का व्रत मंगल ग्रह से जुड़ा है, जो ऊर्जा और शक्ति का प्रतीक है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण – शरीर और ऊर्जा का संतुलन
आधुनिक विज्ञान भी अब इस बात को मानने लगा है कि उपवास डिटॉक्सिफिकेशन (detoxification) का एक बेहतरीन तरीका है। व्रत के दौरान हमारा पाचन तंत्र (digestive system) आराम करता है और शरीर में जमा टॉक्सिन (toxins) बाहर निकलते हैं।
जब हम व्रत रखते हैं, तो शरीर की ऊर्जा पाचन के काम में खर्च नहीं होती, बल्कि उसका उपयोग शरीर के मरम्मत (repair) और कायाकल्प (rejuvenation) में होता है। यह एक तरह का ‘रीसेट बटन (reset button)’ है जो हमारे शरीर को नई ऊर्जा से भर देता है। इंटरमिटेंट फास्टिंग (intermittent fasting) का सिद्धांत भी इसी प्राचीन ज्ञान पर आधारित है।
ऊर्जा और आध्यात्मिक संबंध
हमारे शरीर में सात चक्र (chakras) होते हैं, जो ऊर्जा के केंद्र हैं। व्रत और ध्यान के माध्यम से हम इन चक्रों को सक्रिय कर सकते हैं। जब हम व्रत रखते हैं, तो हमारी आध्यात्मिक ऊर्जा (spiritual energy) बढ़ती है और हम ब्रह्मांड की सूक्ष्म ऊर्जाओं (subtle energies) से जुड़ पाते हैं।
यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि स्वयं को जानने (self-realization) और ब्रह्मांड के साथ तालमेल (alignment with the universe) बिठाने का एक माध्यम है।
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