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मध्वाचार्य जयंती 2025 – जानें द्वैत वेदांत के प्रवर्तक श्री मध्वाचार्य का जीवन, दर्शन और शिक्षाएँ

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भारत की संत परंपरा में, श्री मध्वाचार्य (Madhvacharya) का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। वे हिंदू दर्शन के तीन प्रमुख वेदांत मतों में से एक, द्वैत वेदांत (Dvaita Vedanta) के संस्थापक हैं। उनकी जयंती, जिसे माधवाचार्य जयंती भी कहते हैं, हर वर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाई जाती है। वर्ष 2025 में, यह शुभ पर्व बृहस्पतिवार, 2 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा, जो कि विजयादशमी (Dussehra) के पावन अवसर पर आता है। यह उनकी 787वीं जयंती होगी।

श्री मध्वाचार्य ने उस समय के प्रचलित अद्वैत दर्शन को चुनौती दी और एक ऐसा दर्शन प्रस्तुत किया जो ईश्वर (God), जीव (individual soul) और जगत (universe) की मौलिक भिन्नता पर ज़ोर देता है।

श्री मध्वाचार्य का जीवन परिचय (Biography)

श्री मध्वाचार्य का जन्म सन 1238 ईस्वी में कर्नाटक राज्य के उडुपी के निकट पाजक नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम मध्वगेह भट्ट और माता का नाम वेदवती था। बचपन में उनका नाम वासुदेव था। बाल्यकाल से ही वे अत्यंत प्रतिभाशाली और जिज्ञासु थे। उनकी स्मृति (memory) और ज्ञान (knowledge) की क्षमता असाधारण थी।

अल्पायु में ही वासुदेव ने संन्यास लेने का निर्णय लिया और अच्युतप्रेक्ष नामक आचार्य से दीक्षा ग्रहण की। संन्यास के उपरांत उनका नाम पूर्णप्रज्ञ पड़ा। बाद में, अपनी शिक्षाओं और ज्ञान की गहराई के कारण वे आनंदतीर्थ और अंततः मध्वाचार्य के नाम से प्रसिद्ध हुए।

मध्वाचार्य ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद पूरे भारत की यात्रा की, जिसे दिग्विजय कहा जाता है। इस दौरान उन्होंने विभिन्न विद्वानों और दार्शनिकों के साथ शास्त्रार्थ (debates) किए और अपने द्वैत दर्शन का प्रचार-प्रसार किया। उन्होंने उडुपी में भगवान श्री कृष्ण का प्रसिद्ध मंदिर स्थापित किया, जो आज भी उनके अनुयायियों के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।

द्वैत वेदांत दर्शन (Dvaita Vedanta Philosophy)

द्वैत दर्शन (Dvaita philosophy) शाब्दिक रूप से “दो की वास्तविकता” (reality of two) पर आधारित है। यह दर्शन शंकराचार्य के अद्वैतवाद (Advaita) के विपरीत है, जो ब्रह्म को एकमात्र सत्य मानता है। मध्वाचार्य के अनुसार, तीन तत्व नित्य (eternal) और सत्य (real) हैं: ईश्वर (विष्णु), चित् (जीव) और अचित् (जड़ जगत)।

प्रमुख सिद्धांत – पंच भेद (Pancha Bheda)

द्वैत वेदांत की आधारशिला इसके ‘पंच भेद’ के सिद्धांत पर टिकी है, जिसका अर्थ है पाँच मूलभूत और वास्तविक भेद जो कभी मिटते नहीं हैं:

  • ईश्वर और जीव में भेद – परमात्मा (विष्णु) और व्यक्तिगत आत्मा (जीव) हमेशा अलग-अलग हैं। जीव ईश्वर का सेवक (servant) है, कभी भी ईश्वर नहीं बन सकता।
  • ईश्वर और जड़ में भेद – ईश्वर और भौतिक जगत (Matter/Prakriti) पूरी तरह से अलग हैं। ईश्वर जगत के निमित्त कारण (Instrumental Cause) हैं, उपादान कारण (Material Cause) नहीं।
  • जीव और जड़ में भेद – आत्मा और भौतिक पदार्थ में मूलभूत अंतर है।
  • जीव और जीव में भेद – सभी आत्माएँ एक-दूसरे से भिन्न हैं। प्रत्येक आत्मा की अपनी विशिष्टता (uniqueness) है।
  • जड़ और जड़ में भेद – एक भौतिक वस्तु दूसरी भौतिक वस्तु से भिन्न है (जैसे पत्थर और पानी)।

हरि: सर्वोत्तम और जीव: ईश्वराधीन

द्वैत सिद्धांत का मूल मंत्र है: “हरिः सर्वोत्तम” (Hari is the supreme) और “वायुः जीवोत्तम” (Vayu is the best among Jivas)। मध्वाचार्य भगवान विष्णु को ही परब्रह्म मानते हैं, जो जगत के कर्ता, धर्ता और संहारक हैं। जीव, हालांकि नित्य और चेतन है, लेकिन वह हमेशा ईश्वर के अधीन (dependent) रहता है।

मध्वाचार्य की शिक्षाएँ और योगदान (Teachings and Contributions)

मोक्ष और भक्ति का मार्ग

मध्वाचार्य के अनुसार, मोक्ष (Moksha) का अर्थ केवल दुखों का अंत नहीं है, बल्कि स्वरूपभूत आनंद (inherent bliss) की प्राप्ति है, जो सायुज्य मुक्ति (oneness in presence) में होती है, न कि एकाकार (merging) होने में। इस मुक्ति का एकमात्र साधन है निष्काम भक्ति (unconditional devotion) और भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण (surrender)। ज्ञान और कर्म मोक्ष के सहायक हो सकते हैं, लेकिन अंतिम मार्ग भक्ति ही है।

साहित्य और ग्रन्थ रचना

मध्वाचार्य ने अपने दर्शन को स्थापित करने के लिए सैंतीस ग्रन्थों की रचना की। इनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं:

  • ब्रह्मसूत्र पर भाष्य: इस पर उन्होंने ‘अनुव्याख्यान’ नामक एक स्वतंत्र ग्रन्थ भी लिखा।
  • श्रीमद्भगवद्गीता पर टीका
  • दसों उपनिषदों पर टीकाएँ
  • महाभारततात्पर्यनिर्णय

सामाजिक सुधार

मध्वाचार्य एक महान समाज सुधारक (social reformer) भी थे। उन्होंने यज्ञों में होने वाली पशु बलि (animal sacrifice) की प्रथा का कड़ा विरोध किया और भक्ति व अहिंसा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। उडुपी में कृष्ण मंदिर की स्थापना उनके भक्ति आंदोलन का केंद्र बनी।

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