भाद्रपद पूर्णिमा, जिसे भाद्रपद माह की पूर्णिमा (Full Moon) के रूप में जाना जाता है, हिंदू धर्म में एक विशेष और पवित्र दिन है। यह दिन न केवल धार्मिक अनुष्ठानों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका संबंध पितरों के श्राद्ध (Shraddha) और भविष्य पुराण में वर्णित अनेक शुभ घटनाओं से भी है। इस साल 2025 में, भाद्रपद पूर्णिमा का व्रत कब है और इसका क्या महत्व है? आइए, इस विस्तृत ब्लॉग में हम इस रहस्यमयी व्रत के बारे में सब कुछ जानते हैं।
भाद्रपद पूर्णिमा 2025 – तिथि और शुभ मुहूर्त (Shubh Muhurat)
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व होता है। यह तिथि इस साल 2025 में कब है, आइए जानते हैं:
- भाद्रपद पूर्णिमा तिथि प्रारंभ: 7 सितंबर 2025, रविवार, 01:41 AM बजे
- भाद्रपद पूर्णिमा तिथि समाप्त: 7 सितंबर 2025, रविवार, 11:38 PM बजे
भाद्रपद पूर्णिमा का धार्मिक महत्व और रहस्य
भाद्रपद पूर्णिमा केवल एक सामान्य पूर्णिमा तिथि नहीं है, बल्कि यह कई महत्वपूर्ण घटनाओं और परंपराओं का संगम है।
- पितरों का श्राद्ध – भाद्रपद पूर्णिमा से ही 16 दिनों तक चलने वाले पितृ पक्ष (Pitru Paksha) का आरंभ होता है। इस दिन उन पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु पूर्णिमा तिथि को हुई थी। यह श्राद्ध (ritual) परिवार के पितरों को मोक्ष और शांति प्रदान करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन तर्पण और पिंडदान करने से पितर प्रसन्न होते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।
- उमा महेश्वर व्रत – भविष्य पुराण (Bhavishya Purana) के अनुसार, भाद्रपद पूर्णिमा को ही उमा महेश्वर व्रत किया जाता है। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति को सौभाग्य, संतान सुख, और धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है। वैवाहिक जीवन में सुख और शांति के लिए यह व्रत विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
- सत्यनारायण पूजा – कई लोग इस दिन भगवान विष्णु के सत्यनारायण रूप की पूजा और कथा (recitation) करते हैं। इस पूजा से घर में सुख-समृद्धि आती है और सभी बाधाएं दूर होती हैं।
- स्नान-दान का महत्व – इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है। यदि नदी में स्नान संभव न हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान किया जा सकता है। इसके बाद गरीबों और जरूरतमंदों को दान (donation) देना बहुत पुण्यकारी माना जाता है।
भाद्रपद पूर्णिमा व्रत के नियम और पूजा विधि
भाद्रपद पूर्णिमा का व्रत रखने वाले व्यक्ति को कुछ विशेष नियमों का पालन करना चाहिए।
- सुबह जल्दी उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करें। यदि संभव न हो तो घर पर ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
- स्वच्छ वस्त्र पहनकर हाथ में जल, चावल और फूल लेकर व्रत का संकल्प (vow) लें।
- घर के मंदिर में भगवान विष्णु, भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें। उन्हें रोली, अक्षत, फूल, चंदन, धूप और दीप अर्पित करें।
- यदि आप सत्यनारायण कथा कर रहे हैं, तो विधि-विधान से कथा करें और प्रसाद वितरित करें।
- पूरे दिन निराहार (fasting) रहें। यदि स्वास्थ्य ठीक न हो तो फलाहार (fruit diet) कर सकते हैं।
- शाम को चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें। इसके लिए एक पात्र में दूध, जल, चीनी और चावल डालकर चंद्रमा को अर्पित करें।
- यदि आप अपने पितरों का श्राद्ध कर रहे हैं, तो किसी योग्य ब्राह्मण को बुलाकर श्राद्ध विधि करवाएं और उन्हें भोजन, वस्त्र और दक्षिणा दान करें।
इस व्रत से जुड़े कुछ विशेष लाभ (Special Benefits)
- भाद्रपद पूर्णिमा पर श्राद्ध करने से पितृ दोष दूर होता है और पितरों का आशीर्वाद मिलता है।
- उमा महेश्वर व्रत करने से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति आती है और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
- इस दिन दान करने से धन-संपत्ति में वृद्धि होती है और आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं।
- पवित्र स्नान और पूजा करने से शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।
Found a Mistake or Error? Report it Now