हिन्दू धर्म में ब्रह्मसूत्र एक सार ग्रंथ है। इसे वेदांत सूत्र भी कहा जाता है। ब्रह्मसूत्र में ब्रह्म के स्वरूप का निरूपण किया गया है और ब्रह्म को जीवन में अनुभव करने के उपाय बताए गए हैं। ब्रह्म सूत्र में 555 सूत्र या सूत्र हैं, जो चार अध्यायों ( अध्याय ) में विभाजित हैं, प्रत्येक अध्याय को चार भागों ( पाद ) में विभाजित किया गया है।
ब्रह्मसूत्र, वेदान्त दर्शन का आधारभूत ग्रन्थ है। इसके रचयिता महर्षी बादरायण हैं। इसे वेदान्त सूत्र, उत्तर-मीमांसा सूत्र, शारीरक सूत्र और भिक्षु सूत्र आदि के नाम से भी जाना जाता है। ब्रह्मसूत्र वेदों और उपनिषदों की शिक्षाओं को व्यवस्थित करता है। बहुत से लोग इस आधारभूत ग्रंथ पर टिप्पणी के बिना हिंदू विचारधारा के किसी भी संप्रदाय को अधूरा मानते हैं। ऋषि बादरायण (जिन्हें वेदव्यास या व्यासदेव के नाम से भी जाना जाता है) को समर्पित ब्रह्म – सूत्र को वेदांत-सूत्र के नाम से भी जाना जाता है।
ब्रह्मसूत्र की संरचना
- ब्रह्मसूत्र में चार अध्याय हैं जिनके नाम हैं – समन्वय, अविरोध, साधन एवं फल। प्रथम अध्याय का नाम है ‘समन्वय’। इसे समन्वय अध्याय इसलिए कहा जाता है क्योंकि वेदों में या कहे उपनिषदों में परस्पर दो विरुद्ध मत भी है। इसलिए उनका समन्वय यानी वे दोनों ही सही है ऐसा तर्क द्वारा इस प्रथम अध्याय में बताया गया है।
- दूसरे अध्याय का नाम है ‘अविरोध’। इस अध्याय में यह सिद्ध किया गया है कि वेद में या उपनिषद् के वाक्य में विरोध नहीं है।
- तृतीय अध्याय का नाम है ‘साधन’। इसमें ब्रह्मप्राप्ति के उपाय, मुक्ति के बहिरंग और अन्तरंग साधन बताए गये हैं।
- चतुर्थ अध्याय का नाम है ‘फल’। इसमें मोक्ष, स्वर्ग, सगुण और निर्गुण उपासना के फल पर विवेचन है।