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मैसूर दशहरा 2025 – शाही विरासत का जश्न, क्यों देखने आते हैं लाखों पर्यटक? जानें पूरी कहानी

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नमस्कार दोस्तों! भारत त्योहारों का देश है, और जब बात आती है ‘बुराई पर अच्छाई की जीत’ के सबसे बड़े उत्सव की, तो ज़ेहन में तुरंत आता है दशहरा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक शहर ऐसा है जहाँ का दशहरा पूरे विश्व में अपनी शाही भव्यता (Royal Grandeur) और सदियों पुरानी परंपरा के लिए जाना जाता है? हम बात कर रहे हैं कर्नाटक के सांस्कृतिक केंद्र, मैसूर (Mysuru) की, और उसके विश्व-प्रसिद्ध मैसूर दशहरा (Mysore Dasara) की।

साल 2025 में, मैसूर दशहरा 22 सितंबर 2025 से शुरू होकर 2 अक्टूबर 2025 को विजयदशमी के दिन भव्य शोभायात्रा के साथ समाप्त होगा। यह महज़ एक त्योहार नहीं, बल्कि कर्नाटक की ‘नाडा हब्बा’ यानी राज्य उत्सव है, जिसे देखने के लिए हर साल देश-विदेश से लाखों पर्यटक यहाँ उमड़ते हैं। आखिर क्या है इस उत्सव में इतना खास? आइए, जानते हैं.

मैसूर दशहरा क्यों है इतना ख़ास? – कहानी महिषासुर से शुरू

उत्तर भारत में जहाँ दशहरा भगवान राम की रावण पर विजय के रूप में मनाया जाता है, वहीं मैसूर में यह पर्व देवी चामुंडेश्वरी (Chamundeshwari Devi) की राक्षस महिषासुर (Mahishasura) पर विजय का प्रतीक है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, माँ दुर्गा ने चामुंडेश्वरी का रूप धारण कर इसी स्थान पर, जिसे अब चामुंडी पहाड़ियाँ (Chamundi Hills) कहा जाता है, महिषासुर का वध किया था। इस जीत के सम्मान में, और शहर को महिषुरु (जो बाद में मैसूर बना) नाम मिलने की खुशी में, यह उत्सव मनाया जाता है। यह दस दिवसीय त्योहार शक्ति और विजय का अद्भुत संगम है।

मैसूर दसरा का 400 साल पुराना शाही इतिहास

मैसूर दशहरा की भव्यता के पीछे वोडेयार राजवंश (Wadiyar Dynasty) का 400 साल पुराना इतिहास है।

  • प्रारंभ – इस उत्सव की शुरुआत 15वीं शताब्दी में विजयनगर साम्राज्य के दौरान हुई थी, जिसे महानवमी (Mahanavami) के नाम से जाना जाता था।
  • शाही संरक्षण – 1610 ईस्वी में, मैसूर के राजा राजा वोडेयार I ने श्रीरंगपटना (Srirangapatna) में इस उत्सव को शाही संरक्षण दिया और इसे एक भव्य स्वरूप प्रदान किया।
  • आज तक की परंपरा – राजवंश समाप्त होने के बावजूद, वोडेयार परिवार आज भी इस त्योहार को अपनी निजी और पारंपरिक रस्मों के साथ मनाता है, जिससे इसकी ऐतिहासिक विरासत (Historical Heritage) और भी समृद्ध हो जाती है। दशहरा के दौरान शाही परिवार का मुखिया मैसूर पैलेस में निजी ‘दरबार’ आयोजित करता है, जहाँ पारंपरिक रीति-रिवाज़ निभाए जाते हैं।

मैसूर दशहरा 2025 के मुख्य आकर्षण (Key Attractions)

मैसूर दशहरा को देखने आने वाले लाखों पर्यटकों की भीड़ निम्नलिखित कारणों से लगती है:

जगमगाता मैसूर पैलेस (Illuminated Mysore Palace)

दशहरा के 10 दिनों तक, मैसूर पैलेस शाम ढलते ही 1 लाख से अधिक विद्युत बल्बों (Electric Bulbs) से जगमगा उठता है। यह नज़ारा इतना अलौकिक होता है कि पर्यटक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। पैलेस की यह शानदार लाइटिंग (Spectacular Lighting) मैसूर दसरा की पहचान बन चुकी है।

जम्बू सवारी (Jumbo Savari)

दशहरे का सबसे भव्य और अंतिम कार्यक्रम ‘जम्बू सवारी’ होता है, जो विजयादशमी के दिन 2 अक्टूबर 2025 को निकाला जाएगा।

  • स्वर्ण हौदा – एक सजे-धजे हाथी की पीठ पर 750 किलो के शुद्ध सोने के हौदे (Golden Howdah) पर देवी चामुंडेश्वरी की प्रतिमा विराजमान होती है।
  • भव्य जुलूस – यह जुलूस मैसूर पैलेस से शुरू होकर बन्निमंतप तक जाता है। इसमें सजे-धजे हाथी, घोड़े, ऊंट, लोक नर्तक, संगीत बैंड और रंगीन झाँकियाँ (Floats) शामिल होती हैं, जो कर्नाटक की समृद्ध संस्कृति को दर्शाती हैं।

शाही सिंहासन का प्रदर्शन (Display of the Golden Throne)

दशहरा उत्सव के दौरान, मैसूर पैलेस के दरबार हॉल में ‘स्वर्ण सिंहासन’ को सार्वजनिक दर्शन के लिए रखा जाता है। यह सिंहासन शुद्ध सोने से बना है, और माना जाता है कि इसका संबंध महाभारत के पांडवों से भी है। पर्यटक इसे देखकर मैसूर के शाही वैभव (Royal Opulence) का अनुभव करते हैं।

सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रदर्शनी

10 दिनों तक, शहर के विभिन्न स्थानों पर सांस्कृतिक उत्सव (Cultural Festival) का आयोजन होता है। लोक कला, शास्त्रीय संगीत, नृत्य प्रदर्शन, नाटक और युवा दसरा के कार्यक्रम होते हैं। साथ ही, दशहरे की एक बड़ी प्रदर्शनी भी लगती है, जहाँ हस्तशिल्प (Handicrafts), सरकारी स्टॉल और मनोरंजन के साधन उपलब्ध होते हैं।

मशाल जुलूस (Torchlight Parade)

विजयादशमी की शाम को बन्निमंतप मैदान में ‘पंजिना कवयित्तु’ यानी मशाल जुलूस का आयोजन होता है, जो सेना और पुलिस बलों द्वारा किया जाता है। यह शानदार आतिशबाजी (Fireworks) और करतबों से भरपूर होता है, जो उत्सव का भव्य समापन करता है।

मैसूर दशहरा 2025 में घूमने की योजना कैसे बनाएं?

अगर आप 2025 में इस शाही उत्सव का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो इन बातों का ध्यान रखें:

  • तिथि – 22 सितंबर से 2 अक्टूबर 2025। (जम्बू सवारी: 2 अक्टूबर 2025)
  • आवास (Accommodation) – मैसूर में इस दौरान पर्यटकों की भारी भीड़ होती है, इसलिए अपना होटल या होमस्टे एडवांस में बुक (Book) करें।
  • टिकट – जम्बू सवारी देखने के लिए विशेष पास (Passes) जारी किए जाते हैं, जिन्हें आप कर्नाटक पर्यटन विभाग से प्राप्त कर सकते हैं।
  • समय – पैलेस की लाइटिंग का आनंद लेने के लिए शाम को जल्दी पहुँचें और जम्बू सवारी देखने के लिए दोपहर से पहले ही जुलूस मार्ग पर अपनी जगह सुनिश्चित कर लें।

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