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रक्षाबंधन की कथा

Rakshabandhan Katha

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|| राखी की कहानी ||

रक्षा बंधन की कथा हिंदू पौराणिक कथाओं में हैं। यह पीढ़ी दर पीढ़ी नीचे पारित की गई है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस त्योहार की शुरुआत भगवान कृष्ण द्वारा अपनी बहन सुभद्रा को दिए गए प्यार और सुरक्षा को मनाने के लिए की गई थी।

सुभद्रा एक युवा लड़की थी जो युद्ध के लिए जा रहे अपने भाई भगवान कृष्ण के बारे में चिंतित थी। वह उनकी रक्षा करना चाहती थी और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहती थी। इसलिए उसने उनकी कलाई पर एक पवित्र धागा बांध दिया, जिसे राखी के रूप में जाना जाता है। यह इशारा उनके भाई के प्रति उसके प्यार और सुरक्षा की प्रार्थना का प्रतीक है। भगवान कृष्ण अपनी बहन के इस प्यार से प्रभावित हुए और हमेशा उनकी रक्षा करने का वचन दिया।

रक्षा बंधन की कहानी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी कि राखी का हिंदी में अर्थ। यह हिंदू पौराणिक कथाओं का एक केंद्रीय हिस्सा बन गया है और इसे भाइयों और बहनों के बीच प्यार और सुरक्षा के बंधन की याद दिलाने के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं, जो उनके प्यार और सुरक्षा का प्रतीक है, और भाई अपनी बहनों की रक्षा करने का संकल्प लेते हैं और उन्हें उपहार और प्यार देते हैं।

इसलिए, रक्षाबंधन हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है और इसे बहुत खुशी और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार परिवारों को एक साथ आने, सांस्कृतिक मूल्यों को सुदृढ़ करने और भाइयों और बहनों के बीच प्यार और सुरक्षा के बंधन का जश्न मनाने का अवसर प्रदान करता है। रक्षा बंधन की कहानी पारिवारिक रिश्तों में प्यार, सुरक्षा और देखभाल के महत्व और मजबूत पारिवारिक संबंधों को बनाए रखने के महत्व की याद दिलाती है। यही रक्षा बंधन की कथा है।

|| रक्षाबंधन की कहानी ||

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि श्रावण मास का महीना शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस महीने में पूरा संसार खुशी और उत्साह से भर जाता है और इसी माह की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है।

एक समय की बात है, एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसके तीन पुत्र और तीन बहुएं थीं। साहूकार की सबसे छोटी बहू बहुत सुशील और संस्कारी थी। इसके साथ ही वह भगवान कृष्ण की परम भक्त थी। सावन के महीने में साहूकार की दोनों बड़ी बहुएं अपने-अपने पीहर जाने की तैयारी करने लगीं। वे सुबह जल्दी उठकर घर का सारा काम करने लगीं। छोटी बहू ने पूछा, “क्या बात है दीदी, आज आप दोनों इतनी जल्दी-जल्दी काम क्यों कर रही हैं?” उसकी जेठानी ने उत्तर दिया, “कल रक्षाबंधन का त्यौहार है, हमको अपने भाई को राखी बांधने अपने-अपने पीहर जाना है।”

बड़ी बहू बोली, “तेरा तो कोई भाई नहीं है, तू क्या जाने रक्षाबंधन का महत्व और भाई-बहन के रिश्ते का महत्व।” यह सुनकर छोटी बहू को बहुत बुरा लगा और वह भगवान श्री कृष्ण की प्रतिमा के सामने जाकर रोने लगी। उसने कहा, “अगर मेरा भी कोई भाई होता, तो आज मैं भी अपने पीहर जाती।”

अगले दिन रक्षाबंधन का त्योहार था। तभी छोटी बहू के दूर के रिश्ते का एक भाई आया और साहूकार से बोला, “यह मेरी बहन है, मैं इसका भाई हूं और आज के इस पर्व पर मैं इसे अपने साथ ले जाने आया हूं।” साहूकार के बेटे ने कहा, “लेकिन इसका तो कोई भाई नहीं है, तुम कौन हो?” उस आदमी ने साहूकार को समझाया, तब साहूकार और उसका बेटा मान गए और छोटी बहू को उसके साथ भेजने को तैयार हो गए। लेकिन उसके पति के मन में शंका थी। उसने कहा, “आप इसे ले तो जाओ, लेकिन इसे वापस लेने मैं स्वयं आऊंगा।” ऐसा कहकर उसने अपनी पत्नी को उसके साथ भेज दिया।

रास्ते में छोटी बहू ने अपने भाई से पूछा, “भाई, आप इतने सालों से कहां थे और रक्षाबंधन पर मुझसे राखी क्यों नहीं बंधवाई?” उसका भाई बोला, “बहन, मैं सात समंदर पार परदेस में कमाने गया था।”

जब वे दोनों अपने घर पहुंचे तो उसकी भाभी ने अपनी ननद का स्वागत किया और खूब आवभगत की। तब दोनों भाई-बहन ने रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया। कुछ दिन बाद छोटी बहू का पति उसे लेने आया। महल जैसा घर और ऐसो आराम देखकर वह चकित रह गया। भाई और भाभी ने उसकी भी खूब आवभगत की। अगले दिन सुबह के समय भाई और भाभी ने उसे विदा किया। विदा करते समय उसे खूब सोना-चांदी और हीरे-जवाहरात देकर भेजा।

थोड़ी दूर जाने पर छोटी बहू के पति को याद आया कि वह अपना कुर्ता भूल आया है। उसने कहा, “मैं अभी उसे लेकर आता हूं।” छोटी बहू बोली, “कोई बात नहीं, वह पुराना कुर्ता है।” लेकिन वह नहीं माना और वापस चल दिए। जब वे भाई के घर पहुंचे तो देखा कि वहां एक बड़ा सा पीपल का पेड़ है और उस पेड़ पर उसके पति का कुर्ता टंगा हुआ था।

यह देखकर वह बहुत नाराज हुआ और अपनी पत्नी से बोला, “यह क्या काला जादू है? कौन था वह जो तेरा भाई बनकर तुझे लेकर यहां आया था? मुझे तो शुरू से ही शक था, इसलिए मैं तुझे लेने आया था। कौन था वह?” ऐसा कहते हुए वह अपनी पत्नी को मारने लगा।

तभी भगवान श्री कृष्ण वहां प्रकट हुए और बोले, “मत मारो इसे, यह मेरी बहन है। इस साल रक्षाबंधन पर यह मुझे राखी बांधने आई थी और अब मैंने उसका भाई होने का फर्ज निभाया है। मैं इसकी रक्षा करने आया हूं, इसे मैंने अपनी बहन माना है।” यह सब देखकर और सुनकर उसका पति चकित रह गया और भगवान श्री कृष्ण के चरणों में गिर गया। उसने भगवान से अपनी की हुई गलतियों की क्षमा मांगी।

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