रामो राजमणि – श्लोक अर्थ सहित

॥ रामो राजमणि – श्लोक ॥ रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे रामेणाभिहता निशाचरचमूः रामाय तस्मै नमः । रामान्नास्ति परायणंपरतरं रामस्य दासोस्म्यहं रामे चित्तलयस्सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥ हिंदी अर्थ: राम (श्रीराम) सभी राजाओं में श्रेष्ठ रत्न हैं, और वे सदैव विजय प्राप्त करते हैं। मैं उन लक्ष्मीपति राम का भजन करता हूँ,…

माता रामो मत्पिता रामचन्द्र – श्लोक अर्थ सहित

॥ माता रामो मत्पिता रामचन्द्र – श्लोक ॥ माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः । स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः ॥ सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु । नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥ हिंदी अर्थ: माता के रूप में भगवान राम हैं, पिता के रूप में भी भगवान रामचन्द्र हैं। स्वामी के रूप में भगवान राम हैं, सखा के…

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु – श्लोक अर्थ सहित

।। गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु – श्लोक अर्थ सहित ।। गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।। हिंदी अर्थ: यह श्लोक गुरु की महानता और उनके अद्वितीय स्थान को दर्शाता है। इस श्लोक का अर्थ इस प्रकार है: “गुरु अर्थात् शिक्षक ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही देव महेश्वर अर्थात् शिव हैं।…

श्री हनुमत् प्रार्थना श्लोक

।। श्री हनुमत् प्रार्थना श्लोक ।। मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्दिमतां वरिष्ठम्। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शिरसा नमामि।। अञ्जनानन्दनं वीरं जानकीशोकनाशनम्। कपीशमक्षहन्तारं वन्दे लङ्काभयङ्करम्।। गोष्पदीकृतवाराशिं मशकीकृतराक्षसम्। रामायणमहामालारत्नं वन्देऽनिलात्मजम्।। यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनं तत्र तत्र कृतमस्तकाञ्जलिम्। बाष्पवारिपरिपूर्णलोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तकम्।। वन्दे वानर-नारसिंह-खगराट्-क्रोडाश्ववक्त्राञ्चितं नानालङ्करणं त्रिपञ्चनयनं देदीप्यमानं रुचाम्। हस्ताभैरसिखेटपुस्तकसुधाभाण्डं कुशाद्रीन् हलं खट्वाङ्गं फणिवृक्षधृद्दशभुजं सर्वारिगर्वापहम्।। सर्वारिष्टनिवारकं शुभकरं पिङ्गाक्षमक्षापहं सीतान्वेषणतत्परं कपिवरं कोटीन्दुसूर्यप्रभम्। लङ्काद्वीपभयङ्करं…

कराग्रे वसते लक्ष्मी श्लोक – अर्थ सहित

।। कराग्रे वसते लक्ष्मी – श्लोक ।। कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती। करमूले तु गोविन्दं प्रभाते करदर्शनम्।। हिंदी अर्थ: हमारे हाथों की अंगुलियों के अग्रभाग में माता लक्ष्मी का वास होता है, हाथों के बीच में माता सरस्वती का निवास है, और हाथों की जड़ में भगवान गोविन्द का स्थान है। इसलिए, सुबह के समय…

त्वमेव माता च पिता त्वमेव – श्लोक अर्थ सहित

।। त्वमेव माता च पिता त्वमेव – श्लोक ।। त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव !! हिंदी अर्थ: “आप ही मेरे माता हैं, आप ही मेरे पिता हैं, आप ही मेरे बंधु हैं और आप ही मेरे सखा हैं। आप ही मेरी विद्या हैं,…

यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनं – श्लोक अर्थ सहित

॥ यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनं – श्लोक ॥ यत्र यत्र रघुनाथकीर्तनं तत्र तत्र कृतमस्तकांजलिम् वाष्पवारिपरिपूर्णालोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तकम् ॥ हिंदी अर्थ: जहाँ-जहाँ भगवान श्रीराम की महिमा का गान होता है, वहाँ-वहाँ भगवान हनुमान जी हाथ जोड़े खड़े रहते हैं। उनकी आँखें प्रेमाश्रुओं से भरी होती हैं। मैं उन हनुमान जी को प्रणाम करता हूँ, जो राक्षसों का…

सत्यमेव जयते नानृतम् – श्लोक अर्थ सहित

॥ सत्यमेव जयते नानृतम् – श्लोक ॥ सत्यमेव जयते नानृतम् सत्येन पन्था विततो देवयानः । येनाक्रमत् मनुष्यो ह्यात्मकामो यत्र तत् सत्यस्य परं निधानं ॥ हिंदी अर्थ: सत्य ही सदा विजय प्राप्त करता है, असत्य नहीं। सत्य के मार्ग पर ही देवयान की यात्रा की जाती है, जो परमात्मा तक पहुँचने का मार्ग है। जिस पथ पर…

करारविन्देन पदारविन्दं – श्लोक अर्थ सहित

॥ करारविन्देन पदारविन्दं – श्लोक ॥ करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम् । वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि ॥ हिंदी अर्थ: मैं अपने मन से उस बाल मुकुंद (भगवान कृष्ण) का स्मरण करता हूँ, जो वट वृक्ष के पत्ते पर शयन कर रहे हैं। जिनके कोमल हाथ कमल के समान हैं, जो अपने कमल समान…

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि – श्लोक अर्थ सहित

॥ नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि – श्लोक ॥ नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥ हिंदी अर्थ: यह श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता से लिया गया है, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि आत्मा को न तो कोई शस्त्र काट सकता है, न ही अग्नि जला सकती है। इसे पानी गीला नहीं कर…

సూర్యగ్రహణ శాంతి శ్లోకాః

|| సూర్యగ్రహణ శాంతి శ్లోకాః || శాంతి శ్లోకః – ఇంద్రోఽనలో దండధరశ్చ రక్షః ప్రాచేతసో వాయు కుబేర శర్వాః | మజ్జన్మ ఋక్షే మమ రాశి సంస్థే సూర్యోపరాగం శమయంతు సర్వే || గ్రహణ పీడా పరిహార శ్లోకాః – యోఽసౌ వజ్రధరో దేవః ఆదిత్యానాం ప్రభుర్మతః | సహస్రనయనః శక్రః గ్రహపీడాం వ్యపోహతు || ౧ ముఖం యః సర్వదేవానాం సప్తార్చిరమితద్యుతిః | చంద్రసూర్యోపరాగోత్థాం అగ్నిః పీడాం వ్యపోహతు || ౨ యః కర్మసాక్షీ…

ಸೂರ್ಯಗ್ರಹಣ ಶಾಂತಿ ಶ್ಲೋಕಾಃ

|| ಸೂರ್ಯಗ್ರಹಣ ಶಾಂತಿ ಶ್ಲೋಕಾಃ || ಶಾಂತಿ ಶ್ಲೋಕಾಃ – ಇಂದ್ರೋಽನಲೋ ದಂಡಧರಶ್ಚ ರಕ್ಷಃ ಪ್ರಾಚೇತಸೋ ವಾಯು ಕುಬೇರ ಶರ್ವಾಃ | ಮಜ್ಜನ್ಮ ಋಕ್ಷೇ ಮಮ ರಾಶಿ ಸಂಸ್ಥೇ ಸೂರ್ಯೋಪರಾಗಂ ಶಮಯಂತು ಸರ್ವೇ || ಗ್ರಹಣ ಪೀಡಾ ಪರಿಹಾರ ಶ್ಲೋಕಾಃ – ಯೋಽಸೌ ವಜ್ರಧರೋ ದೇವಃ ಆದಿತ್ಯಾನಾಂ ಪ್ರಭುರ್ಮತಃ | ಸಹಸ್ರನಯನಃ ಶಕ್ರಃ ಗ್ರಹಪೀಡಾಂ ವ್ಯಪೋಹತು || ೧ ಮುಖಂ ಯಃ ಸರ್ವದೇವಾನಾಂ ಸಪ್ತಾರ್ಚಿರಮಿತದ್ಯುತಿಃ | ಚಂದ್ರಸೂರ್ಯೋಪರಾಗೋತ್ಥಾಂ ಅಗ್ನಿಃ ಪೀಡಾಂ ವ್ಯಪೋಹತು || ೨ ಯಃ ಕರ್ಮಸಾಕ್ಷೀ…

ஸூர்யக்ரஹண ஶாந்தி ஶ்லோகா

|| ஸூர்யக்ரஹண ஶாந்தி ஶ்லோகா || ஶாந்தி ஶ்லோக꞉ – இந்த்³ரோ(அ)னலோ த³ண்ட³த⁴ரஶ்ச ரக்ஷ꞉ ப்ராசேதஸோ வாயு குபே³ர ஶர்வா꞉ | மஜ்ஜன்ம ருக்ஷே மம ராஶி ஸம்ஸ்தே² ஸூர்யோபராக³ம் ஶமயந்து ஸர்வே || க்³ரஹண பீடா³ பரிஹார ஶ்லோகா꞉ – யோ(அ)ஸௌ வஜ்ரத⁴ரோ தே³வ꞉ ஆதி³த்யானாம் ப்ரபு⁴ர்மத꞉ | ஸஹஸ்ரனயன꞉ ஶக்ர꞉ க்³ரஹபீடா³ம் வ்யபோஹது || 1 முக²ம் ய꞉ ஸர்வதே³வானாம் ஸப்தார்சிரமிதத்³யுதி꞉ | சந்த்³ரஸூர்யோபராகோ³த்தா²ம் அக்³னி꞉ பீடா³ம் வ்யபோஹது || 2 ய꞉ கர்மஸாக்ஷீ…

Surya Grahana Shanti Parihara Sloka

|| Surya Grahana Shanti Parihara Sloka || śānti ślokāḥ – indro:’nalo daṇḍadharaśca rakṣaḥ prācetaso vāyu kubera śarvāḥ | majjanma r̥kṣe mama rāśi saṁsthe sūryoparāgaṁ śamayantu sarve || grahaṇa pīḍā parihāra ślokāḥ – yo:’sau vajradharo devaḥ ādityānāṁ prabhurmataḥ | sahasranayanaḥ śakraḥ grahapīḍāṁ vyapohatu || 1 mukhaṁ yaḥ sarvadevānāṁ saptārciramitadyutiḥ | candrasūryoparāgotthāṁ agniḥ pīḍāṁ vyapohatu || 2…

सूर्यग्रहण शान्ति श्लोकाः

|| सूर्यग्रहण शान्ति श्लोकाः || शान्ति श्लोकाः – इन्द्रोऽनलो दण्डधरश्च रक्षः प्राचेतसो वायु कुबेर शर्वाः । मज्जन्म ऋक्षे मम राशि संस्थे सूर्योपरागं शमयन्तु सर्वे ॥ ग्रहण पीडा परिहार श्लोकाः – योऽसौ वज्रधरो देवः आदित्यानां प्रभुर्मतः । सहस्रनयनः शक्रः ग्रहपीडां व्यपोहतु ॥ १ मुखं यः सर्वदेवानां सप्तार्चिरमितद्युतिः । चन्द्रसूर्योपरागोत्थां अग्निः पीडां व्यपोहतु ॥ २ यः कर्मसाक्षी…

പഞ്ച ശ്ലോകീ ഗണേശ പുരാണം

|| പഞ്ച ശ്ലോകീ ഗണേശ പുരാണം || ശ്രീവിഘ്നേശപുരാണസാരമുദിതം വ്യാസായ ധാത്രാ പുരാ തത്ഖണ്ഡം പ്രഥമം മഹാഗണപതേശ്ചോപാസനാഖ്യം യഥാ. സംഹർതും ത്രിപുരം ശിവേന ഗണപസ്യാദൗ കൃതം പൂജനം കർതും സൃഷ്ടിമിമാം സ്തുതഃ സ വിധിനാ വ്യാസേന ബുദ്ധ്യാപ്തയേ. സങ്കഷ്ട്യാശ്ച വിനായകസ്യ ച മനോഃ സ്ഥാനസ്യ തീർഥസ്യ വൈ ദൂർവാണാം മഹിമേതി ഭക്തിചരിതം തത്പാർഥിവസ്യാർചനം. തേഭ്യോ യൈര്യദഭീപ്സിതം ഗണപതിസ്തത്തത്പ്രതുഷ്ടോ ദദൗ താഃ സർവാ ന സമർഥ ഏവ കഥിതും ബ്രഹ്മാ കുതോ മാനവഃ. ക്രീഡാകാണ്ഡമഥോ വദേ കൃതയുഗേ ശ്വേതച്ഛവിഃ…

పంచ శ్లోకీ గణేశ పురాణం

|| పంచ శ్లోకీ గణేశ పురాణం || శ్రీవిఘ్నేశపురాణసారముదితం వ్యాసాయ ధాత్రా పురా తత్ఖండం ప్రథమం మహాగణపతేశ్చోపాసనాఖ్యం యథా. సంహర్తుం త్రిపురం శివేన గణపస్యాదౌ కృతం పూజనం కర్తుం సృష్టిమిమాం స్తుతః స విధినా వ్యాసేన బుద్ధ్యాప్తయే. సంకష్ట్యాశ్చ వినాయకస్య చ మనోః స్థానస్య తీర్థస్య వై దూర్వాణాం మహిమేతి భక్తిచరితం తత్పార్థివస్యార్చనం. తేభ్యో యైర్యదభీప్సితం గణపతిస్తత్తత్ప్రతుష్టో దదౌ తాః సర్వా న సమర్థ ఏవ కథితుం బ్రహ్మా కుతో మానవః. క్రీడాకాండమథో వదే కృతయుగే శ్వేతచ్ఛవిః…

பஞ்ச ஸ்லோகி கனேச புராணம்

|| பஞ்ச ஸ்லோகி கனேச புராணம் || ஶ்ரீவிக்னேஶபுராணஸாரமுதிதம் வ்யாஸாய தாத்ரா புரா தத்கண்டம் ப்ரதமம் மஹாகணபதேஶ்சோபாஸனாக்யம் யதா. ஸம்ஹர்தும் த்ரிபுரம் ஶிவேன கணபஸ்யாதௌ க்ருதம் பூஜனம் கர்தும் ஸ்ருஷ்டிமிமாம் ஸ்துத꞉ ஸ விதினா வ்யாஸேன புத்த்யாப்தயே. ஸங்கஷ்ட்யாஶ்ச விநாயகஸ்ய ச மனோ꞉ ஸ்தானஸ்ய தீர்தஸ்ய வை தூர்வாணாம் மஹிமேதி பக்திசரிதம் தத்பார்திவஸ்யார்சனம். தேப்யோ யைர்யதபீப்ஸிதம் கணபதிஸ்தத்தத்ப்ரதுஷ்டோ ததௌ தா꞉ ஸர்வா ந ஸமர்த ஏவ கதிதும் ப்ரஹ்மா குதோ மானவ꞉. க்ரீடாகாண்டமதோ வதே க்ருதயுகே ஶ்வேதச்சவி꞉…

ಪಂಚ ಶ್ಲೋಕೀ ಗಣೇಶ ಪುರಾಣ

|| ಪಂಚ ಶ್ಲೋಕೀ ಗಣೇಶ ಪುರಾಣ || ಶ್ರೀವಿಘ್ನೇಶಪುರಾಣಸಾರಮುದಿತಂ ವ್ಯಾಸಾಯ ಧಾತ್ರಾ ಪುರಾ ತತ್ಖಂಡಂ ಪ್ರಥಮಂ ಮಹಾಗಣಪತೇಶ್ಚೋಪಾಸನಾಖ್ಯಂ ಯಥಾ. ಸಂಹರ್ತುಂ ತ್ರಿಪುರಂ ಶಿವೇನ ಗಣಪಸ್ಯಾದೌ ಕೃತಂ ಪೂಜನಂ ಕರ್ತುಂ ಸೃಷ್ಟಿಮಿಮಾಂ ಸ್ತುತಃ ಸ ವಿಧಿನಾ ವ್ಯಾಸೇನ ಬುದ್ಧ್ಯಾಪ್ತಯೇ. ಸಂಕಷ್ಟ್ಯಾಶ್ಚ ವಿನಾಯಕಸ್ಯ ಚ ಮನೋಃ ಸ್ಥಾನಸ್ಯ ತೀರ್ಥಸ್ಯ ವೈ ದೂರ್ವಾಣಾಂ ಮಹಿಮೇತಿ ಭಕ್ತಿಚರಿತಂ ತತ್ಪಾರ್ಥಿವಸ್ಯಾರ್ಚನಂ. ತೇಭ್ಯೋ ಯೈರ್ಯದಭೀಪ್ಸಿತಂ ಗಣಪತಿಸ್ತತ್ತತ್ಪ್ರತುಷ್ಟೋ ದದೌ ತಾಃ ಸರ್ವಾ ನ ಸಮರ್ಥ ಏವ ಕಥಿತುಂ ಬ್ರಹ್ಮಾ ಕುತೋ ಮಾನವಃ. ಕ್ರೀಡಾಕಾಂಡಮಥೋ ವದೇ ಕೃತಯುಗೇ ಶ್ವೇತಚ್ಛವಿಃ…

पंचश्लोकी गणेश पुराण

|| पंचश्लोकी गणेश पुराण || श्रीविघ्नेशपुराणसारमुदितं व्यासाय धात्रा पुरा तत्खण्डं प्रथमं महागणपतेश्चोपासनाख्यं यथा। संहर्तुं त्रिपुरं शिवेन गणपस्यादौ कृतं पूजनं कर्तुं सृष्टिमिमां स्तुतः स विधिना व्यासेन बुद्ध्याप्तये। सङ्कष्ट्याश्च विनायकस्य च मनोः स्थानस्य तीर्थस्य वै दूर्वाणां महिमेति भक्तिचरितं तत्पार्थिवस्यार्चनम्। तेभ्यो यैर्यदभीप्सितं गणपतिस्तत्तत्प्रतुष्टो ददौ ताः सर्वा न समर्थ एव कथितुं ब्रह्मा कुतो मानवः। क्रीडाकाण्डमथो वदे कृतयुगे श्वेतच्छविः काश्यपः…

జమ్మి చెట్టు శ్లోకం

|| జమ్మి చెట్టు శ్లోకం || శమీ శమయ తే పాపం శమీ శత్రు వినాశినీ | అర్జునస్య ధనుర్ధారీ రామస్య ప్రియదర్శిని || శమీం కమలపత్రాక్షీం శమీం కంటకధారిణీమ్ | ఆరోహతు శమీం లక్ష్మీం నృణామాయుష్యవర్ధనీమ్ || నమో విశ్వాసవృక్షాయ పార్థశస్త్రాస్త్రధారిణే | త్వత్తః పత్రం ప్రతీక్ష్యామి సదా మే విజయీ భవ || ధర్మాత్మా సత్యసంధశ్చ రామో దాశరథిర్యది | పౌరుషే చాఽప్రతిద్వంద్వశ్చరైనం జహిరావణిమ్ || అమంగళానాం ప్రశమీం దుష్కృతస్య చ నాశినీమ్ |…

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं – श्लोक अर्थ सहित

॥ अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं – श्लोक ॥ अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम् । सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातात्मजं नमामि ॥ हिंदी अर्थ: यह श्लोक भगवान हनुमान की महिमा का वर्णन करता है। जिनकी शक्ति अतुलनीय है, जिनका शरीर सोने के पहाड़ों की भाँति है। जिन्होंने दानवों को नष्ट किया, जो ज्ञानियों में अग्रणी हैं।जो समस्त गुणों के स्वामी…

बुद्धिर् बलम् यशो धैर्यम् – श्लोक अर्थ सहित

॥बुद्धिर् बलम् यशो धैर्यम् – श्लोक अर्थ सहित॥ बुद्धिर् बलम् यशो धैर्यम् निर्भयत्वम् अरोगताम् अजाड्यम् वाक् पटुत्वम् च हनुमत् स्मरणात् भवेत् ॥ हिंदी अर्थ: आइये जानें इस संस्कृत श्लोक का अर्थ हिंदी में: बुद्धि (विवेक), बल (शक्ति), यश (कीर्ति), धैर्य (धीरज), निर्भयता (निडरता), अरोग्यता (आरोग्य), आलस्य से मुक्त (अजाद्यम्), और वाणी में कुशलता (वचन कौशल)…

अधरं मधुरं वदनं मधुरं – श्लोक अर्थ सहित

॥ अधरं मधुरं वदनं मधुरं – श्लोक ॥ अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् । हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥ हिंदी अर्थ: आइये जानें इस संस्कृत श्लोक का अर्थ हिंदी में: श्री मधुराधिपति (श्री कृष्ण) का सभी कुछ मधुर है। उनके अधर (होंठ) मधुर है, मुख मधुर है, नेत्र मधुर है,…

एकोनविंशे विंशतिमे – श्लोक अर्थ सहित

॥ एकोनविंशे विंशतिमे – श्लोक ॥ एकोनविंशे विंशतिमे वृष्णिषु प्राप्य जन्मनी । रामकृष्णाविति भुवो भगवानहरद्भरम् ॥ हिंदी अर्थ: आइये जानें इस संस्कृत श्लोक का अर्थ हिंदी में: वृष्णिवंशी कुल में उन्नीसवें तथा बीसवें अवतारों में भगवान कृष्ण के रूप में अवतरित हुए और इस तरह उन्होंने संसार के भार को दूर किया। Ekona-vinse vinsatim vrsnisu…

कृष्णाय वासुदेवाय देवकी नन्दनाय – श्लोक अर्थ सहित

॥ कृष्णाय वासुदेवाय देवकी नन्दनाय – श्लोक ॥ कृष्णाय वासुदेवाय देवकी नन्दनाय च । नन्दगोप कुमाराय गोविन्दाय नमो नमः ॥ हिंदी अर्थ: आइये जानें इस संस्कृत श्लोक का अर्थ हिंदी में: वासुदेव के पुत्र श्रीकृष्ण को, और देवकी नंदन है अर्थात देवकी के पुत्र को, ग्वाल नंद के पुत्र को, जो स्वयं भगवान श्री गोविंद…

विद्या मित्रं प्रवासेषु – श्लोक अर्थ सहित

॥ विद्या मित्रं प्रवासेषु – श्लोक ॥ विद्या मित्रं प्रवासेषु, भार्या मित्रं गृहेषु च । व्याधितस्यौषधं मित्रं, धर्मो मित्रं मृतस्य च ॥ हिंदी अर्थ: आइये जानें इस संस्कृत श्लोक का अर्थ हिंदी में: ज्ञान यात्राओं में मित्र होता है, पत्नी घर में मित्र होती है। बीमार के समय औषधि मित्र होती है, और मरते समय…

संसारकटुवृक्षस्य – श्लोक अर्थ सहित

॥ संसारकटुवृक्षस्य – श्लोक ॥ संसारकटुवृक्षस्य द्वे फले अमृतोपमे । सुभाषितरसास्वादः सङ्गतिः सुजने जने ॥ हिंदी अर्थ: आइये जानें इस संस्कृत श्लोक का अर्थ हिंदी में: संसार के कड़वे पेड़ के दो फल होते हैं जो अमृत के समान होते हैं। एक है मधुर शब्दों का स्वाद और दूसरा सज्जन व्यक्तियों की संगति। Sansaara-katu-vrksasya dve…

श्लोकार्धेन प्रवक्ष्यामि – श्लोक अर्थ सहित

॥ श्लोकार्धेन प्रवक्ष्यामि – श्लोक ॥ श्लोकार्धेन प्रवक्ष्यामि यदुक्तं ग्रन्थकोटिभिः । परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ॥ हिंदी अर्थ: आइये जानें इस संस्कृत श्लोक का अर्थ हिंदी में: जो करोडो ग्रंथों में कहा है, वह मैं आधे श्लोक में कहता हूँ; दूसरों की हित करना पुण्यकारी है, दूसरों को पीड़ित करना पापकारी है। Shlokardhena pravakshyami yaduktam…

कर्मफल-यदाचरित – श्लोक अर्थ सहित

॥ कर्मफल-यदाचरित – श्लोक ॥ कर्मफल-यदाचरित कल्याणि ! शुभं वा यदि वाऽशुभम् । तदेव लभते भद्रे! कर्त्ता कर्मजमात्मनः ॥ हिंदी अर्थ: आइये जानें इस संस्कृत श्लोक का अर्थ हिंदी में: मनुष्य जैसा भी कर्म करता है, वह चाहे अच्छा या बुरा हो, उसे वैसा ही फल मिलता है । कर्त्ता को अपने कर्म का फल…

धर्मज्ञो धर्मकर्ता च – श्लोक अर्थ सहित

॥ धर्मज्ञो धर्मकर्ता च – श्लोक ॥ धर्मज्ञो धर्मकर्ता च सदा धर्मपरायणः। तत्त्वेभ्यः सर्व शास्त्रार्थादेशको गुरुरुच्यते॥ हिंदी अर्थ: आइये जानें इस संस्कृत श्लोक का अर्थ हिंदी में: जो धर्म को जानने वाला है, उसे धर्म का पालन करने वाला, और सदैव धर्मपरायण है। जो सभी शास्त्रों के अर्थ को समझकर उनका उपदेश करता है, वह…

दारिद्रय रोग दुःखानि – श्लोक अर्थ सहित

।। दारिद्रय रोग दुःखानि – श्लोक ।। दारिद्रय रोग दुःखानि बंधन व्यसनानि च। आत्मापराध वृक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम्।। हिंदी अर्थ: आइये जानें इस संस्कृत श्लोक का अर्थ हिंदी में: दारिद्र्य, रोग, दुख, बंधन और व्यसन व्यक्ति द्वारा किये गए पाप रूपी वृक्ष के फल अर्थात परिणाम होते हैं। इन फलों का उपभोग मनुष्य को करना ही…

मूर्खशिष्योपदेशेन – श्लोक अर्थ सहित

॥ मूर्ख शिष्योपदेशेन – श्लोक ॥ मूर्खशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च। दुःखितैः सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति॥ हिंदी अर्थ: आइये जानें इस संस्कृत श्लोक का अर्थ हिंदी में: मूर्ख शिष्य के उपदेश देने से और दुष्ट स्त्री के साथ रहने से, संकटपूर्ण परिस्थितियों के कारण पंडित भी दुःखित हो जाता है। Murkha-sishyopadesena dushtastribharanena cha, duhkhitah samprayogena pandito pyavasidati. English Meaning:…

येषां न विद्या – श्लोक अर्थ सहित

|| येषां न विद्या – श्लोक || येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः | ते मर्त्यलोके भुवि भारभूता मनुष्यरूपेण मृगश्चरन्ति || हिंदी अर्थ: आइये जानें यह संस्कृत श्लोक अर्थ सहित: जिनके पास न विद्या है, न तप, न दान, न ज्ञान, न शील, न गुण, और न…

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय – श्लोक अर्थ सहित

।। वासांसि जीर्णानि यथा विहाय – श्लोक ।। वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा – न्यन्यानि संयाति नवानि देही।। हिंदी अर्थ: यह श्लोक संसारिक अनुभवों को व्यक्त करने के लिए है और इसका मतलब है कि: जैसे कोई व्यक्ति पुराने और प्रयुक्त वस्त्रों को छोड़कर नए वस्त्र पहनता है, उसी…

धर्मो रक्षति रक्षित – श्लोक अर्थ सहित

।⁠। धर्मो रक्षति रक्षित – श्लोक ।⁠। धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः। तस्माद् धर्मं न त्यजामि मा नो धर्मो हतोऽवधीत्।⁠। हिंदी अर्थ: आइये जानें इस संस्कृत श्लोक का अर्थ हिंदी में: जो धर्म का नाश करता है, धर्म उसी का नाश कर देता है और जो धर्म की रक्षा करता है धर्म उसकी…

परित्राणाय साधूनां – श्लोक अर्थ सहित

।। परित्राणाय साधूनां – श्लोक ।। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।। हिंदी अर्थ: श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं: साधुओं की रक्षा के लिए और दुष्कर्मियों (पाप करने वालों) का नाश करने के लिए, और धर्म की स्थापना के लिए मैं युगों-युगों में प्रकट होता हूँ। Paritranaya sadhunam…

आलस्यं हि मनुष्याणां – श्लोक अर्थ सहित

।। आलस्यं हि मनुष्याणां – श्लोक ।। आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः। नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।। हिंदी अर्थ: आइये जानें इस संस्कृत श्लोक का अर्थ हिंदी में: मनुष्यों के लिए आलस्य उनके शरीर में बसा महान शत्रु है। उद्यमी व्यक्ति के लिए परिश्रम जैसा कोई मित्र नहीं होता, क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी…

काक चेष्टा, बको ध्यानं – श्लोक अर्थ सहित

।। काक चेष्टा, बको ध्यानं – श्लोक ।। काक चेष्टा, बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च। अल्पहारी, गृहत्यागी, विद्यार्थी पंच लक्षणं।। हिंदी अर्थ: आइये जानें यह संस्कृत श्लोक अर्थ सहित: विद्या के लिए प्रतिबद्ध विद्यार्थी (छात्र) मे यह पांच लक्षण होने चाहिए – कौवे की तरह जानने की चेष्टा, बगुले की तरह ध्यान, कुत्ते की…

सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात् – श्लोक अर्थ सहित

।। सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयात् – श्लोक ।। सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यम् अप्रियम् प्रियं च नानृतम् ब्रूयात् एष धर्मः सनातन: हिंदी अर्थ: आइये जानें यह संस्कृत श्लोक अर्थ सहित: सत्य बोलें, प्रिय बातें बोलें, पर अप्रिय सत्य नहीं बोलें। प्रिय असत्य भी न बोलें, यही सनातन धर्म है। यह श्लोक मानवीय संवाद…