‘श्री बृहदारण्यकोपनिषत्’ भारतीय उपनिषद साहित्य का एक प्रमुख ग्रंथ है, जो वेदांत दर्शन के गूढ़ तत्वों और आत्मा-ब्रह्म के अद्वैत सिद्धांत को उजागर करता है। इसका हिंदी भाष्य पंडित पितांबर शास्त्री जी ने किया है, जो उपनिषद के गहन रहस्यों को सरल भाषा में प्रस्तुत करने वाले एक अद्वितीय विद्वान थे।
पंडित पितांबर शास्त्री भारतीय वैदिक परंपरा और वेदांत दर्शन के प्रतिष्ठित विद्वान थे। उन्होंने उपनिषदों और वेदांत के दार्शनिक सिद्धांतों को गहराई से समझा और अपने भाष्य के माध्यम से इन्हें आम जनता के लिए सरल और सुलभ बनाया। उनकी यह कृति वेदांत जिज्ञासुओं और साधकों के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शन है।
यह उपनिषद यजुर्वेद का एक भाग है और इसका नाम “बृहद्” (विशाल) और “आरण्यक” (वन में अध्ययन किया गया) के कारण पड़ा। यह ज्ञान और आत्मा के तत्व को समझाने वाला एक विस्तृत ग्रंथ है। इसमें आत्मा और ब्रह्म के संबंध, कर्म, ज्ञान, और मोक्ष पर गहन चर्चा की गई है।
श्री बृहदारण्यकोपनिषत् पुस्तक की मुख्य विशेषताएं
- ग्रंथ में आत्मा और ब्रह्म को एक माना गया है। इसमें कहा गया है कि आत्मा (जीव) और ब्रह्म (सर्वोच्च चेतना) अलग नहीं हैं, बल्कि एक ही सत्य के दो रूप हैं।
- बृहदारण्यक उपनिषद यह सिखाता है कि आत्मज्ञान ही मोक्ष प्राप्ति का मार्ग है। बाहरी कर्मों की तुलना में आंतरिक ज्ञान को अधिक महत्वपूर्ण बताया गया है।
- इस उपनिषद में प्रसिद्ध वेदांत महावाक्य “अहं ब्रह्मास्मि” (मैं ही ब्रह्म हूं) का उल्लेख है, जो अद्वैत सिद्धांत का मूल आधार है।
- पुस्तक में याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी के संवाद के माध्यम से आत्मा की अमरता और शरीर के नाश का गूढ़ रहस्य समझाया गया है।
- यह ग्रंथ बताता है कि कर्म का फल भोगना अनिवार्य है, लेकिन आत्मा का उद्देश्य इन कर्मों के बंधन से मुक्त होकर ब्रह्म से एकत्व प्राप्त करना है।
- शास्त्री जी ने इस ग्रंथ को सरल हिंदी भाषा में प्रस्तुत किया, जिससे इसका गूढ़ दर्शन भी सामान्य पाठक के लिए सुलभ हो गया। उनके भाष्य में वेदांत की गहराई और उसकी व्यावहारिकता स्पष्ट झलकती है।
श्री बृहदारण्यकोपनिषत् पुस्तक क्यों पढ़ें?
- यदि आप अद्वैत वेदांत और उपनिषद दर्शन को गहराई से समझना चाहते हैं।
- यदि आप आत्मा और ब्रह्म के गूढ़ रहस्यों को जानने के इच्छुक हैं।
- यदि आप मोक्ष प्राप्ति और आत्मज्ञान की प्रक्रिया को सरल और व्यावहारिक रूप में समझना चाहते हैं।