तैत्तिरीयोपनिषद् गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो वेदों के गूढ़ और दार्शनिक ज्ञान को सरल भाषा में प्रस्तुत करता है। यह ग्रंथ यजुर्वेद के अंतर्गत आता है और भारतीय दर्शन, अध्यात्म तथा जीवन के उच्चतर लक्ष्यों को समझाने में सहायक है। इसमें ब्रह्मविद्या, आत्मा, और जीवन के उद्देश्य पर गहराई से चर्चा की गई है।
तैत्तिरीयोपनिषद् पुस्तक की विशेषताएँ
“तैत्तिरीयोपनिषद्” में तीन प्रमुख खंड हैं –
- शिक्षावल्ली: इसमें शिक्षा (अध्ययन) और गुरु-शिष्य परंपरा का वर्णन है।
- आनंदवल्ली: यह खंड आत्मा और ब्रह्म का गहन विश्लेषण करता है।
- भृगुवल्ली: इसमें भृगु ऋषि द्वारा ब्रह्म का अनुभव और उसकी व्याख्या दी गई है।
- यह उपनिषद आत्मा, ब्रह्म, और सृष्टि के रहस्यों को समझाने का प्रयास करता है। इसमें आत्मा को ब्रह्म के रूप में पहचानने और आत्मज्ञान प्राप्त करने की विधि पर जोर दिया गया है।
- गीता प्रेस ने मूल संस्कृत श्लोकों के साथ उनका सरल हिंदी अनुवाद और व्याख्या प्रदान की है, जिससे पाठकों को इसका गूढ़ अर्थ समझने में आसानी होती है।
- “तैत्तिरीयोपनिषद्” में बताया गया है कि सच्चा आनंद केवल आत्मज्ञान और ब्रह्म के साथ एकत्व में ही पाया जा सकता है। यह मानव जीवन के वास्तविक उद्देश्य की ओर संकेत करता है।
- इस ग्रंथ में गुरु-शिष्य के बीच ज्ञान के आदान-प्रदान और शिक्षा के महत्व को भी विस्तार से बताया गया है।