2025 में, वरलक्ष्मी व्रत कब मनाया जाएगा, इसका क्या महत्व है, पूजा विधि क्या है और यह क्यों दक्षिण भारत की एक विशेष परंपरा है, आइए इन सभी रहस्यों से पर्दा उठाते हैं। भारत, विविधताओं का देश, जहाँ हर त्योहार अपने आप में एक अनूठी कहानी समेटे हुए है। इन्हीं में से एक है वरलक्ष्मी व्रत, जो विशेष रूप से दक्षिण भारत में बड़े हर्षोल्लास और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह व्रत देवी लक्ष्मी को समर्पित है, जो धन, समृद्धि, भाग्य और सौंदर्य की देवी हैं। विवाहित महिलाएँ अपने परिवार की खुशहाली, पति के लंबे जीवन और संतान के सुख के लिए इस व्रत को करती हैं।
वरलक्ष्मी व्रत 2025 – कब है शुभ मुहूर्त और महत्वपूर्ण तिथियाँ?
वरलक्ष्मी व्रत श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से पहले आने वाले शुक्रवार को मनाया जाता है। 2025 में, वरलक्ष्मी व्रत शुक्रवार, 8 अगस्त 2025 को मनाया जाएगा।
महत्वपूर्ण पूजा मुहूर्त
- सिंह लग्न पूजा मुहूर्त (सुबह): 06:14 AM से 08:32 AM (अवधि: 2 घंटे 18 मिनट)
- वृश्चिक लग्न पूजा मुहूर्त (दोपहर): 02:47 PM से 04:54 PM (अवधि: 2 घंटे 7 मिनट)
- कुंभ लग्न पूजा मुहूर्त (शाम): 08:50 PM से 10:19 PM (अवधि: 1 घंटा 29 मिनट)
- वृषभ लग्न पूजा मुहूर्त (मध्यरात्रि): 01:21 AM से 03:22 AM, 9 अगस्त (अवधि: 2 घंटे 1 मिनट)
इन मुहूर्तों में पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि इस समय देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर वास करती हैं और भक्तों की मनोकामनाएँ पूरी करती हैं।
वरलक्ष्मी व्रत का महत्व – क्यों है यह व्रत इतना खास?
वरलक्ष्मी व्रत केवल एक उपवास नहीं, बल्कि देवी लक्ष्मी के प्रति असीम श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है। “वरलक्ष्मी” शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है – “वर” जिसका अर्थ है वरदान और “लक्ष्मी” जिसका अर्थ है धन की देवी। इस व्रत को करने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को अष्टलक्ष्मी के आशीर्वाद प्रदान करती हैं।
अष्टलक्ष्मी के आठ रूप और उनका महत्व
- धन लक्ष्मी: धन और समृद्धि।
- धान्य लक्ष्मी: अन्न और कृषि उपज।
- धैर्य लक्ष्मी: साहस और धैर्य।
- गज लक्ष्मी: शक्ति और ऐश्वर्य।
- संतान लक्ष्मी: संतान सुख।
- विजय लक्ष्मी: विजय और सफलता।
- विद्या लक्ष्मी: ज्ञान और बुद्धि।
- ऐश्वर्य लक्ष्मी: सुख और विलासिता।
यह माना जाता है कि जो महिलाएँ सच्ची श्रद्धा और भक्ति के साथ इस व्रत का पालन करती हैं, उन्हें इन सभी आठ प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है। यह व्रत परिवार में सुख-शांति, समृद्धि और सौभाग्य लाता है। पति की लंबी आयु और बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए भी यह व्रत अत्यंत फलदायी माना जाता है।
वरलक्ष्मी व्रत की पूजा विधि
वरलक्ष्मी व्रत की पूजा विधि बहुत विस्तृत और श्रद्धा से परिपूर्ण होती है। यहाँ एक विस्तृत पूजा विधि दी गई है जिसका पालन करके आप देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं:
1. व्रत से एक दिन पहले की तैयारी
- पूरे घर की अच्छी तरह से सफाई करें, विशेषकर पूजा स्थल की।
- पूजा के लिए आवश्यक सभी सामग्री को इकट्ठा कर लें ताकि अंतिम समय में कोई परेशानी न हो।
- यदि संभव हो, तो एक अखंड दीपक की व्यवस्था करें जो व्रत के दौरान जलता रहे।
2. वरलक्ष्मी व्रत के दिन
सुबह की तैयारी:
- सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा शुरू करने से पहले, हाथ में गंगाजल, चावल और फूल लेकर व्रत का संकल्प लें। मन ही मन देवी लक्ष्मी से अपनी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना करें।
पूजा की स्थापना:
- एक साफ चौकी या वेदी स्थापित करें। इसे लाल या पीले रंग के कपड़े से ढँक दें।
- चौकी पर चावल का एक छोटा ढेर बनाएँ, जिस पर कलश स्थापित किया जाएगा।
- कलश स्थापना – एक पीतल या तांबे का कलश लें और उसे पानी से भर दें। कलश में कुछ सिक्के, सुपारी, हल्दी, कुमकुम, चावल और कुछ फूल डालें। कलश के मुख पर आम के पत्ते रखें। एक नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर रखें। नारियल पर कुमकुम और हल्दी से स्वास्तिक बनाएँ। कुछ लोग नारियल पर देवी लक्ष्मी की छवि वाला मुखौटा भी लगाते हैं। कलश के सामने देवी लक्ष्मी की एक मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। इसे फूलों से सजाएँ।
पूजा विधि:
- किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा अनिवार्य है। सर्वप्रथम गणेश वंदना करें और उन्हें दूर्वा, मोदक आदि अर्पित करें।
- देवी लक्ष्मी का ध्यान करते हुए उनका आवाहन करें। मंत्रों का जाप करते हुए उन्हें आसन ग्रहण करने का निमंत्रण दें। आवाहन मंत्र: ओम श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सिद्धलक्ष्म्यै नमः
- देवी के चरणों में जल अर्पित करें, अर्घ्य दें और आचमन के लिए जल दें।
- देवी लक्ष्मी की मूर्ति को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, चीनी का मिश्रण) और फिर शुद्ध जल से स्नान कराएँ।
- देवी को नए वस्त्र या लाल चुनरी अर्पित करें।
- देवी को आभूषण, माला और श्रृंगार सामग्री (सिंदूर, बिंदी, चूड़ियाँ आदि) अर्पित करें।
- देवी को चंदन, कुमकुम और अक्षत (बिना टूटे चावल) अर्पित करें।
- लाल कमल, गुलाब या अन्य सुगंधित फूल अर्पित करें।
- धूप जलाएँ और दीपक प्रज्वलित करें। अखंड दीपक जलाना शुभ माना जाता है।
- देवी को विभिन्न प्रकार के मिष्ठान, फल और पकवान अर्पित करें। नारियल, गुड़, पान-सुपारी, सूखे मेवे, और खीर विशेष रूप से अर्पित किए जाते हैं।
- विभिन्न प्रकार के मौसमी फल अर्पित करें।
- देवी लक्ष्मी के 108 नामों का जाप करें। यह विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
- व्रत कथा का पाठ करें या सुनें। कथा सुनने से व्रत का महत्व और फल मिलता है।
- घी के दीपक से देवी लक्ष्मी की आरती करें। आरती करते समय सभी परिवार के सदस्य उपस्थित रहें।
- ओम श्री महालक्ष्म्यै नमः या अन्य लक्ष्मी मंत्रों का जाप करें।
- देवी की परिक्रमा करें।
- पूजा में हुई किसी भी भूल-चूक के लिए देवी से क्षमा याचना करें।
- पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद सभी में वितरित करें और स्वयं भी ग्रहण करें।
शाम की पूजा:
कई घरों में शाम को भी एक छोटी पूजा की जाती है, जिसमें दीपक जलाया जाता है और आरती की जाती है। इस समय भी देवी से आशीर्वाद मांगा जाता है।
व्रत का पारण:
- व्रत का पारण शाम को पूजा के बाद या अगले दिन सुबह किया जा सकता है।
- पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करके व्रत का पारण करें।
- कई लोग अगले दिन सुबह स्नान करने के बाद कलश के पानी को घर के चारों ओर छिड़कते हैं और नारियल को फोड़कर प्रसाद के रूप में वितरित करते हैं।
वरलक्ष्मी व्रत कथा – चारुमति की भक्ति और देवी लक्ष्मी का वरदान
वरलक्ष्मी व्रत की कथा, चारुमति नामक एक धर्मपरायण महिला की कहानी है, जो देवी लक्ष्मी की भक्ति और उनके द्वारा दिए गए वरदान को दर्शाती है। यह कथा इस व्रत के महत्व को और अधिक स्पष्ट करती है।
प्राचीन काल में, मगध देश में कुण्डिन्यपुर नामक एक सुंदर नगर था। इस नगर में चारुमति नामक एक अत्यंत धार्मिक और पतिव्रता स्त्री रहती थी। चारुमति भगवान शिव की परम भक्त थी और अपने पति की सेवा में सदैव लीन रहती थी। वह प्रतिदिन अपने घर के सभी कार्य पूरी निष्ठा से करती थी और कभी भी किसी का अनादर नहीं करती थी। उसकी विनम्रता, दयालुता और भक्ति पूरे नगर में प्रसिद्ध थी।
एक रात, जब चारुमति गहरी नींद में थी, तब देवी लक्ष्मी ने उसके सपने में दर्शन दिए। देवी लक्ष्मी ने अपने दिव्य रूप में चारुमति को बताया, “हे चारुमति! मैं लक्ष्मी हूँ। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से पहले आने वाले शुक्रवार को वरलक्ष्मी व्रत का पालन करो। इस व्रत को करने से तुम्हें मेरी असीम कृपा प्राप्त होगी और तुम सुख-समृद्धि से परिपूर्ण हो जाओगी।”
देवी लक्ष्मी ने चारुमति को व्रत की विधि भी विस्तार से बताई। उन्होंने कहा कि इस व्रत में मेरे अष्टलक्ष्मी स्वरूपों की पूजा की जाती है और जो कोई भी सच्ची श्रद्धा से इस व्रत को करता है, उसे धन, धान्य, साहस, संतान, विजय, विद्या, ऐश्वर्य और वैभव – इन सभी आठ प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।
सुबह जागने पर, चारुमति को अपने सपने पर पूर्ण विश्वास हुआ। उसने तुरंत अपनी सास और पति को सपने के बारे में बताया। उसके परिवार ने भी उसके सपने को गंभीरता से लिया और उसे व्रत करने के लिए प्रोत्साहित किया।
वरलक्ष्मी व्रत का दिन आया। चारुमति ने देवी लक्ष्मी द्वारा बताए गए अनुसार सभी तैयारी की। उसने प्रातःकाल स्नान किया और स्वच्छ वस्त्र धारण किए। उसने अपने घर में एक सुंदर पूजा वेदी स्थापित की और उस पर देवी लक्ष्मी की मूर्ति को स्थापित किया। उसने कलश स्थापना की और सभी आवश्यक पूजा सामग्री एकत्र की।
चारुमति ने पूरे विधि-विधान से पूजा आरंभ की। उसने भगवान गणेश की पूजा के बाद देवी लक्ष्मी का आवाहन किया और उन्हें पंचामृत से स्नान कराया। उसने देवी को नए वस्त्र, आभूषण और श्रृंगार सामग्री अर्पित की। उसने धूप, दीप जलाए और विभिन्न प्रकार के नैवेद्य अर्पित किए। उसने देवी लक्ष्मी के 108 नामों का जाप किया और व्रत कथा का श्रवण किया। उसकी भक्ति और एकाग्रता इतनी गहरी थी कि उसने आसपास के सभी लोगों को प्रभावित किया।
पूजा समाप्त होने के बाद, चारुमति ने देवी लक्ष्मी की आरती की और अपने परिवार के साथ प्रसाद ग्रहण किया। उसने पड़ोस की अन्य महिलाओं को भी अपने घर आमंत्रित किया और उन्हें प्रसाद वितरित किया। उसने सभी महिलाओं को वरलक्ष्मी व्रत का महत्व बताया और उन्हें भी इस व्रत को करने के लिए प्रेरित किया।
चारुमति की सच्ची भक्ति और श्रद्धा से देवी लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न हुईं। कुछ ही समय में, चारुमति के घर में सुख-समृद्धि की वर्षा होने लगी। उसका घर धन-धान्य से भर गया। उसके पति का व्यापार फला-फूला, और उसके बच्चे तेजस्वी और गुणवान हुए। उसका परिवार पहले से कहीं अधिक सुखी और संपन्न हो गया। उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई और लोग उसे वरलक्ष्मी के आशीर्वाद से धन्य मानने लगे।
यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची श्रद्धा, भक्ति और निष्ठा से किए गए किसी भी कार्य का फल अवश्य मिलता है। वरलक्ष्मी व्रत का पालन करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में सभी प्रकार के सुख और समृद्धि आती है। यह व्रत महिलाओं को शक्ति, साहस और धैर्य प्रदान करता है और उन्हें अपने परिवार की खुशहाली के लिए प्रार्थना करने का अवसर देता है। यह कथा दक्षिण भारत में पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुनाई जाती है और इसने वरलक्ष्मी व्रत की परंपरा को और मजबूत किया है।
वरलक्ष्मी व्रत के लाभ
वरलक्ष्मी व्रत का पालन करने से कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं, जो न केवल भौतिक बल्कि आध्यात्मिक भी होते हैं।
- यह व्रत सीधे तौर पर देवी लक्ष्मी से जुड़ा है, जो धन की देवी हैं। इसलिए, इस व्रत को करने से आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और घर में धन का आगमन होता है।
- वरलक्ष्मी व्रत परिवार में सामंजस्य, प्रेम और शांति लाता है। यह परिवार के सदस्यों के बीच संबंधों को मजबूत करता है।
- विवाहित महिलाएँ अपने पति के लंबे और स्वस्थ जीवन के लिए यह व्रत करती हैं। यह पति-पत्नी के बंधन को मजबूत करता है।
- जो दंपत्ति संतान की इच्छा रखते हैं, उनके लिए यह व्रत विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। यह संतान के उज्ज्वल भविष्य के लिए भी सहायक होता है।
- इस व्रत से सौभाग्य में वृद्धि होती है और जीवन में ऐश्वर्य और विलासिता आती है।
- देवी लक्ष्मी केवल धन ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और कल्याण भी प्रदान करती हैं। यह व्रत शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करता है।
- पूजा और मंत्र जाप से घर से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
- यह व्रत व्यक्ति को आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर करता है और मन में शांति और संतोष लाता है।
- जैसा कि पहले बताया गया है, यह व्रत अष्टलक्ष्मी के आठ रूपों से आशीर्वाद प्राप्त करने का एक सीधा माध्यम है, जिससे जीवन के सभी क्षेत्रों में पूर्णता आती है।
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