श्री वासुपूज्य चालीसा PDF हिन्दी
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।। दोहा ।।
वासु पूज्य महाराज का
चालीसा सुखकार ।
विनय प्रेम से बॉचिये
करके ध्यान विचार ।
।। चोपाई ।।
जय श्री वासु पूज्य सुखकारी,
दीन दयाल बाल ब्रह्मचारी ।
अदभुत चम्पापुर राजधानी,
धर्मी न्यायी ज्ञानी दानी ।
वसू पूज्य यहाँ के राजा,
करते राज काज निष्काजा ।
आपस में सब प्रेम बढाने,
बारह शुद्ध भावना भाते ।
गऊ शेर आपस में मिलते,
तीनों मौसम सुख में कटते ।
सब्जी फल घी दूध हों घर घर,
आते जाते मुनि निरन्तर ।
वस्तु समय पर होती सारी,
जहाँ न हों चोरी बीमारी ।
जिन मन्दिर पर ध्वजा फहरायें,
घन्टे घरनावल झन्नायेँ ।
शोभित अतिशय मई प्रतिमाये,
मन वैराग्य देख छा जाये ।
पूजन, दर्शन नव्हन कराये,
करें आरती दीप जलायें ।
राग रागनी गायन गायें,
तरह तरह के साज बजायें ।
कोई अलौकिक नृत्य दिखाये,
श्रावक भक्ति में भर जायें ।
होती निशदिन शास्त्र सभायें,
पद्मासन करते स्वाध्याये ।
विषय कषाये पाप नसायें,
संयम नियम विवेक सुहाये ।
रागद्वेष अभिमान नशाते,
गृहस्थी त्यागी धर्मं निभाते ।
मिटें परिग्रह सब तृष्णायें,
अनेकान्त दश धर्म रमायें ।
छठ अषाढ़ बदी उर-आये,
विजया रानी भाग्य जगाये ।
सुन रानी से सोलह सुपने,
राजा मन में लगे हरषने ।
तीर्थंकर लें जन्म तुम्हारे,
होंगे अब उद्धार हमारे ।
तीनो वक्त नित रत्न बरसते,
विजया मां के आँगन भरते ।
साढे दस करोड़ थी गिनती,
परजा अपनी झोली भरती ।
फागुन चौदस बदि जन्माये,
सुरपति अदभुत जिन गुण गाये ।
मति श्रुत अवधि ज्ञान भंडारी,
चालिस गुण सब अतिशय धारी ।
नाटक ताण्डव नृत्य दिखाये,
नव भव प्रभुजी के दरशाये ।
पाण्डु शिला पर नव्हन करायें,
वस्त्रभूषन वदन सजाये ।
सब जग उत्सव हर्ष मनायें,
नारी नर सुर झूला झुलाये ।
बीते सुख में दिन बचपन के,
हुए अठारह लारव वर्ष के ।
आप बारहवें हो तीर्थकर,
भैसा चिंह आपका जिनवर ।
धनुष पचास बदन केशरिया,
निस्पृह पर उपकार करइया ।
दर्शन पूजा जप तप करते,
आत्म चिन्तवन में नित रमते ।
गुर-मुनियों का आदर करते,
पाप विषय भोगों से बचते ।
शादी अपनी नहीं कराई,
हारे तात मात समझाई ।
मात पिता राज तज दीने,
दीक्षा ले दुद्धर तप कीने ।
माघ सुदी दोयज दिन आया,
कैवलज्ञान आपने पाया ।
समोशरण सुर रचे जहाँ पर,
छासठ उसमें रहते गणधर ।
वासु पूज्य की खिरती वाणी,
जिसको गणधरवों ने जानी ।
मुख से उनके वो निकली थी,
सब जीवों ने वह समझी थी ।
आपा आप आप प्रगटाया,
निज गुण ज्ञान भान चमकाया ।
सब भूलों को राह दिखाई,
रत्नत्रय की जोत जलाई ।
आत्म गुण अनुभव करवाया,
‘सुमत’ जैनमत जग फैलाया ।
सुदी भादवा चौदस आई,
चम्पा नगरी मुक्ती पाई ।
आयु बहत्तर लारव वर्ष की,
बीती सारी हर्ष धर्म की ।
और चोरानवें थे श्री मुनिवर,
पहुँच गये वो भी सब शिवपुर ।
तभी वहाँ इन्दर सुर आये,
उत्सव मिल निर्वाण मनाये ।
देह उडी कर्पुर समाना,
मधुर सुगन्धी फैला नाना ।
फैलाई रत्नों की माला,
चारों दिशा चमके उजियाला ।
कहै सुमत क्या गुण जिन राई,
तुम पर्वत हो मैं हूँ राई ।
जब ही भक्ती भाव हुआ है,
चम्पापुर का ध्यान किया हैं ।
लगी आश मै भी कभी जाऊँ,
वासु पूज्य के दर्शन पाऊँ ।
।। सोरठा ।।
खेये धूप सुगन्ध,
वासु पूज्य प्रभु ध्यान के ।
कर्म भार सब तार,
रूप स्वरूप निहार के ।
मति जो मन में होय,
रहें वैसी हो गति आय के ।
करो सुमत रसपान,
सरल निजातम पाय के ।
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