विश्वंभरी स्तुति PDF

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|| विश्वंभरी स्तुति || विश्वंभरी अखिल विश्वतणी जनेता, विद्या धरी वदनमां वसजो विधाता। दुर्बुद्धिने दुर करी सद्बुद्धि आपो, माम् पाहि ओम भगवति भवदुःख कापो ॥ भुलो पडी भवरणे भटकु भवानी, सुझे नही लगिर कोई दिशा जवानी । भासे भयंकर वळी मनना उतापो, माम् पाही ओम भगवति भवदुःख कापो ॥ आ रंकने उगरवा नथी कोई आरो,...

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विश्वंभरी स्तुति
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