अखुरठा संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा PDF हिन्दी
Download PDF of Akhuratha Sankashti Chaturthi Vrat Katha
Shri Ganesh ✦ Vrat Katha (व्रत कथा संग्रह) ✦ हिन्दी
अखुरठा संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा हिन्दी Lyrics
|| अखुरथ संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा ||
संकष्टी चतुर्थी से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव और पार्वती ने चौसर खेलने का निर्णय लिया। हालांकि, खेल की निगरानी करने वाला कोई नहीं था, इसलिए भगवान शिव ने अपनी शक्तियों से एक छोटे लड़के को उत्पन्न किया और उसे रेफरी बनने के लिए कहा। लड़का सहमत हो गया और दिव्य युगल ने खेल खेलना शुरू कर दिया।
देवी पार्वती ने लगातार तीन मौकों पर खेल जीता, लेकिन लड़का हमेशा भगवान शिव को विजेता घोषित करता रहा। लड़के के पक्षपातपूर्ण रवैये से क्रोधित होकर, माता पार्वती ने उसे यह कहकर श्राप दिया कि वह दलदल में रहेगा। सजा मिलने के तुरंत बाद, लड़के ने उनसे दया की भीख माँगी और यह कहकर माफी मांगी कि उसने अज्ञानता में ऐसा किया था।
लड़के की सच्ची प्रार्थना सुनने के बाद, माता पार्वती ने उससे नाग कन्याओं के आने का इंतज़ार करने और संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत के बारे में जानने को कहा। उन्होंने उसे श्राप से मुक्ति पाने के लिए 21 दिनों तक व्रत रखने को कहा। माता पार्वती के सुझाव के अनुसार, छोटे लड़के ने व्रत रखा और भगवान गणेश को प्रसन्न करने में सफल रहा।
इस बीच, भगवान शिव ने भी देवी पार्वती को शांत करने के लिए व्रत रखा, जो उनसे नाराज़ थीं। और दिलचस्प बात यह है कि देवी पार्वती, जो अपने बेटे कार्तिकेय से मिलना चाहती थीं, ने भी व्रत रखा। नतीजतन, देवी पार्वती कैलाश लौट आईं।
अखुरठा संकष्टी चतुर्थी व्रत – दूसरी कथा
एक बार की बात है, भगवान विष्णु का विवाह लक्ष्मी जी के साथ तय हो गया था। विवाह की तैयारियाँ हो रही थीं। सभी देवताओं को निमंत्रण पत्र भेजे गए, लेकिन भूलवश गणेश जी को निमंत्रण पत्र नहीं भेजा गया। भगवान विष्णु की बारात निकलने का समय आ चुका था। सभी देवी-देवता विवाह समारोह में आ चुके थे।
तभी सबको ध्यान आया कि गणेश जी कहीं भी उपस्थित नहीं हैं। सभी आपस में चर्चा करने लगे कि गणेश जी को न्योता नहीं भेजा गया है या गणेश जी खुद ही नहीं आए हैं? इस बात पर सभी आश्चर्यचकित थे। सबने मिलकर विचार किया कि इस बारे में भगवान विष्णु से ही पूछा जाए।
पूछे जाने पर भगवान विष्णु ने उत्तर दिया कि उन्होंने गणेश जी के पिता महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेश अपने पिता के साथ चाहें तो आ सकते हैं, उन्हें अलग से न्योता देने की आवश्यकता नहीं है। साथ ही, उनको सवा मन चावल, सवा मन मूंग, सवा मन लड्डू और सवा मन घी का भोजन चाहिए होता है। तो अगर गणेश नहीं आना चाहते तो भी कोई बात नहीं। उन्हें दूसरे के घर जाकर इतना भोजन नहीं करना चाहिए।
इन बातों के बीच किसी ने चुहल की कि यदि गणेश जी आएं तो उनको द्वारपाल बना कर बैठा देंगे ताकि वे घर का ख्याल रख सकें। वे अगर चूहे पर बैठकर चलेंगे तो बारात से पीछे ही रह जाएंगे। यह सुझाव सभी को पसंद आ गया, साथ ही भगवान विष्णु ने भी अपनी सहमति दे दी।
इतने में गणेश जी वहां आ पहुंचे। सभी ने उन्हें समझा-बुझाकर घर की रखवाली करने के लिए बैठा दिया। बारात के चलने के बाद नारद जी की नजर गणेश जी पर पड़ी जो द्वार पर ही बैठे हुए थे। नारद जी ने गणेश जी के पास जाकर उनसे रुकने का कारण पूछा।
गणेश जी ने उत्तर दिया कि भगवान विष्णु ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारद जी ने उन्हें अपनी मूषक सेना को आगे भेजने की सलाह दी, जो आगे जाकर रास्ता खोद देगी, जिससे बारात और सभी लोग धरती में धंस जाएंगे, तब सभी को गणेश जी को सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा।
गणेश जी ने अपनी मूषक सेना को तुरंत ही आगे भेज दिया और उस सेना ने जमीन खोद डाली। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में फंस गए। लाख प्रयत्नों के बाद भी पहिए नहीं निकले। सभी ने अलग-अलग उपाय किए, परंतु पहिए नहीं निकाल पाए। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करें।
तब नारद जी ने सबसे कहा कि आप लोगों ने गणेश जी का अपमान करके अच्छा नहीं किया। जब आप लोग उन्हें मनाकर लाएंगे तभी सभी कार्य सही होंगे और यह संकट टल जाएगा। भगवान शिव ने तुरंत ही अपने दूत नंदी को गणेश जी को साथ लेकर आने को भेजा। गणेश जी का मानपूर्वक पूजन किया गया, तब कहीं रथ के पहिए बाहर निकले। रथ के पहिए निकल तो गए, लेकिन वे काफी टूट-फूट गए थे।
पास के खेत में एक खाती काम कर रहा था, जिसे बुलाया गया। खाती अपना काम शुरू करने से पहले ‘श्री गणेशाय नमः’ का जाप कर गणेश जी की वंदना मन ही मन करने लगा। देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को दुरुस्त कर दिया। फिर खाती ने कहा, “हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेश जी की आराधना नहीं की होगी और न ही उन्हें याद किया होगा, इसीलिए आपके ऊपर यह संकट आया।
हम तो मूरख अज्ञानी हैं, फिर भी हर काम के पहले गणेश जी की पूजा करते हैं, उनका ध्यान करते हैं। आप लोग तो देवता हैं, तो आप सभी गणेश जी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान गणेश जी की जय-जयकार करते हुए आगे बढ़ें, इससे आपके सभी काम बन जाएंगे और संकट दूर हो जाएंगे।”
और भगवान गणेश के जय-जयकार के साथ बारात वहां से चल दी। भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का विवाह संपन्न हुआ और सभी सकुशल घर लौट आए।
|| अखुरठा संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत नियम ||
- सुबह जल्दी उठें (अधिमानतः ब्रह्म मुहूर्त के दौरान – सूर्योदय से लगभग दो घंटे पहले)।
- स्नान करें और साफ़ कपड़े पहनें।
- ब्रह्मचर्य बनाए रखें।
- चावल, गेहूं और दाल किसी भी रूप में न खाएं। हालाँकि, आप फल, दूध या व्रत के व्यंजन ले सकते हैं।
- नाम जाप करें। ‘ॐ गणेशाय नमः’ का जप करें।
- तम्बाकू और शराब का सेवन सख्त वर्जित है।
Join HinduNidhi WhatsApp Channel
Stay updated with the latest Hindu Text, updates, and exclusive content. Join our WhatsApp channel now!
Join Nowअखुरठा संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
READ
अखुरठा संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
on HinduNidhi Android App