हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है। यह तिथि पितरों को श्रद्धांजलि देने, व्रत, पूजा-पाठ और ध्यान के लिए उपयुक्त मानी जाती है। अमावस्या पर किए गए कार्यों का प्रभाव गहरा और सकारात्मक माना जाता है। 2025 में आने वाली अमावस्या तिथियों की पूरी जानकारी नीचे दी गई है।
हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि को बहुत पवित्र और महत्वपूर्ण माना गया है। सालभर में कुल 12 अमावस्या तिथियां होती हैं, अर्थात् हर महीने एक बार यह तिथि आती है। अमावस्या तिथि, कृष्ण पक्ष के आखिरी दिन होती है, जब आकाश में चंद्रमा दिखाई नहीं देता। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन पितरों की पूजा के साथ-साथ भगवान शिव, माता लक्ष्मी और माता काली की आराधना का विशेष महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि अमावस्या के दिन पितृलोक से पूर्वज पृथ्वी पर आते हैं।
इसलिए, इस दिन पूजा-पाठ करने, पितरों के लिए दान देने या तर्पण करने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है और धन-धान्य की कभी कमी नहीं होती। इस दिन विशेष रूप से पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए किए गए कार्य फलदायी माने जाते हैं। अब जानते हैं कि साल 2025 में अमावस्या तिथि कब-कब पड़ेगी।
2025 अमावस्या तिथियां (2025 Amavasya Date List)
तिथि | अमावस्या | मुहूर्त |
---|---|---|
जनवरी 29, 2025, बुधवार | माघ अमावस्या | प्रारम्भ – 07:35 पी एम, जनवरी 28
समाप्त – 06:05 पी एम, जनवरी 29 |
फरवरी 27, 2025, बृहस्पतिवार | फाल्गुन अमावस्या | प्रारम्भ – 08:54 ए एम, फरवरी 27
समाप्त – 06:14 ए एम, फरवरी 28 |
मार्च 29, 2025, शनिवार | चैत्र अमावस्या | प्रारम्भ – 07:55 पी एम, मार्च 28
समाप्त – 04:27 पी एम, मार्च 29 |
अप्रैल 27, 2025, रविवार | वैशाख अमावस्या | प्रारम्भ – 04:49 ए एम, अप्रैल 27
समाप्त – 01:00 ए एम, अप्रैल 28 |
मई 26, 2025, सोमवार | दर्श अमावस्या | प्रारम्भ – 12:11 पी एम, मई 26
समाप्त – 08:31 ए एम, मई 27 |
मई 27, 2025, मंगलवार | ज्येष्ठ अमावस्या | प्रारम्भ – 12:11 पी एम, मई 26
समाप्त – 08:31 ए एम, मई 27 |
जून 25, 2025, बुधवार | आषाढ़ अमावस्या | प्रारम्भ – 06:59 पी एम, जून 24
समाप्त – 04:00 पी एम, जून 25 |
जुलाई 24, 2025, बृहस्पतिवार | श्रावण अमावस्या | प्रारम्भ – 02:28 ए एम, जुलाई 24
समाप्त – 12:40 ए एम, जुलाई 25 |
अगस्त 22, 2025, शुक्रवार | दर्श अमावस्या | प्रारम्भ – 11:55 ए एम, अगस्त 22
समाप्त – 11:35 ए एम, अगस्त 23 |
अगस्त 23, 2025, शनिवार | भाद्रपद अमावस्या | प्रारम्भ – 11:55 ए एम, अगस्त 22
समाप्त – 11:35 ए एम, अगस्त 23 |
सितम्बर 21, 2025, रविवार | आश्विन अमावस्या | प्रारम्भ – 12:16 ए एम, सितम्बर 21
समाप्त – 01:23 ए एम, सितम्बर 22 |
अक्टूबर 21, 2025, मंगलवार | कार्तिक अमावस्या | प्रारम्भ – 03:44 पी एम, अक्टूबर 20
समाप्त – 05:54 पी एम, अक्टूबर 21 |
नवम्बर 19, 2025, बुधवार | दर्श अमावस्या | प्रारम्भ – 09:43 ए एम, नवम्बर 19
समाप्त – 12:16 पी एम, नवम्बर 20 |
नवम्बर 20, 2025, बृहस्पतिवार | मार्गशीर्ष अमावस्या | प्रारम्भ – 09:43 ए एम, नवम्बर 19
समाप्त – 12:16 पी एम, नवम्बर 20 |
दिसम्बर 19, 2025, शुक्रवार | पौष अमावस्या | प्रारम्भ – 04:59 ए एम, दिसम्बर 19
समाप्त – 07:12 ए एम, दिसम्बर 20 |
अमावस्या का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व
अमावस्या, जो हर महीने चंद्रमा के पूर्णत: अदृश्य होने का दिन होता है, हिंदू धर्म और ज्योतिष में विशेष महत्व रखती है। इस दिन को धार्मिक अनुष्ठानों, पितरों की पूजा, और ध्यान-योग के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
धार्मिक महत्व
- अमावस्या को पितरों की आत्मा की शांति और उनका आशीर्वाद पाने के लिए श्राद्ध कर्म और तर्पण किए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन पितर पृथ्वी पर आते हैं और उनके लिए किए गए अनुष्ठान उन्हें संतोष प्रदान करते हैं।
- अमावस्या पर दान, विशेषकर अन्न, वस्त्र और धन का दान, शुभ और फलदायी माना जाता है। गंगा स्नान और पवित्र नदियों में स्नान करने से जीवन के पापों का नाश होता है।
- इस दिन ध्यान और योग करने से आत्मिक शांति और ऊर्जा प्राप्त होती है। इसे आत्म-चिंतन और ईश्वर के समीप जाने का अवसर माना जाता है।
ज्योतिषीय महत्व
- चंद्रमा का पूर्ण अभाव मानसिक और भावनात्मक स्थिति पर प्रभाव डालता है। ज्योतिष के अनुसार, यह समय आत्मनिरीक्षण और नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति पाने के लिए उपयुक्त है।
- अमावस्या पर किए गए विशेष अनुष्ठान और मंत्र जाप ग्रह दोषों को शांत करने में सहायक होते हैं। यह समय राहु-केतु और शनि से संबंधित दोषों के लिए उपाय करने के लिए अत्यंत प्रभावी माना गया है।
- ज्योतिष के अनुसार, अमावस्या सूर्य और चंद्र के एक ही राशि में आने का समय है। यह स्थिति किसी भी शुभ कार्य के लिए विचार-विमर्श और योजना बनाने के लिए उपयुक्त होती है।
अमावस्या पर पूजा विधि
अमावस्या तिथि का हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व है। इस दिन को पवित्रता, ध्यान, और पितृ तर्पण के लिए उपयुक्त माना जाता है। अमावस्या पर की जाने वाली पूजा विधि विशेष फलदायी होती है और इससे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पूजा विधि
- प्रातःकाल स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी या जलाशय में स्नान करें। यह दिन आत्मिक और शारीरिक शुद्धि के लिए अति उत्तम माना गया है।
- पूजा स्थान को साफ करें और वहाँ कुशा बिछाएं। पितरों का ध्यान करते हुए अंजलि में जल और तिल लेकर तर्पण करें।
- घी का दीपक जलाएं और उसमें काले तिल डालें। दीपक को दक्षिण दिशा की ओर रखें। यह दीपक पितरों के लिए मार्गदर्शन का प्रतीक है। पितरों को धूप और फूल अर्पित करें।
- ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को भोजन कराएं। अन्न, वस्त्र, और धन का दान करें। यह कर्म पितरों की आत्मा को संतोष प्रदान करता है।
- “ॐ पितृभ्यः स्वधा नमः” मंत्र का जाप करें। “ॐ नमः शिवाय” और “ॐ पितृदेवताभ्यः स्वधा नमः” का जाप करें। अगर विशेष ग्रह दोष शांति के लिए पूजा कर रहे हों तो संबंधित मंत्रों का उच्चारण करें।
- अगर आप किसी विशेष अमावस्या जैसे मौनी अमावस्या या पितृ अमावस्या पर पूजा कर रहे हैं, तो किसी योग्य पंडित से मार्गदर्शन लें। ग्रह दोष निवारण के लिए हवन और विशेष यज्ञ भी किए जा सकते हैं।
अमावस्या पर पूजा की सामग्री
- कुशा और चावल
- काले तिल
- पवित्र जल (गंगाजल)
- दीपक और घी
- धूप-अगरबत्ती
- पुष्प और पान
- प्रसाद (गुड़, दूध या खीर)
- पीतल का दीपक और पात्र
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