श्री अरहनाथ चालीसा जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर भगवान अरहनाथ को समर्पित एक पावन स्तुति है। इस चालीसा के पाठ से साधक को आंतरिक शांति, सद्बुद्धि और मोक्षमार्ग की प्रेरणा मिलती है। भगवान अरहनाथ के जीवन में त्याग, तपस्या और सत्य का अद्वितीय उदाहरण मिलता है। श्री अरहनाथ चालीसा के 40 चौपाई और 2 दोहे, भगवान की महिमा और उनके उपदेशों का वर्णन करते हैं। नियमित पाठ करने से पाप नष्ट होते हैं, पुण्य की वृद्धि होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। भक्त इसे श्री अरहनाथ चालीसा PDF के माध्यम से घर पर भी आसानी से पढ़ सकते हैं।
|| श्री अरहनाथ चालीसा (Arahnath Chalisa PDF) ||
श्री अरहनाथ जिनेन्द्र गुणाकर,
ज्ञान-दरस-सुरव-बल रत्ऩाकर ।
कल्पवृक्ष सम सुख के सागर,
पार हुए निज आत्म ध्याकर ।
अरहनाथ नाथ वसु अरि के नाशक,
हुए हस्तिनापुर के शासक ।
माँ मित्रसेना पिता सुर्दशन,
चक्रवर्ती बन किया दिग्दर्शन ।
सहस चौरासी आयु प्रभु की,
अवगाहना थी तीस धनुष की ।
वर्ण सुवर्ण समान था पीत,
रोग शोक थे तुमसे भीत ।
ब्याह हुआ जब प्रिय कुमार का,
स्वप्न हुआ साकार पिता का ।
राज्याभिषेक हुआ अरहजिन का,
हुआ अभ्युदय चक्र रत्न का ।।
एक दिन देखा शरद ऋतु में,
मेघ विलीन हुए क्षण भर मेँ ।
उदित हुआ वैराग्य हृदय में,
लौकांतिक सुर आए पल में ।
‘अरविन्द’ पुत्र को देकर राज,
गए सहेतुक वन जिनराज ।
मंगसिर की दशमी उजियारी,
परम दिगम्बर दिक्षाधारी ।
पंचमुष्टि उखाड़े केश,
तन से ममन्व रहा नहीं दलेश ।
नगर चक्रपुर गए पारण हित,
पढ़गाहें भूपति अपराजित ।
प्रासुक शुद्धाहार कराये,
पंचाश्चर्य देव कराये ।
कठिन तपस्या करते वन में,
लीन रहैं आत्म चिन्तन में ।
कार्तिक मास द्वादशी उज्जवल,
प्रभु विराज्ञे आम्र वृक्ष- तल ।
अन्तर ज्ञान ज्योति प्रगटाई,
हुए केवली श्री जिनराई ।
देव करें उत्सव अति भव्य,
समोशरण को रचना दिव्य ।
सोलह वर्ष का मौनभंग कर,
सप्तभंग जिनवाणी सुखकर ।
चौदह गुणस्थान बताये,
मोह – काय-योग दर्शाये ।
सत्तावन आश्रव बतलाये,
इतने ही संवर गिनवाये ।
संवर हेतु समता लाओ,
अनुप्रेक्षा द्वादश मन भाओ ।
हुए प्रबुद्ध सभी नर- नारी,
दीक्षा व्रत धरि बहु भारी ।
कुम्भार्प आदि गणधर तीस,
अर्द्ध लक्ष थे सकल मुनीश ।
सत्यधर्म का हुआ प्रचार,
दूऱ-दूर तक हुआ विहार ।
एक माह पहले निर्वेद,
सहस मुनिसंग गए सम्मेद ।
चैत्र कृष्ण एकादशी के दिन,
मोक्ष गए श्री अरहनाथ जिन ।
नाटक कूट को पूजे देव,
कामदेव-चक्री…जिनदेव ।
जिनवर का लक्षण था मीन,
धारो जैन धर्म समीचीन ।
प्राणी मात्र का जैन धर्मं है,
जैन धर्म ही परम धर्मं हैं ।
पंचेन्द्रियों को जीतें जो नर,
जिनेन्द्रिय वे वनते जिनवर ।
त्याग धर्म की महिमा गाई,
त्याग में ही सब सुख हों भाई ।
त्याग कर सकें केवल मानव,
हैं सक्षम सब देव और मानव ।
हो स्वाधीन तजो तुम भाई,
बन्धन में पीडा मन लाई ।
हस्तिनापुर में दूसरी नशिया,
कर्म जहाँ पर नसे घातिया ।
जिनके चररणों में धरें,
शीश सभी नरनाथ ।
हम सब पूजे उन्हें,
कृपा करें अरहनाथ ।
|| श्री अरहनाथ चालीसा पाठ की विधि ||
चालीसा का पाठ करने के लिए एक उचित विधि का पालन करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थान को साफ करें। भगवान अरहनाथ की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
- पूजा की थाली में चंदन, अक्षत (बिना टूटे चावल), पुष्प, नैवेद्य (मिठाई या फल), धूप और दीप रखें।
- पाठ शुरू करने से पहले मन में प्रभु अरहनाथ का ध्यान करें और अपनी मनोकामना का संकल्प लें।
- सबसे पहले श्री अरहनाथ जी की आरती करें। इसके बाद “श्री अरहनाथ चालीसा” का 3, 7, 11, या 21 बार पाठ करें।
- पाठ के बाद भगवान की स्तुति करें और क्षमा याचना करें। अंत में अपनी मनोकामना प्रभु के चरणों में रखें।
- इस चालीसा का पाठ सुबह या शाम के समय किया जा सकता है।
|| श्री अरहनाथ चालीसा के लाभ ||
“श्री अरहनाथ चालीसा” का नियमित पाठ करने से अनेक लाभ प्राप्त होते हैं, जो भौतिक और आध्यात्मिक दोनों तरह के होते हैं।
- चालीसा का पाठ करने से मन शांत होता है और तनाव दूर होता है।
- प्रभु अरहनाथ की महिमा का गुणगान करने से जीवन में सकारात्मकता आती है और आत्मविश्वास बढ़ता है।
- यह चालीसा शत्रु भय को समाप्त करने और जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने में सहायक है।
- नियमित पाठ से धन-धान्य और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।
- यह माना जाता है कि चालीसा का पाठ करने से शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है।
- जो भक्त पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से चालीसा का पाठ करता है, उसे मृत्यु के बाद उत्तम गति प्राप्त होती है।
- जीवन में आने वाली हर प्रकार की समस्याओं का समाधान इस चालीसा के पाठ से मिलता है।
- यह चालीसा ज्ञान और वैराग्य की भावना को मजबूत करती है, जिससे जीवन के वास्तविक लक्ष्य की समझ आती है।
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