आश्विन अमावस्या, जिसे सर्वपितृ अमावस्या या महालय अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है, पितृ पक्ष का अंतिम दिन होता है। यह दिन पितरों को विदा करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन व्रत कथा का पाठ करने और सुनने से पितरों को शांति मिलती है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
|| आश्विन अमावस्या व्रत कथा PDF ||
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में अक्षोदा नामक एक तेजस्वी कन्या थी। उसने देवताओं के पितृगणों को प्रसन्न करने के लिए एक हजार वर्षों तक कठोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर अग्निष्वात्त और बर्हिषपद नामक पितृगण, अपने अन्य पितृगण अमावसु के साथ आश्विन अमावस्या के दिन अक्षोदा को वरदान देने के लिए प्रकट हुए।
पितृगणों ने अक्षोदा से कहा, “हे पुत्री, हम तुम्हारी तपस्या से अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम जो चाहो, वह वर मांग सकती हो।”
यह सुनकर अक्षोदा ने कहा, “हे भगवान! यदि आप मुझे वरदान देना चाहते हैं, तो मैं तत्क्षण आपके साथ रमण कर आनंद लेना चाहती हूं।”
अक्षोदा के ऐसे वचन सुनकर सभी पितृगण क्रोधित हो गए। उन्होंने अक्षोदा को श्राप दिया कि वह पितृलोक से पतित होकर पृथ्वी लोक पर जाएगी। पितरों के इस श्राप से दुखी होकर अक्षोदा पितरों के चरणों में गिरकर रोने लगी।
तब पितरों को उस पर दया आई। उन्होंने अक्षोदा से कहा, “हे अक्षोदा, तुम इस श्राप के कारण मत्स्य कन्या के रूप में जन्म लोगी। भगवान ब्रह्मा के वंशज महर्षि पाराशर तुम्हें पति के रूप में प्राप्त होंगे। तुम्हारे गर्भ से भगवान व्यास जन्म लेंगे। उसके उपरांत भी अन्य दिव्य वंशों में जन्म लेते हुए तुम श्राप मुक्त होकर पुनः पितृलोक में वापस आ जाओगी।” पितरों के यह वचन सुनकर अक्षोदा शांत हुई।
अमावस्या तिथि का महत्व
इसी घटना के कारण यह अमावस्या की तिथि अमावसु के नाम से जानी जाने लगी। ऐसी मान्यता है कि जो प्राणी किसी भी कारण से पूरे पितृ पक्ष में अपने पितरों का श्राद्ध या तर्पण नहीं कर पाते, वे केवल आश्विन अमावस्या के दिन श्राद्ध और तर्पण करके पूरे पितृ पक्ष का पुण्य प्राप्त कर सकते हैं। इस दिन पितरों को शांति देने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए विशेष रूप से तर्पण, पिंडदान, ब्राह्मण भोजन और दान-पुण्य के कार्य किए जाते हैं। पीपल के पेड़ की पूजा करना और उसे जल, काले तिल व दूध अर्पित करना भी इस दिन अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि माना जाता है कि पीपल में पितृ देवों का वास होता है।
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