बहुला चतुर्थी का व्रत भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। यह व्रत विशेष रूप से संतान की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और सुरक्षा के लिए किया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण, गणेश जी और गौ माता की पूजा का विधान है।
बहुला चतुर्थी व्रत कथा (Bahula Chaturthi Vrat Katha PDF)
बहुला चतुर्थी से जुड़ी एक बहुत ही प्रचलित और रोचक कथा है, जो इस प्रकार है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लिया, तब सभी देवी-देवताओं ने भी उनकी लीला में शामिल होने के लिए गोप-गोपियों का रूप धारण किया।
इसी क्रम में कामधेनु गाय ने भी अपने एक अंश से बहुला नाम की गाय का रूप धारण किया और नंद बाबा की गौशाला में आ गईं। भगवान श्रीकृष्ण को बहुला गाय से बहुत स्नेह था। एक बार भगवान कृष्ण ने बहुला की परीक्षा लेने का विचार किया। एक दिन जब बहुला गाय वन में चर रही थी, तब भगवान श्रीकृष्ण ने सिंह (शेर) का रूप धारण कर लिया और उसके सामने प्रकट हो गए।
अपनी मृत्यु को सामने देखकर बहुला गाय भयभीत हो गई, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। उसने सिंह से कहा, “हे वनराज! मेरा बछड़ा भूखा है। मैं उसे दूध पिलाकर तुरंत लौट आऊंगी और आपका आहार बनूंगी।”
सिंह बने भगवान कृष्ण ने कहा, “सामने आए आहार को मैं कैसे जाने दूं? अगर तुम वापस नहीं आईं तो मैं भूखा ही रह जाऊंगा।”
बहुला ने सत्य और धर्म की शपथ लेते हुए कहा कि वह अवश्य वापस आएगी। बहुला की सत्यनिष्ठा और वचनबद्धता से सिंह बने श्रीकृष्ण अत्यंत प्रभावित हुए और उसे जाने दिया।
बहुला गाय अपने बछड़े को दूध पिलाकर और उसे अपनी अंतिम ममता देकर वापस वन में सिंह के पास आ गई। बहुला की इस अदम्य सत्यनिष्ठा और धर्मपरायणता को देखकर भगवान श्रीकृष्ण अत्यंत प्रसन्न हुए। वे अपने वास्तविक स्वरूप में आए और बहुला से कहा, “हे बहुला! तुम मेरी परीक्षा में सफल हुई। तुम्हारी सत्यनिष्ठा अद्वितीय है।”
इसके बाद भगवान कृष्ण ने बहुला को आशीर्वाद दिया कि आज से भाद्रपद चतुर्थी के दिन गौ-माता के रूप में तुम्हारी पूजा की जाएगी। जो भी तुम्हारी पूजा करेगा, उसे संतान सुख, धन और सौभाग्य की प्राप्ति होगी।
इस कथा के अनुसार, बहुला चतुर्थी के दिन गाय और उसके बछड़े की पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन गाय के दूध और उससे बनी चीजों का सेवन नहीं किया जाता, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन गाय के दूध पर उसके बछड़े का अधिकार होता है। यह व्रत विशेष रूप से संतान की मंगल कामना के लिए रखा जाता है।
Found a Mistake or Error? Report it Now