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सौभाग्य और समृद्धि के लिए कब है भौम प्रदोष व्रत? कथा और पूजा विधि के साथ जानें इस व्रत का महत्व

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सनातन धर्म में व्रतों और त्योहारों का विशेष महत्व है, और इन्हीं में से एक अत्यंत फलदायी व्रत है भौम प्रदोष व्रत। यह व्रत भगवान शिव, माता पार्वती और मंगल ग्रह (Lord Shiva, Goddess Parvati, and Mars) के संयुक्त आशीर्वाद को प्राप्त करने का एक अद्भुत अवसर प्रदान करता है।

माना जाता है कि जो भक्त सच्ची श्रद्धा से इस व्रत को करता है, उसे जीवन में सुख-समृद्धि, रोग-मुक्ति और सबसे महत्वपूर्ण, ऋण या कर्ज से छुटकारा मिलता है। तो आइए, जानते हैं कि यह शुभ व्रत कब आ रहा है, इसकी पौराणिक कथा क्या है, और आप इसे किस विधि से करके भगवान शिव और हनुमान जी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।

कब है भौम प्रदोष व्रत 2025? (Bhaum Pradosh Vrat 2025 Date)

प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। जब यह त्रयोदशी तिथि मंगलवार को पड़ती है, तो इसे भौम प्रदोष व्रत या मंगल प्रदोष व्रत कहा जाता है। ‘भौम’ मंगल ग्रह का ही एक नाम है। वर्ष 2025 में, भौम प्रदोष व्रत कई बार आ रहा है।

भौम प्रदोष व्रत का महत्व – क्यों है यह इतना खास? (Significance of Bhaum Pradosh Vrat)

भौम प्रदोष व्रत का महत्व केवल भगवान शिव की पूजा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह मंगल ग्रह (Mars Planet) के अशुभ प्रभावों को भी दूर करने में सहायक है।

  • कर्ज मुक्ति और धन वृद्धि (Debt Relief and Wealth Increase) – इस व्रत को करने का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह व्यक्ति को गंभीर से गंभीर ऋण या कर्ज से मुक्ति दिलाता है। मंगल ग्रह का संबंध साहस, बल और भूमि से भी है, इसलिए यह व्रत संपत्ति और धन के मामलों में भी समृद्धि लाता है।
  • शारीरिक स्वास्थ्य और शक्ति (Physical Health and Strength) – मंगल को ऊर्जा और रक्त का कारक माना जाता है। इस व्रत के प्रभाव से भक्त रोग-मुक्त होता है और शारीरिक शक्ति (Physical power) प्राप्त करता है।
  • हनुमान जी की कृपा – मंगलवार का दिन रुद्रावतार भगवान हनुमान को समर्पित है। भौम प्रदोष व्रत में शिव जी के साथ हनुमान जी की भी पूजा करने से भक्तों को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं।
  • मांगलिक दोष का निवारण – जिन लोगों की कुंडली में मांगलिक दोष होता है, उनके लिए यह व्रत अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है।

भौम प्रदोष व्रत कथा – हनुमान जी ने दी थी दर्शन (The Story of Bhaum Pradosh Vrat)

भौम प्रदोष व्रत की कथा भगवान शिव और हनुमान जी की असीम कृपा को दर्शाती है। बहुत समय पहले की बात है, एक नगर में एक गरीब वृद्धा रहती थी। उसका एक ही पुत्र था, जिसका नाम मंगलिया था। वृद्धा की हनुमान जी में अटूट श्रद्धा (Unwavering faith) थी। वह हर मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखती थी और मिट्टी खोदने या घर लीपने जैसे काम नहीं करती थी।

वृद्धा की श्रद्धा की परीक्षा लेने के लिए एक दिन हनुमान जी साधु का वेश धारण करके उसके घर आए और बोले, “हे भक्त! मैं बहुत भूखा हूँ। मुझे भोजन करना है, लेकिन इसके लिए तुम्हें थोड़ी सी जमीन लीपनी पड़ेगी।”

वृद्धा ने हाथ जोड़कर विनती की और कहा, “महाराज! लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त आप कोई भी आज्ञा दें, मैं उसे पूरा करूंगी, क्योंकि मेरा मंगलवार का व्रत है।”

साधु रूपी हनुमान जी नहीं माने और वृद्धा को प्रतिज्ञा करवाकर कहा, “ठीक है, तो तुम अपने बेटे मंगलिया को बुलाओ। मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊँगा।”

यह सुनकर वृद्धा के होश उड़ गए, लेकिन वह अपनी प्रतिज्ञा से बंधी थी। रोते हुए उसने मंगलिया को बुलाया और उसे साधु के सुपुर्द कर दिया। साधु ने मंगलिया को पेट के बल लिटाया और उसकी पीठ पर आग जलाई। आग जलाकर साधु ने वृद्धा से मंगलिया को पुकारने को कहा।

दुखी वृद्धा ने कहा, “महाराज, उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट न दें।”

लेकिन साधु के कहने पर जब वृद्धा ने मंगलिया को आवाज दी, तो मंगलिया दौड़ता हुआ आया, जैसे उसे कुछ हुआ ही न हो। मंगलिया को जीवित और स्वस्थ देखकर वृद्धा को सुखद आश्चर्य (Pleasant surprise) हुआ।

तब साधु अपने वास्तविक रूप, यानी हनुमान जी के रूप में प्रकट हुए। हनुमान जी ने वृद्धा को आशीर्वाद दिया और कहा कि तुम्हारी सच्ची भक्ति और विश्वास ने तुम्हारे पुत्र को नवजीवन दिया है। उन्होंने वृद्धा और उसके पुत्र के सभी कष्टों को दूर करके उन्हें सुख-समृद्धि प्रदान की। फलस्वरूप, इस व्रत को करने से शिव जी और हनुमान जी, दोनों की कृपा प्राप्त होती है।

भौम प्रदोष व्रत की पूजा विधि (Bhaum Pradosh Vrat Puja Method)

प्रदोष व्रत की पूजा हमेशा प्रदोष काल (सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक) में की जाती है।

  • सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र (Clean clothes) धारण करें। व्रत का संकल्प लें और दिनभर फलाहार या निराहार व्रत रखें।
  • प्रदोष काल से पहले पूजा की सामग्री जुटा लें – शिवलिंग या शिव परिवार की तस्वीर, गंगाजल, दूध, दही, शहद, घी, बेलपत्र, धतूरा, भांग, सफेद फूल, लाल चंदन, धूप, दीप, और भोग के लिए गुड़-गेहूं से बनी कोई चीज़। साथ ही, हनुमान जी की पूजा के लिए सिंदूर, चमेली का तेल और बूंदी या गुड़-चने का भोग भी रखें।
  • प्रदोष काल में पुनः स्नान करें। शिवलिंग को गंगाजल, दूध, दही, शहद, घी और अंत में शुद्ध जल से अभिषेक करें।
  • शिवलिंग पर लाल चंदन का तिलक लगाएं और बेलपत्र, धतूरा, भांग व सफेद फूल अर्पित करें।
  • रुद्राक्ष की माला से ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें। साथ ही, कर्ज मुक्ति के लिए मंगल ग्रह के बीज मंत्र “ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः” का जाप भी अवश्य करें।
  • भौम प्रदोष व्रत की कथा का पाठ करें या सुनें। भगवान शिव की पूजा के बाद हनुमान जी की पूजा करें। उन्हें सिंदूर और चमेली का तेल अर्पित करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें।
  • भगवान शिव और हनुमान जी की आरती करें। भोग लगाएं और अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीब या जरूरतमंद व्यक्ति को अन्न, वस्त्र या धन का दान (Donation) अवश्य करें।
  • अगले दिन सूर्योदय के बाद पूजा करके और व्रत का भोजन ग्रहण करके व्रत का पारण करें।

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