|| Bhalachandra Sankashti Chaturthi Vrat Katha (भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा) ||
प्राचीन समय की बात है, जब राक्षसों के अत्याचार से देवता अत्यंत परेशान हो गए। सभी देवता मिलकर भगवान शिव के पास पहुंचे और अपनी व्यथा सुनाई। उन्होंने शिवजी से राक्षसों के आतंक से मुक्ति पाने का उपाय पूछा।
उस समय भगवान शिव माता पार्वती के साथ भगवान कार्तिकेय और गणेश जी के समक्ष विराजमान थे। शिवजी ने देवताओं से कहा कि उनके संकट का समाधान मेरे दोनों पुत्रों – कार्तिकेय और गणेश जी में से कोई एक अवश्य करेगा। तब उन्होंने अपने दोनों पुत्रों से पूछा, “तुममें से कौन देवताओं की सहायता कर सकता है और राक्षसों का संहार करने का सामर्थ्य रखता है?”
भगवान कार्तिकेय और गणेश जी दोनों ने उत्तर दिया, “पिताजी, हम दोनों ही देवताओं की सहायता कर सकते हैं।”
इस पर भगवान शिव ने परीक्षा लेने का निर्णय लिया। उन्होंने कहा, “जो भी पहले संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटेगा, वही देवताओं की सहायता करने के योग्य माना जाएगा।”
भगवान शिव की यह शर्त सुनकर दोनों पुत्रों ने स्वीकृति दी। भगवान कार्तिकेय तुरंत अपने वाहन मोर पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल पड़े। दूसरी ओर, भगवान गणेश कुछ क्षण विचार में डूब गए। उन्होंने मन ही मन सोचा, “मेरा वाहन मूषक है, उससे संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करना अत्यंत कठिन है।”
तभी गणेश जी को एक युक्ति सूझी। उन्होंने अपनी जगह से उठकर माता पार्वती और भगवान शिव की सात बार परिक्रमा की और फिर बोले, “पिताजी, मेरी परिक्रमा पूर्ण हो गई।”
यह देखकर सभी देवता आश्चर्यचकित हो गए। तभी भगवान कार्तिकेय भी अपनी यात्रा समाप्त कर लौट आए और बोले, “पिताजी, मैंने सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा पूरी कर ली है।”
इस पर भगवान शिव ने गणेश जी से प्रश्न किया, “गणेश, तुम तो कहीं गए ही नहीं, फिर तुमने परिक्रमा कैसे पूरी कर ली?”
गणेश जी ने उत्तर दिया, “पिताजी, माता-पिता ही संपूर्ण जगत के समान हैं। आपके चरणों में ही समस्त ब्रह्मांड स्थित है। अतः आपकी परिक्रमा करने से ही मेरी पृथ्वी परिक्रमा पूर्ण हो गई।”
गणेश जी के इस उत्तर से सभी देवता आनंदित हो उठे और उनकी जय-जयकार करने लगे। भगवान शिव भी अत्यंत प्रसन्न हुए और गणेश जी को देवताओं की सहायता करने का उत्तरदायित्व सौंप दिया।
साथ ही, शिवजी ने यह आशीर्वाद दिया कि “जो भी भक्त प्रत्येक चतुर्थी को तुम्हारी पूजा और व्रत करेगा, उसके समस्त कष्टों का निवारण होगा।”
कहते हैं कि संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की व्रत कथा पढ़ने और सुनने से सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है एवं जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
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