Durga Ji

ब्रह्मचारिणी माता व्रत कथा पूजा विधि

Brahmacharini Mata Vrat Pooja Vidhi

Durga JiVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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ब्रह्मचारिणी माता नवदुर्गा का दूसरा स्वरूप हैं, जो तप, संयम और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। कथा के अनुसार जब महादेव को पति रूप में प्राप्त करने की इच्छा पार्वती जी ने की, तब उन्होंने ब्रह्माचारिणी का रूप धारण कर कठोर तप किया। उन्होंने वर्षों तक केवल फल-फूल और अंत में केवल हवा का सेवन कर कठिन साधना की। उनकी अटूट श्रद्धा और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अपनी अर्धांगिनी बनाया। ब्रह्मचारिणी माता की पूजा व्रत रखने से साधक को तप, धैर्य, आत्मबल और संकल्पशक्ति की प्राप्ति होती है तथा जीवन में सफलता मिलती है।

|| ब्रह्मचारिणी माता व्रत कथा (Brahmacharini Mata Vrat Katha PDF) ||

ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी यानी तप का आचरण करने वाली। देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं।

पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।

कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया।

कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।

|| ब्रह्मचारिणी माता पूजा विधि ||

  • इस दिन सुबह उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं और स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र पहन लें।
  • इसके बाद आसन पर बैठ जाएं। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करें। उन्हें फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि अर्पित करें।
  • मां को दूध, दही, घृत, मधु व शर्करा से स्नान कराएं। मां को भोग लगाएं। उन्हें पिस्ते की मिठाई का भोग लगाएं।
  • फिर उन्हें पान, सुपारी, लौंग अर्पित करें। मां के मंत्रों का जाप करें और आरती करें।
  • सच्चे मन से मां की पूजा करने पर वो व्यक्ति को संयम रखने की शक्ति प्राप्त करती हैं।

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