|| चंद्रघंटा माता व्रत कथा ||
पुराणों में जिस कथा का जिक्र है उसके मुताबिक देव लोक में जब असुरों का आतंक अधिक बढ़ गया तब देवी दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार लिया। उस वक्त महिषासुर असुरों का स्वामी था। ये दुत्कारी महिष देवराज इंद्र का सिंहासन पाना चाहता था। स्वर्गलोक पर राज करने की अपनी इच्छा को साकार करने हेतु वो तमाम तरीके अपनाता था।
जब देवगणों को उसकी ये इच्छा ज्ञात हुई तो वो चिंतित होकर त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास पहुंचे। देवताओं के मुख से महिषासुर के अत्याचार को जानने के बाद तीनों अत्यंत क्रोधित हुए।
उसी वक्त उनके मुख से उत्पन्न ऊर्जा से देवी का अवतरण हुआ। इन देवी को भगवान विष्णु ने चक्र प्रदान किया। वहीं शिव जी ने अपना त्रिशूल तो ब्रह्मा ने अपना कमंडल दिया। इस प्रकार सभी देवताओं ने देवी को कुछ-न-कुछ भेंट किया।
सबसे आज्ञा पाकर देवी चंद्रघंटा महिषासुर के पास गई। माता का विशालकाय स्वरूप देखकर दैत्य महिषासुर इस बात को भांप चुका था कि अब उसका अंत निश्चित है। बावजूद इसके, असुरों ने मां चंद्रघंटा पर हमला करना शुरू कर दिया। भयंकर युद्ध में महिषासुर काल के ग्रास में समा गया और देवी ने सभी देवताओं की रक्षा की।
।। चंद्रघंटा पूजा विधि ।।
- सबसे पहले नहा-धोकर पूजा घर साफ कर लें। देवी की स्थापित मूर्ति को गंगाजलन या फिर केसर और केवड़ा से स्नान कराएं।
- इसके उपरांत देवी को सुनहरे रंग के वस्त्र धारण कराएं।
- तदोपरांत, देवी मां को कमल और पीले गुलाब की माला अर्पित करें।
- फिर मिठाई, पंचामृत और मिश्री का भोग लगाएं।
- जो लोग दुर्गा पाठ करते हैं, वो चालीसा, स्तुति अथवा सप्तशती का पाठ करें।
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