|| श्रीहंसाष्टकस्तोत्रम् ||
श्रीहंसं कृष्णरूपञ्च शुभ्रं शान्तस्वरूपकम् ।
भगवन्तं परब्रह्म नमामि करुणाकरम् ॥ १॥
परम दिव्य धवल श्रीहंस भगवान् जो अतीव शान्तमय, करुणार्णव और परब्रह्म श्रीकृष्णस्वरूप उनको समग्र विधा नमन करते हैं ॥ १॥
दिव्यं रूपधरं कृष्णं सर्वदेव प्रपूजितम् ।
श्रीहंस परमाधारं प्रणमामि प्रभाकरम् ॥ २॥
जो समस्त देववृन्दों के द्वारा परिपूजित हैं और परम
आधार है एवं श्रीकृष्ण प्रभु ने ही दिव्य श्रीहंस स्वरूप को धारण किया है तथा जिनकी असीम अनुपम प्रभा है ऐसे श्रीहंस भगवान् को नित्य प्रणाम करते हैं ॥ २॥
निम्बार्कसम्प्रदायस्य पूर्वाचार्यांश्च सर्वदा ।
स्वसम्प्रदायसर्वस्वं श्रीमद्धंसं हृदा भजे ॥ ३॥
श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय के परम कृपा परायण समस्त परमाचार्यों को एवं स्वकीय सम्प्रदाय के सर्वस्व श्रीहंस भगवान् का अपने अन्तःकरण से सदा भजन करते हैं ॥ ३॥
श्रीमद्भागवते यस्य वर्णितं चरितं प्रियम् ।
तं श्रीहंसं सदा वन्दे सनकाद्यैः सुसेवितम् ॥ ४॥
श्रीमद्भागवत के एकादश स्कन्ध में जिनके दिव्य चरित
का सुभग वर्णन है और जगत्स्रष्टा ब्रह्मदेव के चारों मानस पुत्र श्रीसनक-सनन्दन-सनातन-सनत्कुमार है जिनके द्वारा परिसेवित ऐसे श्रीहंस भगवान् की प्रतिदिन वन्दना करते हैं ॥ ४॥
पुष्करारण्यभूलोकेऽवततार पुरा शुभे ।
तञ्च हंसं नमामीशं प्रत्यहं शिरसा गिरा ॥ ५॥
परम रमणीय श्रीपुष्कर की पावन वसुधा पर प्राचीनकाल में कृष्णरूप परमेश्वर श्रीहंस भगवान् ने अवतार रूप में प्रकट हुए उन श्रीहंस भगवान् को नित्यप्रति वाणी एवं नतमस्तक पूर्वक कोटि-कोटि साष्टाङ्ग प्रणाम करते हैं ॥ ५॥
सर्वेश्वरस्वरूपस्याऽर्चां प्राददाच्च पुष्करे ।
श्रीसनकादिकेभ्य तं हंसं नितरां भजे ॥ ६॥
श्रीहंस भगवान् ने पुष्करारण्य में श्रीसनकादिकों को शालग्राम स्वरूप श्रीसर्वेश्वर प्रभु की सेवा प्रदान की उन श्रीहंस भगवान् का सर्वात्मना सश्रद्ध भजन करते हैं ॥ ६॥
शालग्रामस्वरूपञ्च वन्दे सर्वेश्वरं परम् ।
एवं परम्पराप्राप्तं श्रीमन्निम्बार्क पूजितम् ॥ ७॥
परात्पर श्रीसर्वेश्वर प्रभु जो दक्षिणावर्ती चक्राङ्कित सूक्ष्म
शालग्राम विग्रह स्वरूप हैं तथा जो परम्परा से सम्प्राप्त हैं और श्रीभगवन्निम्बार्काचार्य से परिपूजित हैं उनकी अभिवन्दना करते हैं ॥ ७॥
श्रीहंसं सनकादींश्च नारदं निम्बभास्करम् ।
श्रीपूर्वाचार्यवर्याश्च प्रणमामि पुनः पुनः ॥ ८॥
श्रीहंस-सनकादि-नारद-श्रीमन्निम्बार्काचार्य तथा समस्त
पूर्वाचार्यों को पुनः पुनः कोटिशः साष्टाङ्ग प्रणाम अर्पित करते हैं ॥ ८॥
श्रीमद्धंसाष्टकं स्तोत्रं हंसभक्तिरसप्रदम् ।
राधासर्वेश्वराद्येन शरणान्तेन निर्मितम् ॥ ९॥
यह “श्रीहंसाष्टक” स्तोत्र जो श्रीहंस भगवान् की रसात्मिका भक्ति प्रदान करने वाला है जिसकी रचना उन्हीं की प्रेरणाजन्य हुई है ॥ ९॥
इति श्रीहंसाष्टकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।
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