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हिरण्यगर्भ दूधेश्वर ज्योतिर्लिंग प्रादुर्भाव पौराणिक कथा

Hiranyagarbh Dudheshwarnath Mahadev Utpatti Pauranik Katha

ShivaVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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|| हिरण्यगर्भ दूधेश्वर ज्योतिर्लिंग प्रादुर्भाव पौराणिक कथा ||

द्वादश ज्योतिर्लिंगों के अतिरिक्त अनेक हिरण्यगर्भ शिवलिंग हैं, जिनका बड़ा अद्भुत महातम्य है। इनमें से कई शिवलिंग चमत्कारी हैं और मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं तथा सिद्धपीठों में स्थापित हैं।

इन्हीं सिद्धपीठों में से एक है श्री दूधेश्वर नाथ महादेव मठ मंदिर, जहां स्वयंभू हिरण्यगर्भ दूधेश्वर शिवलिंग स्थापित है। पुराणों में हरनंदी नदी के निकट हिरण्यगर्भ ज्योतिर्लिंग का उल्लेख मिलता है। हरनंदी, हरनद अथवा हिरण्यदा ब्रह्मा जी की पुत्री है और कालांतर में इन्हें हिन्डन के नाम से जाना गया।

शिवालिक पर्वत श्रंखलाओं से निकलकर सहारनपुर के पास से हिन्डन नदी बहती है। इस नदी के दर्शन, स्नान और पूजन से अनेक जन्मों के पाप-ताप समाप्त हो जाते हैं, ऐसा माना जाता है।

हिन्डन के पावन तट पर तपस्या में लीन तपस्वियों के मंत्रोच्चारण से यहाँ का वातावरण पवित्र रहता था। लेकिन इस क्षेत्र में रहने वाले मारीच, सुबह और ताड़का जैसे राक्षसी प्रवृति के मदांधों के अट्टहास से भी यह क्षेत्र काँप उठता था। गाजियाबाद के पास बिसरख नामक गाँव है, जहाँ पहले घना जंगल था। रावण के पिता विश्वेश्रवा ने यहाँ तपस्या की थी और वह शिव के परम भक्त थे।

गौतमबुद्धनगर जिले में स्थित रावण का पैतृक गाँव बिसरख में आज भी विश्वेश्रवा पूजनीय हैं। यहाँ रामलीला का मंचन नहीं होता और न ही दशहरा पर्व मनाया जाता है। इस गाँव का नाम ऋषि विश्वेश्रवा के नाम पर विश्वेश्वरा पड़ा, जो बाद में बिसरख कहलाने लगा।

त्रेतायुग में श्री रामावतार से पूर्व, कुबेर के पिता महर्षि पुलस्त्य बिसरख क्षेत्र में निवास करते थे। महर्षि पुलस्त्य का विवाह महर्षि भारद्वाज की बहन से हुआ था और कुबेर इसी भाग्यशाली दंपति के पुत्र थे।

कुबेर ब्रह्मा जी के पौत्र और भगवान शिव के अनन्य मित्र और देवलोक के कोषाध्यक्ष थे। अपनी व्यस्तताओं के कारण, कुबेर के पास अपने पिता से मिलने का समय नहीं होता था, जिससे महर्षि पुलस्त्य कुंठित रहते थे। कुबेर को भी अपने पिता की सेवा न कर पाने का कष्ट था, लेकिन समयाभाव के कारण वह कुछ नहीं कर सकते थे।

महर्षि पुलस्त्य प्रकांड विद्वान थे। उन्होंने सोचा कि यदि शिवजी को प्रसन्न कर उन्हें यहाँ बुला लें, तो कुबेर उनसे मिलने आएगा और मैं भी अपने पुत्र से मिल पाऊंगा। यही सोचकर महर्षि पुलस्त्य ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की।

महर्षि पुलस्त्य की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव माता पार्वती सहित प्रकट हुए। शिवजी ने महर्षि से कहा कि वह काशी और कैलाश में वास करते हैं, और यहाँ कैलाश बना सकते हैं।

महर्षि पुलस्त्य ने कहा कि शिवजी यहाँ कैलाश बनाएं और वास करें। इसमें उनका स्वार्थ तो है, लेकिन जनकल्याण की भावना भी है।जिस स्थान पर महर्षि पुलस्त्य ने तपस्या की और भगवान शिव ने माता पार्वती के साथ दर्शन दिए, वही स्थान आज श्री दूधेश्वर नाथ महादेव मठ मंदिर के नाम से जाना जाता है।

इस पावन ज्योतिर्लिंग के दर्शन से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जन्म-जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है। शिव साधक विश्वेश्रवा का पुत्र रावण भी अपने पिता की भांति भगवान शिव का अनन्य भक्त था। रावण ने भी श्री दूधेश्वर ज्योतिर्लिंग की वर्षों तक साधना की थी।

इसी पुराण वर्णित हिरण्यगर्भ ज्योतिर्लिंग को श्री दूधेश्वर नाथ महादेव के नाम से जाना और पूजा जाता है।

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