ज्येष्ठ अमावस्या की व्रत कथा PDF हिन्दी
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ज्येष्ठ अमावस्या की व्रत कथा हिन्दी Lyrics
|| ज्येष्ठ अमावस्या की व्रत कथा ||
नमस्ते! ज्येष्ठ अमावस्या की कोई एक विशिष्ट व्रत कथा प्रचलित नहीं है, बल्कि इस दिन से जुड़े कई धार्मिक महत्व और कथाएं हैं। मुख्य रूप से, ज्येष्ठ अमावस्या पितरों को समर्पित है और इस दिन किए गए कर्मों का विशेष महत्व होता है।
हालांकि, कुछ क्षेत्रों में एक कथा प्रचलित है जो एक गरीब ब्राह्मण परिवार और एक पतिव्रता धोबिन से जुड़ी है। इस कथा के अनुसार:
एक गरीब ब्राह्मण था जिसकी एक गुणवान और सुंदर पुत्री थी, लेकिन गरीबी के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। एक साधु ने ब्राह्मण दंपत्ति को एक धोबिन की सेवा करने की सलाह दी जो कि बहुत ही संस्कार संपन्न और पति परायण थी।
ब्राह्मणी ने अपनी बेटी को धोबिन की सेवा करने के लिए भेज दिया। कन्या सुबह उठकर चुपचाप धोबिन के घर का सारा काम कर आती थी। एक दिन धोबिन ने उसे पकड़ लिया और पूछा कि वह कौन है और ऐसा क्यों कर रही है। कन्या ने साधु की बात धोबिन को बताई।
धोबिन पति परायण थी और उसमें तेज था। वह कन्या की मदद करने के लिए तैयार हो गई। धोबिन का पति थोड़ा अस्वस्थ था। धोबिन ने अपनी बहू को घर पर रहने को कहकर कन्या के साथ पीपल के पेड़ के पास गई। वहां धोबिन ने अपनी मांग का सिंदूर कन्या को दे दिया, और उसी क्षण धोबिन के पति की मृत्यु हो गई।
दुखी होकर कन्या घर से निकल पड़ी और एक पीपल के पेड़ के पास बैठकर 108 ईंटों के टुकड़े लेकर उनकी 108 बार परिक्रमा करके एक-एक करके फेंकने लगी। ऐसा करने से धोबिन का पति जीवित हो गया। इस प्रकार पीपल के पेड़ की परिक्रमा करने से कन्या को शुभ फल प्राप्त हुआ।
यह कथा ज्येष्ठ अमावस्या के महत्व को दर्शाती है, जिसमें सेवा, पतिव्रता धर्म और पीपल के वृक्ष की पूजा का महत्व बताया गया है।
ज्येष्ठ अमावस्या का महत्व
- यह दिन पितरों की शांति और मोक्ष के लिए महत्वपूर्ण है। इस दिन तर्पण और पिंडदान जैसे कर्म किए जाते हैं।
- कई स्थानों पर ज्येष्ठ अमावस्या को शनि देव की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन शनि देव की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
- इसी दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए वट सावित्री का व्रत रखती हैं और बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं।
- इस दिन स्नान, दान और अन्य धार्मिक कार्यों का विशेष महत्व है।
ज्येष्ठ अमावस्या की व्रत विधि
- प्रातः काल उठकर स्नान करें।
- सूर्य देव को अर्घ्य दें और बहते जल में तिल प्रवाहित करें।
- पितरों के लिए तर्पण और पिंडदान करें।
- ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन और वस्त्र दान करें।
- अपनी श्रद्धा के अनुसार भगवान विष्णु, शिव और शनि देव की पूजा करें।
- वट सावित्री का व्रत रखने वाली महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करें और कथा सुनें।
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