॥ दोहा ॥
श्री गुरु पदरज शीशधर प्रथम सुमिरू गणेश ॥
ध्यान शारदा ह्रदयधर भजुँ भवानी महेश ॥
चरण शरण विप्लव पड़े हनुमत हरे कलेश ।
श्याम चालीसा भजत हुँ जयति खाटू नरेश ॥
॥ चौपाई ॥
वन्दहुँ श्याम प्रभु दुःख भंजन ।
विपत विमोचन कष्ट निकंदन ॥
सांवल रूप मदन छविहारी ।
केशर तिलक भाल दुतिकारी ॥
मौर मुकुट केसरिया बागा ।
गल वैजयंति चित अनुरागा ॥
नील अश्व मौरछडी प्यारी ।
करतल त्रय बाण दुःख हारी ॥
सूर्यवर्च वैष्णव अवतारे ।
सुर मुनि नर जन जयति पुकारे ॥
पिता घटोत्कच मोर्वी माता ।
पाण्डव वंशदीप सुखदाता ॥
बर्बर केश स्वरूप अनूपा ।
बर्बरीक अतुलित बल भूपा ॥
कृष्ण तुम्हे सुह्रदय पुकारे ।
नारद मुनि मुदित हो निहारे ॥
मौर्वे पूछत कर अभिवन्दन ।
जीवन लक्ष्य कहो यदुनन्दन ॥
गुप्त क्षेत्र देवी अराधना ।
दुष्ट दमन कर साधु साधना ॥
बर्बरीक बाल ब्रह्मचारी ।
कृष्ण वचन हर्ष शिरोधारी ॥
तप कर सिद्ध देवियाँ कीन्हा ।
प्रबल तेज अथाह बल लीन्हा ॥
यज्ञ करे विजय विप्र सुजाना ।
रक्षा बर्बरीक करे प्राना ॥
नव कोटि दैत्य पलाशि मारे ।
नागलोक वासुकि भय हारे ॥
सिद्ध हुआ चँडी अनुष्ठाना ।
बर्बरीक बलनिधि जग जाना ॥
वीर मोर्वेय निजबल परखन ।
चले महाभारत रण देखन ॥
माँगत वचन माँ मोर्वि अम्बा ।
पराजित प्रति पाद अवलम्बा ॥
आगे मिले माधव मुरारे ।
पूछे वीर क्युँ समर पधारे ॥
रण देखन अभिलाषा भारी ।
हारे का सदैव हितकारी ॥
तीर एक तीहुँ लोक हिलाये ।
बल परख श्री कृष्ण सँकुचाये ॥
यदुपति ने माया से जाना ।
पार अपार वीर को पाना ॥
धर्म युद्ध की देत दुहाई ।
माँगत शीश दान यदुराई ॥
मनसा होगी पूर्ण तिहारी ।
रण देखोगे कहे मुरारी ॥
शीश दान बर्बरीक दीन्हा ।
अमृत बर्षा सुरग मुनि कीन्हा ॥
देवी शीश अमृत से सींचत ।
केशव धरे शिखर जहँ पर्वत ॥
जब तक नभ मण्डल मे तारे ।
सुर मुनि जन पूजेंगे सारे ॥
दिव्य शीश मुद मंगल मूला ।
भक्तन हेतु सदा अनुकूला ॥
रण विजयी पाण्डव गर्वाये ।
बर्बरीक तब न्याय सुनाये ॥
सर काटे था चक्र सुदर्शन ।
रणचण्डी करती लहू भक्षन ॥
न्याय सुनत हर्षित जन सारे ।
जग में गूँजे जय जयकारे ॥
श्याम नाम घनश्याम दीन्हा ।
अजर अमर अविनाशी कीन्हा ॥
जन हित प्रकटे खाटू धामा ।
लख दाता दानी प्रभु श्यामा ॥
खाटू धाम मौक्ष का द्वारा ।
श्याम कुण्ड बहे अमृत धारा ॥
शुदी द्वादशी फाल्गुण मेला ।
खाटू धाम सजे अलबेला ॥
एकादशी व्रत ज्योत द्वादशी ।
सबल काय परलोक सुधरशी ॥
खीर चूरमा भोग लगत हैं ।
दुःख दरिद्र कलेश कटत हैं ॥
श्याम बहादुर सांवल ध्याये ।
आलु सिँह ह्रदय श्याम बसाये ॥
मोहन मनोज विप्लव भाँखे ।
श्याम धणी म्हारी पत राखे ॥
नित प्रति जो चालीसा गावे ।
सकल साध सुख वैभव पावे ॥
श्याम नाम सम सुख जग नाहीं ।
भव भय बन्ध कटत पल माहीं ॥
॥ दोहा॥
त्रिबाण दे त्रिदोष मुक्ति दर्श दे आत्म ज्ञान ।
चालीसा दे प्रभु भुक्ति सुमिरण दे कल्यान ॥
खाटू नगरी धन्य हैं श्याम नाम जयगान ।
अगम अगोचर श्याम हैं विरदहिं स्कन्द पुरान ॥
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