जब हर राह हो बंद, तब थामते हैं श्याम हाथ! क्या आप भी कभी निराशा के गहरे सागर में डूबे हैं? जब जीवन की हर उम्मीद (hope) खत्म हो जाती है और लगता है कि अब कोई रास्ता नहीं बचा, तब एक नाम गूंजता है – हारे का सहारा, श्याम हमारा!
खाटू श्याम जी, जिन्हें ‘शीश के दानी’ और कलयुग का देव (God of Kalyug) कहा जाता है, उनके मंदिर में भक्तों का अटूट विश्वास (unwavering faith) है। पर क्या आप जानते हैं कि क्यों इस देवता को पूजने से, जीवन की हर निराशा और दुख दूर हो जाता है? आइए, इस अलौकिक शक्ति और उनके वरदान के पीछे की अद्भुत कहानी को जानते हैं।
कौन हैं हारे के सहारे, खाटू श्याम बाबा?
खाटू श्याम जी का संबंध महाभारत काल से है। वे पांडु पुत्र भीम के पौत्र और महाबली घटोत्कच के वीर पुत्र बर्बरीक थे। बर्बरीक बचपन से ही वीर, शक्तिशाली और धर्मपरायण थे। उन्हें अपनी माता मोरवी से एक विशेष शिक्षा मिली थी: “बेटा! हमेशा हारे हुए पक्ष का सहारा बनना।”
उन्होंने तपस्या करके तीन ऐसे अमोघ बाण (Invincible arrows) प्राप्त किए थे, जिनसे वह पल भर में पूरी सेना का विनाश कर सकते थे। यही तीन बाण उन्हें ‘तीन बाण धारी’ भी बनाते हैं।
वरदान जो बना कलयुग का आधार
महाभारत युद्ध के समय, बर्बरीक अपनी माता को दिया वचन निभाने के लिए युद्ध भूमि की ओर प्रस्थान कर रहे थे। भगवान श्रीकृष्ण, जो भविष्य जानते थे, यह समझ गए कि बर्बरीक अगर युद्ध में शामिल हुए, तो कोई भी पक्ष नहीं जीत पाएगा।
एक ब्राह्मण वेश में श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उनका शीश दान में मांग लिया। बर्बरीक ने, अपनी दानवीरता (Generosity) और धर्म के प्रति निष्ठा के कारण, सहर्ष अपना शीश दान कर दिया। उनके इस महान बलिदान से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें यह अद्भुत वरदान दिया:
“कलियुग में तुम मेरे ‘श्याम’ नाम से पूजे जाओगे। जो भी भक्त, संसार से हारकर, निराश होकर तुम्हारे पास आएगा, तुम उसका सहारा बनोगे। तुम सबसे पहले पूजे जाने वाले देव होगे।”
बस तभी से, बर्बरीक, खाटू के श्याम बाबा बन गए और ‘हारे का सहारा’ कहलाए।
क्यों दूर होती है हर निराशा? – तीन मुख्य कारण
खाटू श्याम बाबा को पूजने से भक्तों के जीवन से निराशा और हताशा दूर होने के पीछे केवल कथाएं नहीं, बल्कि गहरी आत्मिक (spiritual) और मनोवैज्ञानिक (psychological) कारण भी हैं:
- वरदान की शक्ति और नाम का प्रभाव (Power of the Blessing) – श्याम बाबा को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण का वरदान प्राप्त है। उनका नाम ही ‘हारे का सहारा’ है। जब कोई भक्त सच्चे मन से इस नाम को लेता है, तो उसे यह विश्वास मिलता है कि अब उसके साथ स्वयं श्रीकृष्ण का दिया हुआ एक शक्तिशाली रक्षक खड़ा है। यह विश्वास ही निराशा की सबसे बड़ी दवा है।
- शीश दान का सर्वोच्च बलिदान (Supreme Sacrifice) – श्याम बाबा ने बिना किसी स्वार्थ के अपना शीश दान कर दिया। उनका यह बलिदान हमें सिखाता है कि निस्वार्थ भाव से किया गया त्याग कभी व्यर्थ नहीं जाता। भक्त जब उनके इस त्याग को याद करते हैं, तो उन्हें अपने छोटे-मोटे दुखों से लड़ने की बड़ी प्रेरणा मिलती है।
- न्याय और धर्म का प्रतीक – बाबा श्याम ने अपनी माता को वचन दिया था कि वह हमेशा ‘हारे’ के पक्ष में रहेंगे। कलयुग में, जब अन्याय और दुख बढ़ता है, तब श्याम बाबा का यह वचन भक्तों को न्याय और रक्षा का आश्वासन देता है। यह भरोसा मिलता है कि जब दुनिया साथ छोड़ दे, तब भी उनका श्याम उनके साथ खड़ा है।
पूजा का सही भाव – श्याम बाबा को कैसे पूजें?
श्याम बाबा की पूजा का अर्थ केवल कर्मकांड (rituals) नहीं है, बल्कि एक गहरा भाव है।
- समर्पण (Dedication) – सबसे पहले, अपने आप को बाबा के चरणों में पूर्ण रूप से समर्पित कर दें। मन से यह स्वीकार करें कि अब आपकी जीवन नैया के खेवनहार वह स्वयं हैं।
- सच्चा प्रेम – श्याम बाबा प्रेम के भूखे हैं। उन्हें छप्पन भोग से ज्यादा, एक आंसू और सच्ची अरदास पसंद है।
- नाम जाप (Chanting) – नियमित रूप से “जय श्री श्याम” या “हारे का सहारा, श्याम हमारा” का जाप करें। उनका नाम ही महामंत्र है।
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