|| कृष्णापिंगला संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा ||
द्वापर युग में महिष्मति नगरी में महीजित नाम के एक प्रतापी राजा रहते थे। वे पुण्य कर्म करने वाले और अपनी प्रजा का अच्छे से पालन-पोषण करने वाले राजा थे। लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी, जिससे उन्हें राजमहल का वैभव अच्छा नहीं लगता था। वेदों में संतानहीन व्यक्ति का जीवन व्यर्थ माना गया है और संतानविहीन व्यक्ति द्वारा पितरों को दिया गया जल पितृगण गरम जल के रूप में ग्रहण करते हैं, यही सोचकर राजा महीजित के जीवन का बहुत समय व्यतीत हो गया।
पुत्र प्राप्ति के लिए उन्होंने कई दान, यज्ञ आदि करवाए, लेकिन फिर भी उन्हें संतान नहीं मिली। एक समय राजा ने विद्वान ब्राह्मणों और प्रजाजनों से इस विषय पर परामर्श किया। राजा ने कहा, “हे ब्राह्मणों तथा प्रजाजनों! मेरी कोई संतान नहीं है, अब मेरी क्या गति होगी? मैंने अपने जीवन में कोई पाप नहीं किया। अपनी प्रजा का पुत्रवत पालन किया और धर्म का हमेशा पालन किया। फिर भी मुझे अब तक पुत्र क्यों नहीं प्राप्त हुआ?”
यह सुनकर विद्वान ब्राह्मणों ने कहा, “हे महाराज! हम लोग इस समस्या का हल ढूंढने की पूरी कोशिश करेंगे।” ऐसा कहकर सभी लोग राजा के मनोरथ की सिद्धि के लिए ब्राह्मणों के साथ वन में चले गए। वन में उन्हें एक श्रेष्ठ मुनि के दर्शन हुए, जो निराहार रहकर अपनी तपस्या में लीन थे। उनका निर्मल नाम लोमश ऋषि था। सभी लोग उनके समक्ष जाकर खड़े हो गए और मुनिराज से कहा, “हे ब्रह्मऋषि! हम लोगों के दुःख का कारण सुनिए। हे भगवन! आप ऐसा कोई उपाय बतलाइए जिससे इस दुख का निवारण हो सके।”
महर्षि लोमश ने पूछा, “सज्जनों! आप लोग यहां किस कारण आए हैं? स्पष्ट रूप से कहिए।” प्रजाजनों ने कहा, “हे मुनिवर! हमारे राजा का नाम महीजित है जो ब्राह्मणों के रक्षक, धर्मात्मा, दानवीर, शूरवीर और मधुरभाषी हैं। उन्होंने ही हम लोगों का पालन-पोषण किया है, परंतु ऐसे राजा को आज तक संतान की प्राप्ति नहीं हुई। हे महर्षि, आप कोई ऐसी युक्ति बताइए जिससे हमारे राजा को संतान सुख की प्राप्ति हो सके, क्योंकि ऐसे गुणवान राजा को संतान का न होना बड़े ही दुख की बात है।”
प्रजा की बात सुनकर महर्षि लोमश ने कहा, “मैं संकटनाशन व्रत के बारे में बता रहा हूं। यह व्रत निसंतान को संतान और निर्धनों को धन देता है। आषाढ़ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को ‘एकदंत गजानन’ नामक गणेश की पूजा करें। राजा पूरी श्रद्धा से यह व्रत रखकर ब्राह्मण भोज करवाएं और उन्हें वस्त्र दान करें। गणेश जी की कृपा से उन्हें पुत्र अवश्य प्राप्त होगा।”
महर्षि लोमश की बात सुनकर सभी लोग उन्हें दंडवत प्रणाम करके नगर में लौट आए और उन्होंने राजा को महर्षि लोमश द्वारा बताए गए उपाय के बारे में बताया। प्रजाजनों की बात सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने श्रद्धापूर्वक गणेश चतुर्थी का व्रत किया। कुछ समय बाद राजा की पत्नी रानी सुदक्षिणा को सुंदर और सुलक्षण पुत्र प्राप्त हुआ।
श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि इस व्रत का ऐसा ही प्रभाव है। जो व्यक्ति इस व्रत को करता है, उसे समस्त सांसारिक सुख प्राप्त होते हैं।
|| कृष्ण पिंगला चतुर्थी पूजाविधि ||
- कृष्ण पिंगला चतुर्थी तिथि के दिन सुबह जल्दी उठकर शुद्ध पानी से स्नान करें।
- उसके पश्चात साफ पीले या लाल रंग के वस्त्र धारण करें।
- घर की पूरी तरह से सफाई करें और पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव करें।
- पूजा के स्थान पर चौकी रखें और उसके ऊपर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं। उसके ऊपर गणेश भगवान की प्रतिमा रखें।
- अब भगवान गणेश को घी का दीपक लगाएं और सिंदूर चढ़ाएं।
- इसके बाद पुष्प चढ़ाकर पूजन की सारी सामग्री अर्पित करें।
- भोग के लिए फल, मोदक या मोतीचूर के लड्डू भी चढ़ा सकते हैं।
- उसके बाद भगवान गणेश जी की आरती करें।
- पूजा करते समय भगवान गणेश के मंत्रों का उच्चारण भी करते रहें।
- संध्या के समय चंद्रमा निकलने के बाद पूजा करके भोजन ग्रहण करें।
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