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Nagula Chavithi – गुला चविथी क्यों मनाई जाती है? नाग पूजा, व्रत कथा और महिलाओं के लिए खास महत्व

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भारत में त्योहारों की एक लंबी श्रृंखला है, और हर त्योहार का अपना एक खास महत्व और कहानी होती है। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण पर्व है “नागुला चविथी” (Nagula Chavithi)। यह पर्व मुख्य रूप से दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक राज्यों में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। नागुला चविथी का शाब्दिक अर्थ है “नागों की चतुर्थी” (Fourth Day of Snakes), जो दिवाली के बाद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को आती है। यह पर्व सिर्फ एक पूजा नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति सम्मान, श्रद्धा और जीवन के चक्र का प्रतीक है। इस ब्लॉग में हम नागुला चविथी के बारे में विस्तार से जानेंगे, इसकी पूजा विधि, व्रत कथा और सबसे महत्वपूर्ण, महिलाओं के लिए इसका क्या खास महत्व है।

क्यों मनाई जाती है नागुला चविथी? (Why is Nagula Chavithi Celebrated?)

नागुला चविथी मनाने के पीछे कई पौराणिक और सांस्कृतिक मान्यताएं हैं। यह पर्व मुख्य रूप से नाग देवता की पूजा को समर्पित है, जिन्हें भगवान शिव के गले का हार और सृष्टि के संतुलन का रक्षक माना जाता है।

  • नाग देवता की पूजा का महत्व – हिंदू धर्म में नागों को पूजनीय माना जाता है। वे सिर्फ रेंगने वाले जीव नहीं, बल्कि शक्ति, ज्ञान और प्रजनन क्षमता के प्रतीक हैं। भगवान विष्णु भी शेषनाग पर ही शयन करते हैं, जो यह दर्शाता है कि नाग सृष्टि के आधार हैं। नागुला चविथी के दिन, नागों को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए पूजा की जाती है। माना जाता है कि नाग देवता की पूजा करने से सर्पदंश का भय दूर होता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
  • फसलों की सुरक्षा – यह पर्व कृषि (agriculture) से भी जुड़ा हुआ है। नागुला चविथी का समय खरीफ फसलों की कटाई के आसपास होता है। किसान मानते हैं कि खेतों में रहने वाले नाग, चूहों और अन्य कीड़ों को खाकर उनकी फसलों की रक्षा करते हैं। इसलिए, यह पर्व किसानों द्वारा नागों के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका भी है।
  • पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति – धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नागुला चविथी के दिन व्रत और पूजा करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह एक ऐसा दिन है जब भक्त अपने जीवन को संतुलित करने और प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करते हैं।

नागुला चविथी की पूजा विधि (Puja Vidhi)

  • इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान किया जाता है। घर को साफ-सुथरा कर पूजा की तैयारी की जाती है।
  • पारंपरिक रूप से, लोग नागों के बिल या “नागपुट्टु” (नागों का घर) पर जाते हैं। वहां वे दूध, हल्दी, कुमकुम, अंडे और फूल चढ़ाते हैं। यह एक प्रतीकात्मक बलि है, जो नागों को अर्पित की जाती है।
  • इस दिन विशेष रूप से “पुट्टला माती” (नागों के बिल की मिट्टी) से बने लड्डू, मूंगफली, चना और गुड़ का भोग लगाया जाता है।
  • पूजा के बाद, नाग देवता की आरती की जाती है और “नाग गायत्री मंत्र” या अन्य नाग स्तोत्र का पाठ किया जाता है।

नागुला चविथी की व्रत कथा (Vrat Katha)

नागुला चविथी की कई व्रत कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन एक सबसे प्रसिद्ध कथा है। एक बार एक गांव में एक गर्भवती महिला थी, जिसने नागों को मारने वाले एक किसान को देखा। किसान ने नागों को मार डाला, लेकिन महिला ने एक नागिन के अंडे को बचा लिया। जब नागिन को यह पता चला, तो वह बहुत प्रसन्न हुई और उसने महिला को आशीर्वाद दिया। उस दिन से, उस महिला के परिवार में कभी कोई सर्पदंश नहीं हुआ। यह कथा नागों के प्रति दया और सम्मान का महत्व सिखाती है।

नागुला चविथी – महिलाओं के लिए खास महत्व (Special Significance for Women)

नागुला चविथी का पर्व विशेष रूप से महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और पूजा करती हैं, जिसके पीछे कई कारण हैं:

  • यह पर्व संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाली महिलाओं के लिए बहुत शुभ माना जाता है। महिलाएं नाग देवता से प्रार्थना करती हैं कि उन्हें स्वस्थ और दीर्घायु संतान का आशीर्वाद मिले।
  • नवविवाहित महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि के लिए इस दिन व्रत रखती हैं।
  • महिलाएं अपने परिवार को सर्पदंश और अन्य खतरों से बचाने के लिए नाग देवता की पूजा करती हैं।
  • यह पर्व महिलाओं की पवित्रता, भक्ति और परिवार के प्रति उनके त्याग को दर्शाता है। वे पूरे दिन व्रत रखती हैं और अपने परिवार के कल्याण के लिए प्रार्थना करती हैं।

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