नारली पूर्णिमा 2026 का त्यौहार 28 अगस्त 2026 (शुक्रवार) को मनाया जाएगा। यह पर्व मुख्य रूप से महाराष्ट्र और कोंकण के तटीय क्षेत्रों में रहने वाले कोली (मछुआरा) समुदाय के लिए विशेष महत्व रखता है। नारली पूर्णिमा, जिसे श्रावण पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, भारत के पश्चिमी तटों पर, विशेषकर महाराष्ट्र और गोवा में, बड़े ही धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है।
यह पर्व सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि समुद्री समुदाय के लिए एक गहन सांस्कृतिक और पारंपरिक महत्व रखता है। इसे अक्सर ‘समुद्री समाज की राखी’ कहा जाता है। आइए, नारली पूर्णिमा 2026 के इस शुभ अवसर पर हम इस अनूठे त्योहार के महत्व, परंपराओं और इसे समुद्री समुदाय की राखी क्यों कहा जाता है, इस पर विस्तार से प्रकाश डालें।
नारली पूर्णिमा 2026 कब है?
2025 में नारली पूर्णिमा 28 अगस्त 2026 (शुक्रवार) को मनाई जाएगी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा को आती है, जो आमतौर पर रक्षा बंधन के साथ ही पड़ती है।
क्या है नारली पूर्णिमा?
‘नारली’ शब्द ‘नारियल’ से आया है, और ‘पूर्णिमा’ का अर्थ है पूर्ण चंद्रमा। नारली पूर्णिमा का शाब्दिक अर्थ है “नारियल की पूर्णिमा”। यह दिन मानसून के चरम पर आने और मछली पकड़ने के नए मौसम की शुरुआत का प्रतीक है। इस दिन मछुआरे और समुद्री यात्रा करने वाले लोग समुद्र देव, वरुण देव की पूजा करते हैं, उन्हें नारियल अर्पित करते हैं, और उनसे अपनी सुरक्षा, समृद्धि और समुद्र में उनकी यात्राओं को शांतिपूर्ण बनाने की प्रार्थना करते हैं।
समुद्री समाज की राखी क्यों?
नारली पूर्णिमा को ‘समुद्री समाज की राखी’ कहना बिल्कुल सटीक है। जिस प्रकार बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उसकी लंबी आयु और सुरक्षा की कामना करती है, उसी प्रकार मछुआरा समुदाय समुद्र देव को नारियल अर्पित कर उनसे अपनी और अपनी आजीविका की सुरक्षा का आग्रह करता है।
- समुद्र देव से अटूट संबंध – मछुआरों के लिए समुद्र केवल पानी का एक विशालकाय पिंड नहीं, बल्कि जीवनदायिनी है। उनकी आजीविका, उनका भरण-पोषण सब समुद्र पर ही निर्भर करता है। मानसून के दौरान, समुद्र अक्सर उग्र होता है और मछुआरों को मछली पकड़ने से रुकना पड़ता है। नारली पूर्णिमा उस अवधि के अंत का प्रतीक है, जब मछुआरे फिर से अपनी नौकाओं को समुद्र में उतारने की तैयारी करते हैं।
- सुरक्षा और समृद्धि की कामना – नारियल को समुद्र में अर्पित करना एक प्रतीकात्मक कार्य है। यह समुद्र देव को धन्यवाद देने और उनसे आने वाले मछली पकड़ने के मौसम में शांत रहने, भरपूर मछली देने और मछुआरों की नावों और उनके जीवन की रक्षा करने की प्रार्थना है। यह एक तरह से समुद्र के साथ उनके ‘बंधन’ को मजबूत करने जैसा है, जिससे उन्हें सुरक्षित और समृद्ध भविष्य की आशा होती है।
नारली पूर्णिमा का महत्व और परंपराएं
यह पर्व केवल नारियल चढ़ाने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कई रंगीन और गहरी परंपराएं समाहित हैं:
- नारियल का विशेष महत्व – नारियल को हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ माना जाता है। इसे ‘श्रीफल’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘शुभ फल’। नारली पूर्णिमा पर, विशेष रूप से पानी वाला नारियल, जिसे श्रीफल कहते हैं, समुद्र में अर्पित किया जाता है। माना जाता है कि यह नारियल समुद्र देव को प्रसन्न करता है और उनकी कृपा सुनिश्चित करता है।
- समुद्र पूजन और मंत्रोच्चार – इस दिन, मछुआरा समुदाय के लोग अपनी नावों को सजाते हैं। महिलाएं और पुरुष नए वस्त्र धारण करते हैं। वे समुद्र तट पर एकत्र होते हैं और विधि-विधान से समुद्र देव का पूजन करते हैं। मंत्रोच्चार और आरती की जाती है, जिसमें समुद्र की शक्ति और उसके महत्व का गुणगान किया जाता है।
- नावों को सजाना और मरम्मत करना – मानसून के दौरान, नौकाओं को आमतौर पर किनारे पर ही रखा जाता है। नारली पूर्णिमा से पहले, मछुआरे अपनी नौकाओं की मरम्मत करते हैं, उन्हें रंगते हैं और उन्हें फूलों व पत्तियों से सजाते हैं। यह एक तरह से उन्हें अगले मछली पकड़ने के मौसम के लिए तैयार करने का संकेत है।
- पारंपरिक भोजन और उत्सव – इस दिन पारंपरिक भोजन बनाए जाते हैं, जिसमें नारियल का विशेष रूप से उपयोग होता है। नारियल के चावल (नारली भात), नारियल की बर्फी, और अन्य व्यंजन बनाए जाते हैं। परिवार और समुदाय के लोग एक साथ मिलकर भोजन करते हैं और उत्सव मनाते हैं।
- रक्षा बंधन का समानांतर उत्सव – चूंकि नारली पूर्णिमा अक्सर रक्षा बंधन के साथ आती है, इसलिए कई घरों में भाई-बहन भी इस दिन राखी का त्योहार मनाते हैं। यह पर्व पारिवारिक संबंधों और सामुदायिक एकता दोनों को मजबूत करता है।
- पर्यावरण संरक्षण का संदेश – अप्रत्यक्ष रूप से, यह पर्व हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाने और उसके प्रति सम्मान रखने का संदेश भी देता है। यह याद दिलाता है कि हमारी आजीविका और अस्तित्व प्रकृति पर कितना निर्भर करता है, और हमें उसका संरक्षण करना चाहिए।
नारली पूर्णिमा का सांस्कृतिक प्रभाव
यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसका गहरा सांस्कृतिक प्रभाव भी है। यह तटीय समुदायों की पहचान का एक अभिन्न अंग है। लोकगीत, नृत्य और कहानियां इस पर्व से जुड़ी हुई हैं, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती हैं। यह त्योहार समुदाय को एक साथ लाता है, एकता और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देता है।
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