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रांधण छठ 2025 कब है? रांधण छठ और शीतला सातम, क्यों बनाया जाता है एक दिन पहले भोजन? जानिए पूजा विधि और महत्व

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भारत के लोकपर्वों की बात करें तो रांधण छठ और शीतला सातम का नाम प्रमुखता से आता है, खासकर गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में। ये दोनों पर्व एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और स्वास्थ्य तथा सुख-समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि शीतला सातम से ठीक एक दिन पहले, यानी रांधण छठ पर ही भोजन क्यों बनाया जाता है और अगले दिन बासी भोजन खाने का क्या महत्व है? आइए, हम रांधण छठ और शीतला सातम 2025 की तिथि, इनके पीछे की पौराणिक कथा, पूजा विधि और इसके अनूठे महत्व को विस्तार से जानते हैं।

रांधण छठ 2025 कब है?

2025 में, रांधण छठ गुरुवार, 14 अगस्त 2025 को मनाई जाएगी। यह श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को पड़ती है। ठीक इसके अगले दिन, यानी शुक्रवार, 15 अगस्त 2025 को शीतला सातम (शीतला सप्तमी) मनाई जाएगी।

रांधण छठ और शीतला सातम – एक अनूठा संबंध

रांधण छठ (गुजराती में ‘रांधण’ का अर्थ है ‘पकाना’ और ‘छठ’ का अर्थ है ‘छठी तिथि’) का पर्व शीतला सातम से ठीक एक दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन घरों में विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट पकवान जैसे रोटला, थेपला, पूड़ी, सब्ज़ियां और मिठाइयां बनाई जाती हैं। इन पकवानों को अगले दिन यानी शीतला सातम को देवी शीतला को भोग लगाकर खाया जाता है। शीतला सातम के दिन चूल्हा नहीं जलाया जाता और केवल ठंडा, बासी भोजन ही ग्रहण किया जाता है।

क्यों बनाया जाता है एक दिन पहले भोजन? इसके पीछे का गहरा महत्व

यह परंपरा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि इसके पीछे वैज्ञानिक और सामाजिक महत्व भी छिपा है:

  • शीतला माता को चेचक, खसरा और अन्य शीत रोगों की देवी माना जाता है। गर्मी और बरसात के मौसम में इन बीमारियों के फैलने का खतरा अधिक होता है। शीतला सातम पर बासी भोजन ग्रहण करने का यह संदेश है कि हमें भोजन को अच्छी तरह पकाकर, ठंडा करके और स्वच्छ तरीके से रखना चाहिए ताकि वह खराब न हो। यह स्वच्छता और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का प्रतीक है।
  • इस दिन चूल्हा न जलाने का एक प्रतीकात्मक अर्थ यह भी है कि गृहणियों को इस दिन आराम मिलता है। सदियों से महिलाएं घर-परिवार के लिए निरंतर परिश्रम करती आ रही हैं। यह दिन उन्हें रसोई के काम से एक दिन की छुट्टी देता है।
  • बासी (ठंडा) भोजन खाने का अर्थ है शरीर और मन में शीतलता लाना। यह धैर्य और सादगी का भी प्रतीक है। यह सिखाता है कि हमें हर परिस्थिति में शांत रहना चाहिए।
  • रांधण छठ पर बनाए जाने वाले पकवान अक्सर पारंपरिक और पौष्टिक होते हैं। यह परंपरा इन प्राचीन व्यंजनों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाने में मदद करती है।
  • प्राचीन काल में, इस दिन चूल्हा न जलाने का संबंध पर्यावरण संतुलन से भी रहा होगा। यह लकड़ी या अन्य ईंधन की बचत का एक तरीका भी हो सकता है।

रांधण छठ और शीतला सातम की पूजा विधि

रांधण छठ (14 अगस्त 2025) के दिन

  • घर की साफ-सफाई करें, विशेषकर रसोईघर की।
  • सायं काल या दिन के समय विभिन्न प्रकार के पकवान (रोटला, पूड़ी, थेपला, दाल, चावल, सब्ज़ियां, मिठाई आदि) बनाएं।
  • कुछ घरों में मिट्टी के बर्तनों में भी भोजन पकाया जाता है।
  • बने हुए भोजन को ठंडा होने दें और उसे अगले दिन के लिए सुरक्षित रख दें।
  • इस दिन गैस चूल्हे को अच्छी तरह साफ करके उसकी पूजा की जाती है। कुछ लोग चूल्हे को ठंडा कर देते हैं और उस पर पानी की बूंदें डालते हैं, यह दर्शाते हुए कि अगले दिन चूल्हा नहीं जलेगा।

शीतला सातम (15 अगस्त 2025) के दिन

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।
  • इस दिन चूल्हा बिल्कुल न जलाएं।
  • शीतला माता की पूजा के लिए स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • एक थाली में रांधण छठ के दिन बना हुआ ठंडा भोजन (जैसे दही-भात, पकवान, मिठाई, मीठे गुलगुले आदि) लें।
  • एक लोटे में ठंडा पानी, हल्दी, कुमकुम, अक्षत, फूल और रोली लें।
  • शीतला माता मंदिर जाकर या घर पर ही माता शीतला की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
  • माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाएं। जल अर्पित करें।
  • रोली, हल्दी, अक्षत और फूल से माता की पूजा करें।
  • शीतला स्तोत्र या शीतला माता चालीसा का पाठ करें।
  • पूजा के बाद लोटे का बचा हुआ जल घर के सदस्यों पर और घर में छिड़कें। मान्यता है कि इससे शीत रोगों से बचाव होता है।
  • पूजा के बाद सभी सदस्य रांधण छठ पर बना हुआ ठंडा भोजन ही ग्रहण करें।
  • इस दिन ठंडे जल से स्नान करना भी शुभ माना जाता है।

शीतला सातम का महत्व

शीतला सातम का पर्व मुख्य रूप से उत्तम स्वास्थ्य और रोगों से मुक्ति के लिए मनाया जाता है। माता शीतला को स्वच्छता और आरोग्य की देवी के रूप में पूजा जाता है। यह मान्यता है कि जो व्यक्ति सच्चे मन से शीतला माता की पूजा करता है और बासी भोजन ग्रहण करने के नियम का पालन करता है, उसे चेचक, खसरा, फुंसी आदि त्वचा संबंधी रोग नहीं होते। यह पर्व परिवार की सुख-समृद्धि और बच्चों के स्वास्थ्य के लिए भी विशेष फलदायी माना जाता है।

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