|| आरती ||
आरती संग सतगुरु के कीजै।
अन्तर जोत होत लख लीजै ।।
पाँच तत्व तन अग्नि जराई।
दीपक चास प्रकाश करीजै ।।
गगन-थाल रवि-शशि फल-फूला।
मूल कपूर कलश धर दीजै ।।
अच्छत नभ तारे मुक्ताहल।
पोहप-माल हिय हार गुहीजै ।।
सेत पान मिष्टान्न मिठाई।
चन्दन धूप दीप सब चीजैं ।।
झलक झाँझ मन मीन मँजीरा।
मधुर-मधुर धुनि मृदंग सुनीजै ।।
सर्व सुगन्ध उडि़ चली अकाशा।
मधुकर कमल केलि धुनि धीजै ।।
निर्मल जोत जरत घट माँहीं।
देखत दृष्टि दोष सब छीजै ।।
अधर-धार अमृत बहि आवै।
सतमत-द्वार अमर रस भीजै ।।
पी-पी होय सुरत मतवाली।
चढि़-चढि़ उमगि अमीरस रीझै ।।
कोट भान छवि तेज उजाली।
अलख पार लखि लाग लगीजै ।।
छिन-छिन सुरत अधर पर राखै।
गुरु-परसाद अगम रस पीजै ।।
दमकत कड़क-कड़क गुरु-धामा।
उलटि अलल ‘तुलसी’ तन तीजै । ।
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