|| आरती ||
जय ‘अरिहंताण’, स्वामी जय अरिहंताण।
भाव-भक्ति से नित्य-प्रति, प्रणमूं ‘सिद्धाण’ ॥
ॐ जय अरिहंताण ||टेर॥
दर्शन-ज्ञान-अनन्ता, शक्ति के धारी | स्वामी।
यथाख्यात समकित है, कर्म-शत्रु हारी || ॐ ||
हे सर्वज्ञ !सर्वदर्शी ! बल, सुख अनन्त पाये ।स्वामी।
अगुरुलघु अमूरत, अव्यय कहलाये ।।ॐ।।
‘नमो आयरियाण’, छत्तीस गुण पालक ।स्वामी।
जैनधर्म के नेता, संघ के संचालक || ॐ।।
‘नमो उवज्झायाणं’ चरण-करण ज्ञाता | स्वामी ।
अंग-उपांग पढ़ाते, ज्ञान-दान दाता ।। ॐ।।
‘नमो लोए सव्व साहूणं ‘ ममता मद हारी | स्वामी ।
सत्य-अहिंसा-अस्तेय, ब्रह्मचर्य धारी ।। ॐ ।।
‘चौथमल’ कहे शुद्ध मन, जो नर ध्यान धरे । स्वामी ।
पावन पंच परमेष्ठी, मंगलाचार करे॥ॐ।।
|| ” पंच परमेष्ठी की जय ” ||
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