|| श्री वेंकटेश्वर चालीसा ||
|| दोहा ||
रामानुज पदकमल का,
मन में धर कर ध्यान।
श्रीनिवास भगवान का,
करें विमल गुण गान ।।
तिरुपति की महिमा बड़ी,
गाते वेद-पुरान ।
कलियुग में प्रत्यक्ष हैं,
वेंकटेश भगवान ।।
|| चौपाई ||
जय श्रीवेंकटेश करुणा कर ।
श्रीनिवास स्वामी सुख सागर ।।
जय जय तिरुपति धाम निवासी ।
अखिल लोक स्वामी अविनाशी ।।
जय श्रीवेंकटेश भगवाना ।
करुणा सागर कृपा निधाना ।।
सप्तगिरि शेषाचल वासी ।
तिरुपति पर्वत शिखर निवासी ।।
श्री दर्शन महिमा अति भारी ।
आते नित लाखों नर नारी ।।
देव ऋषि गंधर्व जगाते ।
सुप्रभात सब मिल कर गाते ।।
सकल सृष्टि के प्राणी आवें ।
सुप्रभात शुभ दर्शन पावें ।।
विश्वरूप दर्शन सुखकारी ।
श्रीविग्रह की शोभा भारी ।।
वेद पुराण शास्त्र यश गावें ।
अति दुर्लभ दर्शन बतलावें ।।
जिन पर प्रभु कृपा करते हैं ।
उनको यह दर्शन मिलते हैं ।।
महा विष्णु श्रीमन्नारायण ।
भक्तों के कारज सारायण ।।
शेषाचल पर सदा विराजे ।
शंख चक्र कर सुन्दर साजे ।।
अभय हस्त की मुद्रा प्यारी ।
सफल कामना करती सारी ।।
वेंकटेश प्रभु तिरुपति बाला ।
शरणागत रक्षक प्रतिपाला ।।
श्रीवैकुण्ठ लोक निज तज कर ।
श्रीस्वामी पुष्करिणी तट पर ।।
भक्त कार्य करने को आये ।
कलियुग में प्रत्यक्ष कहाये ।।
स्वामी तीर्थ पुण्यप्रद पावन ।
स्नान मात्र सब पाप नशावन ।।
जो इसमें करते हैं स्नान ।
उनको मिलता पुण्य महान ।।
प्रथम यहां दर्शन अधिकारी ।
श्रीवराह स्वामी सुखकारी ।।
पहले दर्शन इनका करके ।
भू-वराह को प्रथम सुमिर के ।।
श्रीवेंकटेश चरण चित धरना ।
श्रीनिवास के दर्शन करना ।।
वेंकटेश सम इस कलियुग में ।
अन्य देव नहीं इस जग में ।।
पहले भी नहीं हुआ कहीं है ।
आगे हो यह सत्य नहीं है ।।
‘ओऽम्’ नम: श्रीवेंकटबाला ।
भक्तजनों के तुम रखवाला ।।
भक्त जहां अगणित नित आते ।
सोना चांदी नकद चढ़ाते ।।
श्रद्धा से कर हुण्डी सेवा ।
सेवा से पाते सब मेवा।।
श्रीनिवास की सुन्दर मूर्ति ।
मनोकामना करती पूर्ति ।।
दर्शन कर हर्षित सब तन मन ।
सुन्दर सुखद सुशोभित दर्शन ।।
दिव्य मधुर सुन्दर प्रसाद है ।
‘लड्डू’ अमृत दिव्य स्वाद है ।।
महाप्रसाद दिव्य जो पाते ।
उनके पाप सभी कट जाते ।।
महिमा अति प्रसाद की भारी ।
मिटती भव बाधायें सारी ।।
केशर-चंदन युत चरणामृत ।
दिव्य सुगन्धित प्रभु का तीरथ ।।
तीर्थ-प्रसाद भक्त जो पाते ।
आवागमन मुक्त हो जाते ।।
‘चौरासी’ में फिर नहीं आते।
जो प्रसाद ‘लड्डू’ का पाते ।।
सुख संपत्ति वांछित फल पावे ।
फिर वैकुण्ठ लोक में जावे ।।
‘वें’ का अर्थ पाप बतलाया ।
‘कट’ का अर्थ काट दे माया ।।
माया पाप काटने वाला ।
वेंकटेश प्रभु तिरुपति बाला ।।
श्रीनिवास विष्णु अवतारा ।
महिमा जानत है जग सारा ।।
जो यह श्री चालीसा गावे ।
सकल पदारथ जग के पावे ।।
शब्द पुष्प श्री चरण चढ़ाकर ।
करे प्रार्थना भक्त ‘गदाधर’ ।।
|| दोहा ||
जय जय श्रीतिरुपति-पति श्रीनिवास भगवान ।
करो सिद्ध सब कामना स्वामी कृपा निधान ।।
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