|| थाईपुसम पौराणिक कथा ||
थाईपूसम एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जिसे मुख्य रूप से तमिल समुदाय के लोग बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाते हैं। यह त्योहार तमिल सौर मास थाई (जनवरी-फरवरी) में पूर्णिमा के दिन आता है। अन्य हिंदू कैलेंडर में इस माह को सौर मास मकर के नाम से जाना जाता है।
यह त्योहार उस ऐतिहासिक घटना को दर्शाता है जब देवी पार्वती ने भगवान मुरुगन को एक दिव्य भाला भेंट किया था। इस भाले के माध्यम से भगवान मुरुगन ने दुष्ट राक्षस सुरपद्म और उसकी सेना को पराजित किया था। यह उत्सव अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है।
तमिल बहुल देशों जैसे भारत और श्रीलंका में थाईपूसम बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इसके अलावा, मलेशिया, सिंगापुर और मॉरीशस जैसे देशों में, जहां तमिल समुदाय अल्पसंख्यक है, वहां भी इसे बड़े जोश और उल्लास के साथ मनाया जाता है। मलेशिया के बातू गुफाओं में इस त्योहार का उत्सव विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
थाईपूसम कैसे मनाया जाता है?
- थाईपूसम के दिन भक्त भगवान मुरुगन को पीले और नारंगी रंग के फूल, फल और दूध अर्पित करते हैं। ये रंग भगवान मुरुगन के प्रिय माने जाते हैं। भक्त इन रंगों के वस्त्र पहनकर मंदिरों में प्रार्थना करते हैं।
- भक्त कंधों पर “कावड़ी” (दूध और पुष्प से भरा एक झूला) लेकर लंबी दूरी तय करते हैं और भगवान मुरुगन के मंदिरों में चढ़ाते हैं। मलेशिया के बातू गुफा मंदिर में कावड़ी यात्रा विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जहां हजारों श्रद्धालु इस यात्रा में भाग लेते हैं।
- भगवान मुरुगन को प्रसन्न करने के लिए भक्त अपने शरीर को कष्ट देकर अपनी भक्ति प्रकट करते हैं। वे अपने शरीर में हुक, कटार और छोटे-छोटे भाले (जिन्हें “वेल” कहा जाता है) से छेद करवाते हैं। यह उनकी अपार श्रद्धा और समर्पण को दर्शाता है।
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