वरूथिनी एकादशी व्रत कथा और पूजा विधि PDF हिन्दी
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वरूथिनी एकादशी व्रत कथा और पूजा विधि हिन्दी Lyrics
॥ वरूथिनी एकादशी पूजा विधि ॥
- सर्वप्रथम एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि करके निवृत्त हो जाएँ।
- इसके बाद साफ सुथरे कपड़े धारण कर लें।
- अब भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
- तत्पश्चात एक चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र को स्थापित कर लें।
- अब आप चाहे तो पूजा घर में ही जहां चित्र रखा हो वहीं पर रखा रहने दें।
- इसके बाद भगवान विष्णु को पीले रंग के पुष्प, माला चढ़ाएं।
- तदोपरान्त भगवान श्री हरी विष्णु जी को पीला चंदन लगाएं।
- तत्पश्चात भगवान को भोग लगाकर घी का दीपक और धूप जलाएं।
- इसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम पाठ के साथ एकादशी व्रत कथा का पाठ भी कर लें।
- अंत में भगवान विष्णु जी की विधिवत आरती करें।
- आरती करने के पश्चात पूरे दिन फलाहार व्रत रहने के बाद द्वादशी के दिन व्रत का पारण कर दें।
॥ वरूथिनी एकादशी व्रत कथा ॥
बहुत समय पहले की बात है नर्मदा किनारे एक राज्य था जिस पर मांधाता नामक राजा राज किया करते थे। राज बहुत ही पुण्यात्मा थे, अपनी दानशीलता के लिये वे दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे। वे तपस्वी भी और भगवान विष्णु के उपासक थे। एक बार राजा जंगल में तपस्या के लिये चले गये और एक विशाल वृक्ष के नीचे अपना आसन लगाकर तपस्या आरंभ कर दी वे अभी तपस्या में ही लीन थे कि एक जंगली भालू ने उन पर हमला कर दिया वह उनके पैर को चबाने लगा।
लेकिन राजा मान्धाता तपस्या में ही लीन रहे भालू उन्हें घसीट कर ले जाने लगा तो ऐसे में राजा को घबराहट होने लगी, लेकिन उन्होंने तपस्वी धर्म का पालन करते हुए क्रोध नहीं किया और भगवान विष्णु से ही इस संकट से उबारने की गुहार लगाई। भगवान अपने भक्त पर संकट कैसे देख सकते हैं। विष्णु भगवान प्रकट हुए और भालू को अपने सुदर्शन चक्र से मार गिराया। लेकिन तब तक भालू राजा के पैर को लगभग पूरा चबा चुका था। राजा बहुत दुखी थे दर्द में थे।
भगवान विष्णु ने कहा वत्स विचलित होने की आवश्यकता नहीं है। वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी जो कि वरुथिनी एकादशी कहलाती है पर मेरे वराह रूप की पजा करना। व्रत के प्रताप से तुम पुन: संपूर्ण अंगो वाले हष्ट-पुष्ट हो जाओगे। भालू ने जो भी तुम्हारे साथ किया यह तुम्हारे पूर्वजन्म के पाप का फल है। इस एकादशी के व्रत से तुम्हें सभी पापों से भी मुक्ति मिल जायेगी।
भगवन की आज्ञा मानकर मांधाता ने वैसा ही किया और व्रत का पारण करते ही उसे जैसे नवजीवन मिला हो। वह फिर से हष्ट पुष्ट हो गया। अब राजा और भी अधिक श्रद्धाभाव से भगवद्भक्ति में लीन रहने लगा।
वरुथिनी एकादशी व्रत को करने से दु:खी व्यक्ति को सुख मिलते है. राजा के लिये स्वर्ग के मार्ग खुल जाते है. इस व्रत का फल सूर्य ग्रहण के समय दान करने से जो फल प्राप्त होता है, वही फल इस व्रत को करने से प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से मनुष्य लोक और परलोग दोनों में सुख पाता है. और अंत समय में स्वर्ग जाता है।
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वरूथिनी एकादशी व्रत कथा और पूजा विधि
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