वेदव्यास अष्टक स्तोत्रम् भगवान वेदव्यास को समर्पित एक अत्यंत पवित्र और शक्तिशाली स्तोत्र है। यह आठ श्लोकों का एक संग्रह है, जो महर्षि वेदव्यास के गुणों, उनके ज्ञान और उनके योगदान का गुणगान करता है। इस स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति को ज्ञान, बुद्धि और आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है। वेदव्यास जी ने वेदों का संपादन किया, महाभारत और पुराणों की रचना की, जिससे सनातन धर्म का ज्ञान जन-जन तक पहुंचा। यह स्तोत्र उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने का एक माध्यम है, जो हमें धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।
|| वेदव्यास अष्टक स्तोत्र PDF ||
सुजने मतितो विलोपिते निखिले गौतमशापतोमरैः।
कमलासनपूर्वकैस्स्ततो मतिदो मेस्तु स बादरायणः।
विमलोऽपि पराशरादभूद्भुवि भक्ताभिमतार्थ सिद्धये।
व्यभजद् बहुधा सदागमान् मतिदो मेस्तु स बादरायणः।
सुतपोमतिशालिजैमिनि- प्रमुखानेकविनेयमण्डितः।
उरुभारतकृन्महायशा मतिदो मेस्तु स बादरायणः।
निखिलागमनिर्णयात्मकं विमलं ब्रह्मसुसूत्रमातनोत्।
परिहृत्य महादुरागमान् मतिदो मेस्तु स बादरायणः।
बदरीतरुमण्डिताश्रमे सुखतीर्थेष्टविनेयदेशिकः।
उरुतद्भजनप्रसन्नहृन्मतिदो मेस्तु स बादरायणः।
अजिनाम्बररूपया क्रियापरिवीतो मुनिवेषभूषितः।
मुनिभावितपादपङ्कजो मतिदो मेस्तु स बादरायणः।
कनकाभजटो रविच्छविर्मुखलावण्यजितेन्दुमण्डलः।
सुखतीर्थदयानिरीक्षणो मतिदो मेस्तु स बादरायणः।
सुजनोद्धरणक्षणस्वकप्रतिमाभूतशिलाष्टकं स्वयम्।
परिपूर्णधिये ददौ हि यो मतिदो मेस्तु स बादरायणः।
वेदव्यासाष्टकस्तुत्या मुद्गलेन प्रणीतया।
गुरुहृत्पद्मसद्मस्थो वेदव्यासः प्रसीदतु।
Found a Mistake or Error? Report it Now
