।। चालीसा ।।
सिद्ध अनंतानंत नमन कर,
सरस्वती को मन में ध्याय ।
विमल प्रभु की विमल भक्ति कर,
चरण कमल में शीश नवाय ।।
जय श्री विमलनाथ विमलेश,
आठो कर्म किये निःशेष ।
कृत वर्मा के राज दुलारे,
रानी जयश्यामा के प्यारे ।।
मंगलिक शुभ सपने सारे,
जगजननी ने देखे न्यारे ।
शुक्ल चतुर्थी माघ मास की,
जन्म जयंती विमलनाथ की ।।
जन्मोत्सव देवों ने मनाया,
विमलप्रभु शुभ नाम धराया ।
मेरु पर अभिषेक कराया,
गंधोदक श्रद्धा से लगाया ।।
वस्त्राभूषण दिव्य पहनाकर,
मात पिता को सौपा आकर ।
साठ लाख वर्षायु प्रभु की,
अवगाहना थी साठ धनुष की ।।
कंचन जैसी छवि प्रभु तन की,
महिमा कैसे गाऊ में उनकी ।
बचपन बीता, यौवन आया,
पिता ने राजतिलक करवाया ।।
चयन करो सुन्दर वधुओ का,
आयोजन किया शुभ विवाह का ।
एक दिन देखि ओस घास पर,
हिमकण देखे नयन प्रितीभर ।।
हुआ संसर्ग सूर्य रश्मि से,
लुप्त हुए सब मोती जैसे ।
हो विश्वास प्रभु को कैसे,
खड़े रहे वे चित्रलिखित से ।।
क्षणभंगुर हैं ये संसार,
एक धर्म ही हैं बस सार ।
वैराग्य ह्रदय में समाया,
छोड़े क्रोध मान और माया ।।
घर पहुचे अनमने से होकर,
राजपाठ निज सूत को देकर ।
देवभई शिविका पर चढ़कर,
गए सहेतुक वन में जिनवर ।।
माघ मास चतुर्थी कारी,
नमः सिद्ध कह दीक्षा धारी ।
रचना समोशरण हितकारी,
दिव्य देशना हुई सुखकार ।।
उपशम करके मिथ्यात्व का,
अनुभव करलो निज आतम का ।
मिथ्यातम का होय निवारण,
मिटे संसार भ्रमण का कारण ।।
बिन सम्यक्त्व के जप तप पूजन,
निष्फल हैं सारे फल अर्चन ।
निष्फल हैं विषयभोग सब,
इनको त्यागो हेय जान अब ।।
द्रव्य भाव नो कर्मादि से,
भिन्न है आतम देव सभी से ।
निश्च्य करके निज आतम का,
ध्यान करो तुम परमातम का ।।
ऐसी प्यारी हित की वाणी,
सुनकर सुखी हुए सब प्राणी ।
दूर दूर तक हुआ विहार,
किया सभी ने आत्मोद्धार ।।
मंदर आदि पचपन गणधर,
अडसठ सहस दिगंबर मुनिवर ।
उम्र रही जब तीस दिनों की,
जा पहुचे सम्मेदशिखर जी ।।
हुआ बाह्य वैभव परिहार,
शेष कर्म बंधन निखार ।
आवागमन का कर संहार,
प्रभु ने पाया मोक्षागार ।।
षष्ठी कृष्ण मास आषाढ़,
देव करें जिन भक्ति प्रगाढ़ ।
सुवीर कूट पूजे मन लाय,
निर्वाणोत्सव करें हर्षाय ।।
जो भवि विमल प्रभु को ध्यावे,
वे सब मनवांछित फल पावे ।
अरुणा करती विमल स्तवन,
ढीले हो जावे भव बंधन ।।
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