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अलक्ष्मी कौन हैं? अलक्ष्मी और लक्ष्मी में क्या है अंतर? जानिए दरिद्रता की देवी के रहस्य और उनसे बचने के उपाय

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हिंदू धर्म में देवियों का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिनमें धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी माँ लक्ष्मी की पूजा विशेष रूप से की जाती है। लेकिन क्या आपने कभी अलक्ष्मी के बारे में सुना है? अलक्ष्मी, जिन्हें दरिद्रता और दुर्भाग्य की देवी माना जाता है, माँ लक्ष्मी से बिल्कुल विपरीत गुणों वाली हैं। अक्सर इन्हें ज्येष्ठ लक्ष्मी या कालिका के नाम से भी जाना जाता है।

आइए, आज हम इस रहस्यमयी देवी अलक्ष्मी को गहराई से समझते हैं, लक्ष्मी से उनका क्या अंतर है, और कैसे हम उनके नकारात्मक प्रभाव से बचकर अपने जीवन में सुख-समृद्धि ला सकते हैं।

कौन हैं अलक्ष्मी?

अलक्ष्मी, जैसा कि नाम से स्पष्ट है, ‘अ’ अर्थात ‘नहीं’ और ‘लक्ष्मी’ का संयोजन है, जिसका अर्थ है ‘जो लक्ष्मी नहीं हैं’ या ‘लक्ष्मी से रहित’। पौराणिक कथाओं में अलक्ष्मी को माँ लक्ष्मी की बड़ी बहन के रूप में वर्णित किया गया है, जो समुद्र मंथन से लक्ष्मी के बाद उत्पन्न हुई थीं। एक मत के अनुसार, वे ‘हलाहल’ विष से उत्पन्न हुई थीं, जबकि लक्ष्मी अमृत से प्रकट हुईं।

अलक्ष्मी को गंदगी, अव्यवस्था, कलह, आलस्य, दरिद्रता, दुर्भाग्य और नकारात्मकता का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि वे ऐसे स्थानों पर निवास करती हैं जहाँ स्वच्छता नहीं होती, लोग आपस में झगड़ते हैं, और आलस्य का बोलबाला होता है

दरिद्रता की देवी के रहस्य

अलक्ष्मी से जुड़े कई रहस्य और मान्यताएं हैं:

  • उत्पत्ति का रहस्य: कुछ कथाओं में अलक्ष्मी को भगवान ब्रह्मा द्वारा निर्मित एक ऐसी शक्ति बताया गया है जो पापियों को दंडित करती है। वहीं, समुद्र मंथन की कथा उनकी उत्पत्ति को हलाहल विष से जोड़ती है।
  • अशुभता का कारण: अलक्ष्मी को ‘ज्येष्ठा’ (बड़ी बहन) के रूप में भी जाना जाता है, और कई संस्कृतियों में बड़ी बहन का पहले विवाह न होना अशुभ माना जाता है। इसी कारण, अलक्ष्मी का अविवाहित रहना उनकी अशुभता से जोड़ा जाता है।
  • शनिदेव से संबंध: कुछ मान्यताओं के अनुसार, अलक्ष्मी का संबंध शनिदेव से भी है, जो कर्मों के अनुसार फल देते हैं। जहां शनिदेव बुरे कर्मों का दंड देते हैं, वहीं अलक्ष्मी दुर्भाग्य के रूप में प्रकट होती हैं।

अलक्ष्मी से बचने के उपाय – कैसे आकर्षित करें लक्ष्मी को?

अलक्ष्मी को सीधे तौर पर पूजा नहीं जाता, बल्कि उनके नकारात्मक प्रभाव से बचने और लक्ष्मी को आकर्षित करने के लिए कुछ विशेष बातों का ध्यान रखा जाता है:

  • अपने घर और कार्यस्थल को हमेशा साफ-सुथरा रखें। गंदगी और अव्यवस्था अलक्ष्मी को आकर्षित करती है, जबकि स्वच्छता लक्ष्मी को।
  • अपने विचारों और शब्दों में सकारात्मकता लाएं। नकारात्मकता और ईर्ष्या से बचें।
  • आलस्य को त्याग कर कर्मठ बनें। मेहनती और ईमानदार लोगों के साथ लक्ष्मी सदैव रहती हैं।
  • घर और परिवार में शांति और प्रेम का माहौल बनाए रखें। झगड़े और कलह अलक्ष्मी को आमंत्रित करते हैं।
  • घर के बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
  • दीपावली के दिन घर की सफाई और रंगाई-पुताई विशेष रूप से की जाती है ताकि लक्ष्मी का आगमन हो और अलक्ष्मी का निस्तारण हो। कई स्थानों पर दीपावली से पहले घर के कूड़े-कचरे को बाहर फेंकने की प्रथा है, जिसे अलक्ष्मी का ‘त्याग’ माना जाता है।
  • मान्यता है कि सूर्योदय के बाद तक सोना आलस्य को बढ़ावा देता है, जिससे अलक्ष्मी का प्रभाव बढ़ता है। सुबह जल्दी उठना शुभ माना जाता है।
  • नियमित रूप से पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  • अपने कार्यों में ईमानदारी और नैतिकता बनाए रखें। गलत तरीके से कमाया गया धन कभी स्थाई नहीं होता।
  • प्रत्येक संध्या को तुलसी और घर के मुख्य द्वार पर दीपक जलाएं। इससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
  • हर शनिवार या अमावस्या को पुराने झाड़ू को बदलें और सेंधा नमक का पानी पोछे में मिलाकर उपयोग करें।
  • काले धागे में सात कौड़ियाँ और एक नींबू बांधकर दरवाज़े पर टांगें। यह अलक्ष्मी के प्रभाव को रोकता है।

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