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क्यों मानी जाती है बंगाल महा नवमी विशेष? जानें शक्ति उपासना और लोक परंपराएं

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बंगाल की दुर्गा पूजा (Durga Puja) दुनिया भर में प्रसिद्ध है, और इस भव्य उत्सव का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है ‘महा नवमी’ (Maha Navami)। यह सिर्फ एक पूजा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक महापर्व है जो शक्ति उपासना और लोक परंपराओं का अद्भुत संगम दिखाता है। जहां एक ओर पूरा देश इस दिन माँ सिद्धिदात्री की पूजा करता है, वहीं बंगाल में इस दिन का महत्व और इसकी अनूठी रस्में (unique rituals) इसे विशेष बनाती हैं। आइए, जानते हैं क्यों बंगाल की महा नवमी इतनी खास है और यहाँ कौन सी शक्ति उपासनाएं एवं लोक परंपराएं (folk traditions) निभाई जाती हैं।

महा नवमी का पौराणिक महत्व – विजय का अंतिम चरण

नवरात्रि के नौवें दिन को महा नवमी के रूप में मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इसी दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर (Mahishasura) के विरुद्ध अपने महायुद्ध में अंतिम और निर्णायक प्रहार किया था। यह दिन बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश और अज्ञानता पर ज्ञान की जीत का प्रतीक है।

बंगाल में, दुर्गा पूजा का पर्व मुख्य रूप से पंचमी (Panchami) तिथि से शुरू होता है और विजयादशमी तक चलता है, जिसे ‘दुर्गोत्सव’ (Durgotsav) कहा जाता है। नवमी तिथि शक्ति की परम अभिव्यक्ति का दिन है, इसलिए इस दिन माँ दुर्गा के ‘महिषासुर मर्दिनी’ (Mahishasura Mardini) स्वरूप की विशेष पूजा की जाती है, जो अन्याय और अत्याचार का नाश करने वाली हैं।

शक्ति उपासना की अनूठी रस्में (Unique Rituals of Shakti Worship)

बंगाल की महा नवमी को विशेष बनाने वाली कुछ खास रस्में और उपासनाएं निम्नलिखित हैं:

संधि पूजा (Sandhi Puja) अष्टमी और नवमी का संगम

महा नवमी से जुड़ा सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान है ‘संधि पूजा’। यह पूजा अष्टमी तिथि के अंतिम 24 मिनट और नवमी तिथि के शुरुआती 24 मिनट, कुल 48 मिनट के दौरान की जाती है। यह संक्रमण काल (transition period) बहुत पवित्र माना जाता है।

  • उपासना – माना जाता है कि इसी ‘संधिकाल’ में देवी चामुंडा (Goddess Chamunda), देवी दुर्गा के माथे से प्रकट हुई थीं और उन्होंने चंड-मुंड राक्षसों का संहार किया था।
  • विशेषता – इस पूजा में 108 कमल के फूल और 108 दीपक (earthen lamps) जलाए जाते हैं। भक्तगण माँ को सोने-चाँदी के आभूषणों और वस्त्रों से सजाते हैं। यह पूजा माँ दुर्गा के दो प्रमुख स्वरूपों – अष्टमी और नवमी – को समर्पित है, इसलिए इसका धार्मिक महत्व बहुत अधिक है।

कुमारी पूजा (Kumari Puja) या कन्या पूजन

हालांकि कन्या पूजन (Kanya Pujan) कई स्थानों पर अष्टमी या नवमी पर किया जाता है, लेकिन बंगाल में महा नवमी पर इसका विशेष महत्व है।

  • उपासना – नौ वर्ष से कम उम्र की कन्याओं को माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों के रूप में पूजा जाता है। उनके चरण धोए जाते हैं और उन्हें नए वस्त्र पहनाए जाते हैं।
  • विशेषता – यह रस्म बालिकाओं में निहित दैवीय शक्ति (Divine Power) के सम्मान और उनकी सुरक्षा का प्रतीक है। उन्हें विभिन्न प्रकार के व्यंजन जैसे पूड़ी, हलवा और चना परोसे जाते हैं और भेंट दी जाती है।

महा नवमी का भोग (Maha Navami Bhog)

महा नवमी के दिन माँ दुर्गा को विशेष भोग अर्पित किया जाता है, जिसे ‘नैवेद्य’ (Naivedya) भी कहते हैं।

  • व्यंजन – इसमें कई तरह के पारंपरिक बंगाली व्यंजन शामिल होते हैं, जिनमें खिचड़ी, लाभरा (मिक्स वेज), विभिन्न प्रकार की मिठाइयां और फल प्रमुख हैं।
  • महत्व – यह भोग केवल देवी को ही नहीं, बल्कि पूजा पंडालों में उपस्थित सभी भक्तों और समुदाय के सदस्यों के बीच भी वितरित किया जाता है, जिससे सामाजिक समरसता (social harmony) बढ़ती है।

लोक परंपराएं और सांस्कृतिक रंग (Folk Traditions and Cultural Colors)

बंगाल में महा नवमी का उत्सव केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह लोक परंपराओं और कला का भी केंद्र है।

धुनुची नाच (Dhunuchi Naach) भक्ति का ज्वलंत प्रदर्शन

महा नवमी के शाम की आरती में ‘धुनुची नाच’ (Dhunuchi Dance) का आयोजन किया जाता है, जो इस उत्सव की पहचान है।

  • प्रदर्शन – धुनुची एक मिट्टी का बर्तन होता है, जिसमें जलते हुए कोयले और नारियल के छिलके पर लोबान (frankincense) डालकर सुगंधित धुआं किया जाता है। भक्तगण, अक्सर पुरुष और महिलाएं दोनों, इसे अपने हाथों, माथे और कभी-कभी मुँह में लेकर ढोल (Dhak) की ताल पर एक जोशपूर्ण नृत्य करते हैं।
  • महत्व – यह देवी के प्रति अखंड भक्ति (unwavering devotion), उत्साह और साहस का प्रतीक है। इस नृत्य को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं।

बंगाली पोशाक और पंडाल (Bengali Attire and Pandal)

महा नवमी पर हर बंगाली घर और पंडाल एक विशेष उत्सव के रंग में रंगा होता है।

  • पहनावा – महिलाएं पारंपरिक लाल बॉर्डर वाली सफेद ‘गारद’ (Garad) या ‘तांत’ (Taant) साड़ियाँ पहनती हैं, जो शुद्धता और शक्ति का प्रतीक हैं। पुरुष पारंपरिक कुर्ता और धोती पहनते हैं।
  • पंडाल – शहर के पंडालों को अनूठी कलाकृतियों (art installations) और थीमों से सजाया जाता है, जो अक्सर समसामयिक मुद्दों (contemporary issues) को भी दर्शाते हैं। ये पंडाल केवल पूजा स्थल नहीं, बल्कि कला और सामुदायिक मिलन के केंद्र होते हैं।

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