भारत (India) एक ऐसा देश है जहाँ धर्म और आस्था का गहरा संगम देखने को मिलता है। यहाँ के कण-कण में भगवान का वास माना जाता है और कई ऐसे मंदिर हैं जहाँ होने वाले चमत्कार (miracles) लोगों को अचंभित कर देते हैं। ऐसा ही एक अद्भुत और रहस्यमयी (mysterious) phenomenon है, कुछ मंदिरों में देवी-देवताओं की प्रतिमाओं का पसीना बहाना। यह दृश्य भक्तों के लिए श्रद्धा का विषय है, तो वैज्ञानिकों के लिए एक पहेली। आज हम इस ब्लॉग में इसी रहस्य को उजागर करेंगे और जानेंगे कि आखिर क्यों कुछ प्रतिमाएँ स्वयं पसीना बहाती हैं।
आपने शायद ही कभी सोचा होगा कि एक पत्थर या धातु की मूर्ति (statue) कैसे पसीना बहा सकती है। जब हम किसी मंदिर में जाते हैं और प्रतिमा को गीला देखते हैं, तो अक्सर हम यह मान लेते हैं कि यह जल या अभिषेक का प्रभाव है। लेकिन कई ऐसे मंदिर हैं जहाँ सुबह-शाम, गर्मी हो या सर्दी, प्रतिमा पर पसीने की बूंदें (sweat droplets) साफ दिखाई देती हैं, मानो वे जीवित हों। यह घटना सिर्फ कुछ विशेष मंदिरों में ही होती है, जिससे इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
धार्मिक मान्यताएं – ईश्वरीय संकेत
धार्मिक दृष्टिकोण से, प्रतिमा का पसीना बहाना एक शुभ संकेत माना जाता है। इसे भगवान का आशीर्वाद (blessing) या भक्तों के प्रति उनकी उपस्थिति का प्रमाण माना जाता है।
- भगवान का कष्ट – कई भक्त यह मानते हैं कि जब किसी विशेष क्षेत्र में कोई बड़ा संकट (calamity) आने वाला होता है, तो भगवान स्वयं उस कष्ट को अपने ऊपर ले लेते हैं। प्रतिमा का पसीना बहाना इसी कष्ट को दर्शाने का एक तरीका है।
- भक्तों की प्रार्थना स्वीकार – कुछ मान्यताओं के अनुसार, जब भक्त अत्यंत श्रद्धा और भक्ति से प्रार्थना करते हैं, तो भगवान उनकी पुकार सुन लेते हैं। प्रतिमा पर पसीना आना इस बात का प्रतीक है कि भगवान ने भक्तों की प्रार्थना (prayer) स्वीकार कर ली है और वे प्रसन्न हैं।
- देवता की ऊर्जा – कुछ प्राचीन ग्रंथों और परंपराओं में कहा गया है कि कुछ प्रतिमाओं में इतनी अधिक दिव्य ऊर्जा (divine energy) होती है कि वह आसपास के वातावरण के साथ प्रतिक्रिया करती है, जिससे पसीने जैसी स्थिति उत्पन्न होती है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण – क्या कोई तर्क है?
वैज्ञानिक (scientists) इस घटना को सिर्फ चमत्कार नहीं मानते, बल्कि इसके पीछे छिपे भौतिकी (physics) और रसायन शास्त्र (chemistry) के सिद्धांतों को तलाशते हैं।
- घनीभूत वाष्प (Condensation of Vapors) – यह सबसे आम वैज्ञानिक कारण है। जब प्रतिमा का तापमान (temperature) आसपास की हवा से कम होता है, तो हवा में मौजूद जलवाष्प (water vapor) प्रतिमा की सतह पर आकर संघनित (condense) हो जाती है। यह बिलकुल वैसा ही है जैसे आप ठंडी बोतल को फ्रिज से बाहर निकालते हैं और उस पर पानी की बूँदें जम जाती हैं।
- सूक्ष्म छिद्रों (Micro-pores) से रिसाव – कुछ प्रतिमाएं विशेष प्रकार के पत्थरों या धातुओं से बनी होती हैं जिनमें अत्यंत सूक्ष्म छिद्र होते हैं। जमीन से या आसपास की दीवारों से रिसने वाला पानी (seepage water) इन छिद्रों से होता हुआ प्रतिमा की सतह पर आ सकता है, जिससे यह पसीने जैसा दिखाई देता है।
- मूर्ति की बनावट और सामग्री (Material) – प्राचीन काल में मूर्तियों को बनाने के लिए ऐसी सामग्रियों का उपयोग किया जाता था जो नमी (moisture) को अवशोषित (absorb) और छोड़ सकती हैं। कुछ मूर्तियों में इस्तेमाल होने वाली धातुएं या पत्थर आर्द्रता (humidity) के प्रति संवेदनशील होते हैं, जिससे यह घटना हो सकती है।
- सूक्ष्म-जलवायु परिवर्तन (Micro-climatic changes) – मंदिर के अंदर का वातावरण (environment) बाहर के वातावरण से अलग होता है। हवा के प्रवाह, तापमान और आर्द्रता में होने वाले छोटे-छोटे बदलाव भी इस घटना को प्रभावित कर सकते हैं।
भारत के कुछ प्रसिद्ध उदाहरण: भारत में कई ऐसे मंदिर हैं जहाँ यह घटना देखने को मिलती है:
- जगन्नाथ मंदिर, पुरी (Jagannath Temple, Puri) – यहाँ भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमाओं पर पसीना आने की बात कही जाती है, खासकर विशेष पूजा के समय।
- विष्णु मंदिर, तिरुवनंतपुरम (Vishnu Temple, Thiruvananthapuram) – कुछ भक्तों ने यहाँ भी प्रतिमा पर नमी या पसीना महसूस किया है।
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