भारत के हर घर की कहानी – घड़ी में शाम के 6 या 7 बजे और अगर गलती से आपने झाड़ू (Broom) उठा ली, तो घर की बड़ों की आवाज़ गूंज उठती है: “रहने दे! सूरज डूब गया है, अब झाड़ू नहीं लगाते, लक्ष्मी चली जाएगी!”
हम में से कई लोग इसे मानते हैं, तो कई इसे दकियानूसी ख्याल (Old-fashioned thought) कहकर चिढ़ जाते हैं। मन में सवाल तो आता ही है कि भला सफाई करने से भगवान क्यों नाराज होंगे? सफाई तो अच्छी बात है! तो चलिए, आज इस पुराने “इंडियन लॉजिक” की परतों को खोलते हैं। यकीन मानिए, इसके पीछे की कहानी सिर्फ ‘डर’ नहीं, बल्कि हमारे पूर्वजों की गजब की ‘दूरदर्शिता’ (Foresight) है।
धार्मिक और वास्तु शास्त्र का नजरिया (Religious & Vastu Perspective)
भारतीय संस्कृति में झाड़ू को सिर्फ सफाई का औजार नहीं, बल्कि देवी लक्ष्मी का प्रतीक (Symbol of Goddess Lakshmi) माना जाता है। दीवाली पर नई झाड़ू की पूजा करना इसका सबूत है।
- लक्ष्मी के आगमन का समय – शास्त्रों के अनुसार, गोधूलि बेला (Godhuli Bela) यानी शाम का समय, जब दिन और रात मिल रहे होते हैं, वह देवी लक्ष्मी के पृथ्वी पर भ्रमण और घर में प्रवेश का समय होता है।
- नकारात्मकता बाहर, सकारात्मकता अंदर – मान्यता है कि झाड़ू धूल और गंदगी (नकारात्मक ऊर्जा) को घर से बाहर निकालती है। अगर आप उस समय झाड़ू लगाते हैं जब लक्ष्मी जी आ रही हैं, तो अनजाने में आप सकारात्मक ऊर्जा (Positive Energy) को भी धूल के साथ बाहर धकेल रहे होते हैं। इसलिए इसे “दरिद्रता को न्योता देना” कहा गया है।
इसके पीछे का असली ‘देसी साइंस’ (The Real Desi Logic)
अब आते हैं उस व्यावहारिक कारण (Practical Reason) पर, जिसके आधार पर यह नियम बनाया गया था। हमें यह समझना होगा कि यह नियम उन दिनों बना था जब बिजली (Electricity) नहीं हुआ करती थी।
- कीमती चीजों के खोने का डर (Loss of Valuables) – पुराने जमाने में, घरों में बिजली के बल्ब नहीं थे। लोग दीये या लालटेन की रोशनी में गुजारा करते थे। शाम होते ही घर में अंधेरा छाने लगता था। अगर शाम के अंधेरे में झाड़ू लगाई जाए, तो जमीन पर गिरी हुई कोई छोटी-मोटी कीमती चीज़ (जैसे सोने की नथ, सिक्का, या सुई) धूल के साथ मिल जाती थी। कम रोशनी में यह दिखाई नहीं देती थी और कूड़े के साथ घर के बाहर फेंक दी जाती थी। इस आर्थिक नुकसान (Financial Loss) से बचने के लिए बुज़ुर्गों ने नियम बना दिया – “शाम को झाड़ू मत लगाओ, वरना ‘लक्ष्मी’ (धन) घर से चली जाएगी।” यह बात सचमुच धन बचाने के लिए ही थी!
- कीड़े-मकौड़े और कच्चा फर्श (Safety Hazards) – पहले घर कच्चे होते थे और मिट्टी के फर्श होते थे। शाम के समय कई बार सूक्ष्म कीड़े या बिच्छू आदि बिलों से बाहर आ जाते थे। अंधेरे में झाड़ू लगाते समय अगर उन पर पैर पड़ जाए या वे छेड़े जाएं, तो वे काट सकते थे। सुरक्षा के नजरिए से, दिन की रोशनी रहते ही सफाई निपटाना सबसे समझदारी का काम था।
- खाने की स्वच्छता (Food Hygiene) – शाम का समय अक्सर खाना बनाने (Cooking) का होता है। झाड़ू लगाने से धूल के कण (Dust particles) हवा में उड़ते हैं। अगर चूल्हे पर खाना बन रहा हो या परोसा जा रहा हो, तो धूल उसमें गिर सकती है, जिससे बीमारियाँ फैल सकती हैं।
अगर आज के समय में मजबूरी हो तो क्या करें? (Modern Solution)
आज हमारे पास तेज रोशनी वाली एलईडी लाइट्स (LED Lights) हैं और पक्के फर्श हैं। कीमती सामान खोने का डर कम है। लेकिन फिर भी, अगर आप इस परंपरा का सम्मान करना चाहते हैं और हाइजीन भी रखना चाहते हैं, तो शास्त्रों में इसका भी एक ‘तोड़’ (Workaround) बताया गया है:
- कूड़ा बाहर न फेंकें – अगर शाम को घर गंदा है और झाड़ू लगाना बहुत जरूरी है, तो आप झाड़ू लगा लीजिए। लेकिन, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कूड़े या मिट्टी को घर के बाहर (Outside) न फेंकें।
- एक कोने में जमा करें – कूड़े को इकट्ठा करके डस्टबिन में डाल दें या घर के किसी एक कोने में रख दें और उसे अगली सुबह बाहर फेंकें।
- लॉजिक – ऐसा करने से घर साफ़ भी हो जाएगा और “लक्ष्मी” (यानी कोई गलती से गिरी हुई कीमती चीज़) घर से बाहर नहीं जाएगी।
तो देखा आपने? हमारे पूर्वजों ने जिसे “अंधविश्वास” की चादर में लपेटा था, वह असल में एक बहुत ही स्मार्ट “होम मैनेजमेंट रूल” (Home Management Rule) था। उन्होंने डर का सहारा इसलिए लिया ताकि लोग अनुशासन (Discipline) में रहें और अपनी कीमती चीजों का नुकसान न करें।
आज के मॉडर्न जमाने में आप अपनी सुविधानुसार झाड़ू लगा सकते हैं, लेकिन शाम को ‘शांति’ और ‘सकारात्मकता’ बनाए रखने के लिए सफाई का काम सुबह ही निपटा लेना एक अच्छी आदत (Good Habit) है।
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