|| भूपाली आरती ||
उठा उठा सकल जन वाचे स्मरावा गजानन
गौरीहराचा नन्दन गजवदन गणपती ॥ उठा उठा ॥
ध्यानि आणुनी सुखमूर्ती, स्तवन करा एके चित्ती
तो देईल ज्ञानमूर्ती मोक्ष सुख सोज्वल ॥ उठा उठा ॥
जो निजभक्ताञ्चा दाता, वन्द्य सुरवरां समस्ता
त्यासी गाता भवभय चिन्ता, विघ्नवार्ता निवारी ॥ उठा उठा ॥
तो हा सुखाचा सागर, श्री गणराज मोरेश्वर
भावे विनवितो गिरिधर, भक्त त्याचा हौनी ॥ उठा उठा ॥
– २. घनश्याम सुन्दरा –
घनश्याम सुन्दरा श्रीधरा अरुणोदय झाला
उठिं लवकरी वनमाली उदयाचलीं मित्र आला ॥ घनश्याम ॥
आनन्दकन्दा प्रभात झाली उठि सरली राती
काढिं धार क्षीरपात्र घेउनि धेनू हम्बरती
लक्षिताति वांसुरें हरी धेनुस्तनपानाला
उठिं लवकरी वनमाली उदयाचलीं मित्र आला ॥ घनश्याम ॥
सायङ्कालीं एकेमेलीं द्विजगण अवघे वृक्षीं
अरुणोदय होताञ्च उडाले चरावया पक्षी
प्रभातकालीं उठुनि कावडी तीर्थपथ लक्षी
करुनि सडासंमार्जन गोपी कुम्भ घेउनि कुक्षीं
यमुनाजलासि जाति मुकुन्दा दध्योदन भक्षी~म् ॥ घनश्याम ॥
– ३. ओं जय जगदीश हरे –
ओं जय जगदीश हरे
स्वामि जय जगदीश हरे
भक्त जनों के सङ्कट
दास जनों के सङ्कट
क्षण मे दूर् करे
ओं जय जगदीश हरे ॥
जो ध्यावे फल् पावे
दुख् बिनसे मन् का
स्वामि दुख् बिनसे मन् का
सुख सम्पति घर् आवे
सुख सम्पति घर् आवे
कष्ट मिटे तन् का
ओं जय जगदीश हरे ॥
मात पिता तुम् मेरे
शरण पडूं मैं किस् की
स्वामि शरण कहूं मैं किस् की
तुम् बिन और् न दूजा
प्रभु बिन और् न दूजा
आस् करूं में किस् की
ओं जय जगदीश हरे ॥
तुम् पूरण् परमात्मा
तुम् अन्तरयामि
स्वामि तुम् अन्तरयामि
परब्रह्म परमेश्वर
परब्रह्म परमेश्वर
तुम् सब् के स्वामी
ओं जय जगदीश हरे ॥
तुम् करुणा के सागर्
तुम् पालन् कर्ता
स्वामि तुम् पालन् कर्ता
मैं मूरख् खल् कामी
मैं सेवक् तुम् स्वामी
कृपा करो भर्ता
ओं जय जगदीश हरे ॥
विषय विकार् मिटावो
पाप् हरो देवा
स्वामि पाप् हरो देवा
श्रद्धा भक्ति बढावो
श्रद्धा भक्ति बढावो
सन्तन् की सेवा
ओं जय जगदीश हरे ॥
तन् मन् धन् सब् (है) तेरा
स्वामि सब् कुच् है तेरा
स्वामि सब् कुच् है तेरा
तेरा तुज् को अर्पण्
तेरा तुज् को अर्पण्
क्या लागे मेरा
ओं जय जगदीश हरे ॥
॥ ओं श्रीसच्चिदानन्द सद्गुरु सायिनाथ महाराज् की जै ॥
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