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शनि प्रदोष व्रत कथा और पूजा विधि

Shani Pradosh Vrat Katha Puja Vidhi

Shani DevVrat Katha (व्रत कथा संग्रह)हिन्दी
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शनिवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष व्रत को शनि प्रदोष व्रत कहते हैं। यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के साथ शनिदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस व्रत की कथा में एक निर्धन ब्राह्मण और उसकी पत्नी को संतान सुख प्राप्त होने का वर्णन है, जो ऋषि शांडिल्य के कहने पर यह व्रत करते हैं।

पूजा विधि में सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में शिव-पार्वती और शनिदेव की पूजा की जाती है। भक्त शिवलिंग का गंगाजल और दूध से अभिषेक करते हैं, बेलपत्र, फूल, धूप और दीप अर्पित करते हैं। शनि के अशुभ प्रभावों को कम करने के लिए “ॐ नमः शिवाय” और “ॐ शं शनैश्चराय नमः” मंत्रों का जाप किया जाता है। व्रत का संपूर्ण लाभ लेने के लिए कथा का पाठ करना आवश्यक है। लोग इस विधि को जानने के लिए PDF सामग्री खोजते हैं।

|| शनि प्रदोष व्रत पूजा विधि ||

  • प्रदोष व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ कपड़े धारण करें।
  • भगवान शंकर और माता पार्वती को पंचामृत व गंगाजल से स्नान कराएं।
  • अब भगवान को बेल पत्र, गंध, अक्षत , फूल, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग), फल, पान, सुपारी, लौंग व इलायची अर्पित करें।
  • शाम को भगवान शिव की इसी तरह पूजा करें और पुनः एक बार उक्त सभी सामग्री भगवान को अर्पित करें। इस दिन अगर संभव हो तो इस दिन कांसे की कटोरी में तिल का तेल लेकर अपना चेहरा देखना चाहिये और जो भी शनिदेव के नाम का दान स्वीकार करता हो उसे तेल दान कर दें।
  • इस दिन बूंदी के लड्डू काली गाय को और काले कुत्ते को तेल से चुपड़ी हुई रोटी खिलाने से भाग्योदय होता है।
  • शनि प्रदोष के दिन कम से कम एक माला शनि मंत्र का जाप करना चाहिए।
  • गरीब को तेल में बने खाद्य पदार्थ खिलाएं।
  • शनिदेव की प्रतिमा को देखते समय भगवान की आंखों में नहीं देखें।
  • इस दिन पीपल को जल देने से भी शनिदेव प्रसन्न होते हैं।

|| शनि प्रदोष व्रत कथा (Shani Pradosh Vrat Katha PDF) ||

शनि प्रदोष व्रत कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक नगर सेठ थे। सेठजी के घर में हर प्रकार की सुख-सुविधाएं थीं लेकिन संतान नहीं होने के कारण सेठ और सेठानी हमेशा दुःखी रहते थे। काफी सोच-विचार करके सेठजी ने अपना काम नौकरों को सौंप दिया और खुद सेठानी के साथ तीर्थयात्रा पर निकल पड़े।

अपने नगर से बाहर निकलने पर उन्हें एक साधु मिले, जो ध्यानमग्न बैठे थे। सेठजी ने सोचा, क्यों न साधु से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा की जाए। सेठ और सेठानी साधु के निकट बैठ गए। साधु ने जब आंखें खोलीं तो उन्हें ज्ञात हुआ कि सेठ और सेठानी काफी समय से आशीर्वाद की प्रतीक्षा में बैठे हैं।

साधु ने सेठ और सेठानी से कहा कि मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं। तुम शनि प्रदोष व्रत करो, इससे तुम्हें संतान सुख प्राप्त होगा। साधु ने सेठ-सेठानी प्रदोष व्रत की विधि भी बताई और शंकर भगवान की निम्न वंदना बताई।

दोनों साधु से आशीर्वाद लेकर तीर्थयात्रा के लिए आगे चल पड़े। तीर्थयात्रा से लौटने के बाद सेठ और सेठानी ने मिलकर शनि प्रदोष व्रत किया जिसके प्रभाव से उनके घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ और खुशियों से उनका जीवन भर गया।

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