नवरात्रि, शक्ति उपासना का महापर्व, नौ दिनों तक देवी दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की आराधना का अवसर होता है। इन नौ दिनों के भीतर कई ऐसे विशिष्ट व्रत और पूजन विधियां भी आती हैं, जो अपने आप में असीम फलदायी मानी जाती हैं। इन्हीं में से एक है “उपांग ललिता व्रत”। अक्सर लोग नवरात्रि के प्रमुख व्रतों पर ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन उपांग ललिता व्रत का महत्व कई बार अनदेखा रह जाता है। आइए, आज हम विस्तार से जानते हैं कि यह व्रत क्यों इतना शुभ और कल्याणकारी है, और क्यों आपको इसे अपनी नवरात्रि पूजन विधि में शामिल करना चाहिए।
क्या है उपांग ललिता व्रत?
उपांग ललिता व्रत मुख्य रूप से देवी ललिता त्रिपुरसुंदरी को समर्पित है। देवी ललिता, आदिशक्ति का वह स्वरूप हैं जो अनंत सौंदर्य, ऐश्वर्य और पराशक्ति का प्रतीक हैं। इन्हें ‘श्रीविद्या’ की अधिष्ठात्री देवी भी माना जाता है। उपांग का अर्थ है ‘अंगों सहित’ या ‘सहायक अंग’। इस व्रत में देवी ललिता के सभी अंगों और उनके सहायक शक्तियों का भी पूजन किया जाता है, जिससे यह व्रत पूर्णता और व्यापकता को प्राप्त करता है।
नवरात्रि के दौरान कब आता है यह व्रत?
उपांग ललिता व्रत सामान्यतः आश्विन शुक्ल पंचमी तिथि को मनाया जाता है। यह तिथि नवरात्रि के पांचवें दिन पड़ती है, जिस दिन स्कंदमाता की पूजा होती है। इसी कारण, नवरात्रि के दौरान इस व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है, क्योंकि यह शक्ति के मूल स्वरूप के साथ-साथ सौंदर्य और ऐश्वर्य की देवी ललिता का भी आशीर्वाद दिलाता है।
क्यों है यह व्रत अत्यंत शुभ और कल्याणकारी?
उपांग ललिता व्रत को अत्यंत शुभ और कल्याणकारी मानने के कई कारण हैं:
- देवी ललिता को दस महाविद्याओं में से एक और सर्वोच्च शक्ति माना जाता है। इस व्रत को करने से साधक को उनकी सीधी कृपा प्राप्त होती है, जो जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता और समृद्धि लाती है।
- देवी ललिता त्रिपुरसुंदरी नाम से ही स्पष्ट है कि वे परम सौंदर्य की प्रतीक हैं। इस व्रत के प्रभाव से शारीरिक और मानसिक सौंदर्य में वृद्धि होती है। साथ ही, धन-धान्य, वैभव और ऐश्वर्य की भी प्राप्ति होती है।
- धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, उपांग ललिता व्रत असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाने और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करने में सहायक है। यह नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर कर सकारात्मकता का संचार करता है।
- सच्चे मन से किए गए इस व्रत से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। चाहे वह संतान प्राप्ति हो, विवाह संबंधी बाधाएं हों, या करियर में सफलता हो, देवी ललिता अपने भक्तों की हर इच्छा पूर्ण करती हैं।
- यह व्रत न केवल भौतिक सुख प्रदान करता है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति और मानसिक शांति भी देता है। यह मोक्ष के मार्ग प्रशस्त करता है और साधक को परम आनंद की अनुभूति कराता है।
- देवी ललिता ज्ञान और विद्या की भी दाता हैं। इस व्रत को करने से व्यक्ति की वाक् सिद्धि बढ़ती है, ज्ञान में वृद्धि होती है और निर्णय लेने की क्षमता में सुधार आता है।
- नवरात्रि के पावन दिनों में इस व्रत का अनुष्ठान करने से नवरात्रि के सभी प्रमुख व्रतों का फल भी प्राप्त होता है, क्योंकि यह शक्ति के ही एक विशिष्ट स्वरूप का पूजन है। यह नवरात्रि की ऊर्जा को और भी सशक्त बनाता है।
कैसे करें उपांग ललिता व्रत का अनुष्ठान?
उपांग ललिता व्रत का अनुष्ठान श्रद्धा और भक्ति के साथ करना चाहिए। यहां कुछ सामान्य दिशा-निर्देश दिए गए हैं:
- व्रत के दिन प्रातः काल उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। हाथ में जल और पुष्प लेकर व्रत का संकल्प लें।
- एक स्वच्छ स्थान पर देवी ललिता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। चाहें तो श्रीयंत्र भी स्थापित कर सकते हैं।
- पूजन सामग्री – लाल वस्त्र, लाल फूल (विशेषकर गुड़हल), कुमकुम, हल्दी, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य (खीर, फल, मिठाई) आदि का प्रयोग करें।
- देवी ललिता के मंत्रों का जाप करें। उनका सबसे प्रसिद्ध मंत्र “ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ललितायै नमः” है। इसके अतिरिक्त, ललिता सहस्रनाम का पाठ भी अत्यंत फलदायी माना जाता है।
- उपांग ललिता व्रत की कथा का श्रवण या पाठ करें। अंत में देवी ललिता की आरती करें।
- दिन भर व्रत का पालन करें। कुछ लोग निर्जला व्रत रखते हैं, जबकि कुछ फलाहार करते हैं। शाम को पूजन के बाद फल या सात्विक भोजन ग्रहण कर सकते हैं।
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