सनातन धर्म में भगवान विश्वकर्मा को न केवल देवताओं का दिव्य वास्तुकार (Divine Architect) और इंजीनियर माना जाता है, बल्कि उन्हें सृष्टि के प्रथम निर्माता के रूप में भी पूजा जाता है। वह केवल निर्माण के देवता नहीं हैं, बल्कि कला, कौशल (Skill), अभियांत्रिकी (Engineering) और तकनीक के भी अधिष्ठाता हैं। उन्हें ‘देव शिल्पी’ भी कहा जाता है।
हर वर्ष विश्वकर्मा पूजा के दिन, विशेष रूप से कारीगरों, शिल्पकारों, इंजीनियरों और औद्योगिक क्षेत्रों से जुड़े लोगों द्वारा उनकी पूजा-अर्चना की जाती है। उनके नाम में ही उनका परिचय छिपा है: ‘विश्व’ (संसार/Universe) और ‘कर्मा’ (कर्म/Creation), यानी वह जो संपूर्ण संसार का निर्माण और कर्म करते हैं।
विश्वकर्मा स्तोत्रम् की महिमा – क्यों है यह इतना खास?
विश्वकर्मा स्तोत्रम् केवल एक धार्मिक पाठ नहीं है, बल्कि यह वह महामंत्र है जो साधक को सृजनशीलता और उत्कृष्टता से जोड़ता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन और व्यवसाय में कई चमत्कारी परिवर्तन आते हैं।
- जो लोग लेखन, चित्रकला, वास्तुकला या किसी भी प्रकार के रचनात्मक कार्य से जुड़े हैं, उनके लिए यह स्तोत्र नूतन विचारों का भंडार खोल देता है। यह मस्तिष्क को नई दिशाओं में सोचने के लिए प्रेरित करता है।
- चाहे आप मशीन पर काम करते हों, कंप्यूटर पर कोड लिखते हों, या किसी भी उपकरण का उपयोग करते हों, यह स्तोत्र आपके हाथों में सटीकता (Precision) और कार्यकुशलता लाता है। यह एकाग्रता को बढ़ाकर काम में निखार पैदा करता है।
- माना जाता है कि विश्वकर्मा जी की उपासना से घर या कार्यस्थल के वास्तु दोष दूर होते हैं। स्तोत्र का नियमित पाठ उस स्थान से नकारात्मक ऊर्जा (Negative energy) को दूर करके एक सकारात्मक और ऊर्जावान वातावरण बनाता है, जो उन्नति के लिए आवश्यक है।
- भगवान विश्वकर्मा की कृपा से व्यापार में उन्नति होती है और धन से जुड़ी समस्याएँ दूर होती हैं। यह स्तोत्र व्यक्ति के आय, आयु और भाग्य में वृद्धि करता है।
- यह स्तोत्र केवल भौतिक लाभ नहीं देता, बल्कि यह व्यक्ति के आत्मविश्वास को बढ़ाता है और उसे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करता है। साथ ही, यह मानसिक शांति भी प्रदान करता है।
विश्वकर्मा स्तोत्रम् का आध्यात्मिक रहस्य (The Spiritual Secret)
विश्वकर्मा स्तोत्रम् के श्लोक भगवान विश्वकर्मा के विराट स्वरूप का वर्णन करते हैं, जो हमें यह याद दिलाते हैं कि हर छोटी-बड़ी रचना के पीछे उन्हीं की शक्ति और कला है। यह स्तोत्र दरअसल हमें कर्मयोग का संदेश देता है। यह सिखाता है कि कार्य ही पूजा है और अपने कर्मों में पूरी ईमानदारी (Integrity) और कौशल लाना ही भगवान विश्वकर्मा की सच्ची भक्ति है।
यह हमें बताता है कि सूर्य का तेज (जिससे अस्त्र-शस्त्र बनाए गए), सुदर्शन चक्र, इंद्र का वज्र, और यहाँ तक कि लंका नगरी तथा भगवान कृष्ण की नगरी द्वारका जैसी दिव्य रचनाएँ उन्हीं की अद्वितीय प्रतिभा का प्रमाण हैं। स्तोत्र हमें यह भी याद दिलाता है कि वह सर्वज्ञ, व्यापक और सच्चिदानंद स्वरूप हैं।
पाठ करने का सही तरीका
विश्वकर्मा स्तोत्रम् का पाठ करना एक सरल और पवित्र प्रक्रिया है, जो किसी भी दिन किया जा सकता है, लेकिन विश्वकर्मा पूजा के दिन इसका महत्व कई गुना बढ़ जाता है।
- सुबह स्नान करके, स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल या अपने कार्यस्थल (दुकान, फैक्ट्री, ऑफिस) में बैठें।
- सबसे पहले भगवान विश्वकर्मा की प्रतिमा या चित्र को स्थापित करें। उपकरण/औजारों की भी पूजा करें।
- अपने कार्य में सफलता, कुशलता और समृद्धि की कामना करते हुए मन में संकल्प लें।
- स्तोत्र का पाठ शांत मन और पूरी श्रद्धा से करें। संस्कृत में यदि कठिनाई हो तो आप हिंदी अर्थ के साथ भी पाठ कर सकते हैं।
- पाठ के दौरान अपनी कला और कौशल को और बेहतर बनाने पर ध्यान केंद्रित करें।
