॥ दोहा ॥
मनसा माँ नागेश्वरी,
कष्ट हरन सुखधाम ।
चिंताग्रस्त हर जीव के,
सिद्ध करो सब काम ॥
देवी घट-घट वासिनी,
ह्रदय तेरा विशाल ।
निष्ठावान हर भक्त पर,
रहियो सदा तैयार ॥
॥ चौपाई ॥
पदमावती भयमोचिनी अम्बा ।
सुख संजीवनी माँ जगदंबा ॥
मनशा पूरक अमर अनंता ।
तुमको हर चिंतक की चिंता ॥
कामधेनु सम कला तुम्हारी ।
तुम्ही हो शरणागत रखवाली ॥
निज छाया में जिनको लेती ।
उनको रोगमुक्त कर देती ॥
धनवैभव सुखशांति देना ।
व्यवसाय में उन्नति देना ॥
तुम नागों की स्वामिनी माता ।
सारा जग तेरी महिमा गाता ॥
महासिद्धा जगपाल भवानी ।
कष्ट निवारक माँ कल्याणी ॥
याचना यही सांझ सवेरे ।
सुख संपदा मोह ना फेरे ॥
परमानंद वरदायनी मैया ।
सिद्धि ज्योत सुखदायिनी मैया ॥
दिव्य अनंत रत्नों की मालिक ।
आवागमन की महासंचालक ॥
भाग्य रवि कर उदय हमारा ।
आस्तिक माता अपरंपारा ॥
विद्यमान हो कण कण भीतर ।
बस जा साधक के मन भीतर ॥
पापभक्षिणी शक्तिशाला ।
हरियो दुख का तिमिर ये काला ॥
पथ के सब अवरोध हटाना ।
कर्म के योगी हमें बनाना ॥
आत्मिक शांति दीजो मैया ।
ग्रह का भय हर लीजो मैया ॥
दिव्य ज्ञान से युक्त भवानी ।
करो संकट से मुक्त भवानी ॥
विषहरी कन्या, कश्यप बाला ।
अर्चन चिंतन की दो माला ॥
कृपा भगीरथ का जल दे दो ।
दुर्बल काया को बल दे दो ॥
अमृत कुंभ है पास तुम्हारे ।
सकल देवता दास तुम्हारे ॥
अमर तुम्हारी दिव्य कलाएँ ।
वांछित फल दे कल्प लताएँ ॥
परम श्रेष्ठ अनुकंपा वाली ।
शरणागत की कर रखवाली ॥
भूत पिशाचर टोना टंट ।
दूर रहे माँ कलह भयंकर ॥
सच के पथ से हम ना भटके ।
धर्म की दृष्टि में ना खटके ॥
क्षमा देवी, तुम दया की ज्योति ।
शुभ कर मन की हमें तुम होती ॥
जो भीगे तेरे भक्ति रस में ।
नवग्रह हो जाए उनके वश में ॥
करुणा तेरी जब हो महारानी ।
अनपढ बनते है महाज्ञानी ॥
सुख जिन्हें हो तुमने बांटें ।
दुख की दीमक उन्हे ना छांटें ॥
कल्पवृक्ष तेरी शक्ति वाला ।
वैभव हमको दे निराला ॥
दीनदयाला नागेश्वरी माता ।
जो तुम कहती लिखे विधाता ॥
देखते हम जो आशा निराशा ।
माया तुम्हारी का है तमाशा ॥
आपद विपद हरो हर जन की ।
तुम्हें खबर हर एक के मन की ॥
डाल के हम पर ममता आँचल ।
शांत कर दो समय की हलचल ॥
मनसा माँ जग सृजनहारी ।
सदा सहायक रहो हमारी ॥
कष्ट क्लेश ना हमें सतावे ।
विकट बला ना कोई भी आवे ॥
कृपा सुधा की वृष्टि करना ।
हर चिंतक की चिंता हरना ॥
पूरी करो हर मन की मंशा ।
हमें बना दो ज्ञान की हंसा ॥
पारसमणियाँ चरण तुम्हारे ।
उज्वल करदे भाग्य हमारे ॥
त्रिभुवन पूजित मनसा माई ।
तेरा सुमिरन हो फलदाई ॥
॥ दोहा ॥
इस गृह अनुग्रह रस बरसा दे,
हर जीवन निर्दोष बना दे ।
भूलेंगें उपकार ना तेरे,
पूजेंगे माँ सांझ सवेरे ॥
सिद्ध मनसा सिद्धेश्वरी,
सिद्ध मनोरथ कर ।
भक्तवत्सला दो हमें सुख संतोष का वर,
सुख संतोष का वर ॥
॥ इति श्री मनसा देवी चालीसा संपूर्णम् ॥
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