|| सोमनाथ ज्योतिर्लिंग प्रादुर्भाव पौराणिक कथा ||
शिव पुराण के अनुसार, सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भगवान शिव का प्रथम ज्योतिर्लिंग है। इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना से सम्बंधित कथा इस प्रकार है:
प्रजापति दक्ष ने अपनी सभी सत्ताइस पुत्रियों का विवाह चन्द्रमा के साथ कर दिया, जिससे वे बहुत प्रसन्न हुए। चन्द्रमा को पत्नी के रूप में दक्ष कन्याएँ प्राप्त हुईं और वे भी इस विवाह से प्रसन्न थीं। चन्द्रमा की उन सत्ताइस पत्नियों में रोहिणी उन्हें सबसे ज्यादा प्रिय थी, जिससे वे विशेष आदर और प्रेम करते थे। चन्द्रमा का अन्य पत्नियों के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार देखकर वे सभी बहुत दुखी हुईं और अपने पिता दक्ष के पास जाकर अपनी व्यथा सुनाई।
अपनी पुत्रियों की व्यथा और चन्द्रमा के दुर्व्यवहार को सुनकर दक्ष भी दुखी हुए। उन्होंने चन्द्रमा से भेंट की और शांतिपूर्वक समझाया, “कलानिधे! तुमने निर्मल और पवित्र कुल में जन्म लिया है, फिर भी तुम अपनी पत्नियों के साथ भेदभाव करते हो। तुम्हें सभी पत्नियों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए।” दक्ष ने चन्द्रमा को न्यायपूर्ण बर्ताव करने की सलाह दी और लौट आए।
लेकिन चन्द्रमा ने अपने ससुर दक्ष की बात नहीं मानी। रोहिणी के प्रति अतिशय प्रेम के कारण, उन्होंने अपनी अन्य पत्नियों की उपेक्षा जारी रखी। फिर से समाचार मिलने पर दक्ष बड़े दुःखी हुए और उन्होंने चन्द्रमा को शाप दे दिया कि, “तुम्हें क्षयरोग हो जाए।”
शाप मिलते ही चन्द्रमा क्षयरोग से ग्रस्त हो गए। इसके चलते सर्वत्र हाहाकार मच गया। देवगण और ऋषिगण भी चिंतित हो गए। परेशान चन्द्रमा ने इन्द्र आदि देवताओं और ऋषियों को अपनी अस्वस्थता के बारे में बताया। उनकी सहायता के लिए सभी देवता और ऋषि ब्रह्माजी की शरण में गए। ब्रह्माजी ने कहा कि जो घटना हो गई है, उसे तो भुगतना ही है, क्योंकि दक्ष के शाप को पलटा नहीं जा सकता।
ब्रह्माजी ने देवताओं को सलाह दी कि चन्द्रमा को प्रभास क्षेत्र में जाकर भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए। चन्द्रमा ने वहाँ जाकर मृत्युंजय मंत्र का अनुष्ठान प्रारम्भ किया और कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और चन्द्रमा को वर मांगने के लिए कहा।
चन्द्रमा ने प्रार्थना करते हुए कहा, “हे देवेश्वर! मेरे सभी अपराधों को क्षमा करें और मुझे इस क्षयरोग से मुक्त करें।” भगवान शिव ने कहा कि इस शाप को पूरी तरह समाप्त करना सम्भव नहीं है, लेकिन इसे कम किया जा सकता है। तुम्हारी कला प्रतिदिन एक पक्ष में क्षीण होगी और दूसरे पक्ष में बढ़ती रहेगी। इस प्रकार तुम स्वस्थ और लोक-सम्मान के योग्य हो जाओगे।
भगवान शिव के कृपा से चन्द्रमा बहुत प्रसन्न हुए और भक्ति भावपूर्वक उनकी स्तुति की। शिवजी ने साकार लिंग रूप में प्रकट होकर सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रतिष्ठित हुए। इस प्रकार सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा संपन्न हुई।
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