॥दोहा॥
जय गणेश जय गज बदन,
करण सुमंगल मूल।
करहू कृपा निज दास पर,
रहहू सदा अनूकूल॥
जय जननी जगदीश्वरी,
कह कर बारम्बार।
जगदम्बा करणी सुयश,
वरणउ मति अनुसार ॥
॥ चौपाई ॥
सूमिरौ जय जगदम्ब भवानी।
महिमा अकथन जाय बखानी॥
नमो नमो मेहाई करणी।
नमो नमो अम्बे दुःख हरणी॥
आदि शक्ति जगदम्बे माता।
दुःख को हरणि सुख कि दाता॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैलि उजियारो॥
जो जेहि रूप से ध्यान लगावे।
मन वांछित सोई फल पावे॥
धौलागढ़ में आप विराजो।
सिंह सवारी सन्मुख साजो॥
भैरो वीर रहे अगवानी।
मारे असुर सकल अभिमानी॥
ग्राम सुआप नाम सुखकारी।
चारण वंश करणी अवतारी॥
मुख मण्डल की सुन्दरताई।
जाकी महिमा कही न जाई॥
जब भक्तों ने सुमिरण कीन्हा।
ताही समय अभय करि दीन्हा॥
साहूकार की करी सहाई।
डूबत जल में नाव बचाई॥
जब कान्हे न कुमति बिचारी।
केहरि रूप धरयो महतारी॥
मारयो ताहि एक छन मांई।
जाकी कथा जगत में छाई॥
नेड़ी जी शुभ धाम तुम्हारो।
दर्शन करि मन होय सुखारो॥
कर सौहै त्रिशूल विशाल।
गल राजे पुष्प की माला॥
शेखोजी पर किरपा कीन्ही।
क्षुधा मिटाय अभय कर दीन्हा॥
निर्बल होई जब सुमिरन कीन्हा।
कारज सबि सुलभ कर दीन्हा॥
देशनोक पावन थल भारी।
सुन्दर मंदिर की छवि न्यारी॥
मढ़ में ज्योति जले दिन राती।
निखरत ही त्रय ताप नशाती॥
कीन्ही यहाँ तपस्या आकर।
नाम उजागर सब सुख सागर॥
जय करणी दुःख हरणी मइया।
भव सागर से पार करइया॥
बार बार ध्याऊं जगदम्बा।
कीजे दया करो न विलम्बा॥
धर्मराज नै जब हठ कीन्हा।
निज सुत को जीवित करि लीन्हा॥
ताहि समय मर्याद बनाई।
तुम पह मम वंशज नहि आई॥
मूषक बन मंदिर में रहि है।
मूषक ते पुनि मानुष तन धरि है॥
दिपोजी को दर्शन दीन्हा।
निज लिला से अवगत कीन्हा॥
बने भक्त पर कृपा कीन्ही।
दो नैनन की ज्योति दीन्ही॥
चरित अमित अति कीन्ह अपारा।
जाको यश छायो संसारा॥
भक्त जनन को मात तारती।
मगन भक्त जन करत आरती॥
भीड़ पड़ी भक्तों पर जब ही।
भई सहाय भवानी तब ही॥
मातु दया अब हम पर कीजै।
सब अपराध क्षमा कर दीजे॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो॥
जो नर धरे मात कर ध्यान।
ताकर सब विधि हो कल्याण॥
निशि वासर पूजहिं नर-नारी।
तिनको सदा करहूं रखवारी॥
भव सागर में नाव हमारी।
पार करहु करणी महतारी॥
कंह लगी वर्णऊ कथा तिहारी।
लिखत लेखनी थकत हमारी॥
पुत्र जानकर कृपा कीजै।
सुख सम्पत्ति नव निधि कर दीजै॥
जो यह पाठ करे हमेशा।
ताके तन नहि रहे कलेशा॥
संकट में जो सुमिरन करई।
उनके ताप मात सब हरई॥
गुण गाथा गाऊं कर जोरे।
हरह मात सब संकट मोरे॥
॥ दोहा॥
आदि शक्ति अम्बा सुमिर,
धरि करणी का ध्यान।
मन मंदिर में बास करो मैया,
दूर करो अज्ञान॥
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