मंगलाचरण का शाब्दिक अर्थ है “मंगल के लिए की गई प्रार्थना”। यह हिंदू धार्मिक और साहित्यिक ग्रंथों की एक प्रारंभिक प्रार्थना होती है, जो किसी शुभ कार्य या ग्रंथ के आरंभ में की जाती है। मंगलाचरण का उद्देश्य भगवान की कृपा प्राप्त करना और आरंभ किए गए कार्य को सफलतापूर्वक पूरा करना होता है।
मंगलाचरण महत्व
मंगलाचरण हिंदू धर्म की एक महत्वपूर्ण परंपरा है, जो किसी भी धार्मिक अनुष्ठान, पूजा, हवन, या साहित्यिक कार्य की शुरुआत से पहले की जाती है। यह न केवल व्यक्ति की आध्यात्मिक प्रगति में सहायक होती है, बल्कि उसे मानसिक शांति और आत्मविश्वास भी प्रदान करती है। मंगलाचरण के माध्यम से व्यक्ति अपनी श्रद्धा और समर्पण को प्रकट करता है, और भगवान की कृपा से अपने जीवन को शुभ और मंगलमय बनाने का प्रयास करता है।
मंगलाचरण का उच्चारण व्यक्ति के मन को शुद्ध करता है, उसे सकारात्मक ऊर्जा से भरता है और उसे आत्मिक शांति की ओर अग्रसर करता है।
- मंगलाचरण में अक्सर भगवान, देवी-देवता, या गुरु की स्तुति की जाती है। यह स्तुति भगवान के विभिन्न रूपों और गुणों की प्रशंसा करने के लिए होती है।
- मंगलाचरण के माध्यम से व्यक्ति अपने कार्य के सफल और निर्विघ्न रूप से पूर्ण होने की प्रार्थना करता है। इसमें आशीर्वाद, शांति और समृद्धि की कामना भी शामिल होती है।
- प्राचीन परंपरा के अनुसार, किसी भी कार्य की शुरुआत में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए मंगलाचरण का पाठ किया जाता है। विशेष रूप से भगवान गणेश को समर्पित श्लोक, जो विघ्नहर्ता माने जाते हैं, मंगलाचरण में शामिल होते हैं।
विभिन्न मंगलाचरण श्लोक
सरस्वती वंदना: “या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्र वस्त्रावृता।”
गणेश वंदना: “वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥”
गुरु वंदना: “गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥”